tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post218209007081454382..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: ‘पाव आनी सेठ’ याने लक्ष्मी बनाम पूँजी याने भारतीयताविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-15719161437702974182012-05-09T09:58:38.916+05:302012-05-09T09:58:38.916+05:30जी, समझ रहा हूँ, शुभाकांक्षा भी है, क्षमाप्रार्थी ...जी, समझ रहा हूँ, शुभाकांक्षा भी है, क्षमाप्रार्थी भी हूँ। बस यूँ समझिये कि इन दो महीने की देर और है बस!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-90700419818865600402012-05-09T09:22:21.650+05:302012-05-09T09:22:21.650+05:30'भविष्य की पुस्तक' से पहले ही मैं जिस पु...'भविष्य की पुस्तक' से पहले ही मैं जिस पुस्तक में शामिल हूँ, उसकी सामग्री की प्रतीक्षा, दीपावली 2011 के बाद से कर रहा हूँ।<br /><br />अपने मन से जानियो, मेरे मन की बात।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-51714414596092898382012-05-09T09:15:29.338+05:302012-05-09T09:15:29.338+05:30पोस्ट पहले देखी थी लेकिन विषय का अन्दाज़ लगाकर फ़ु...पोस्ट पहले देखी थी लेकिन विषय का अन्दाज़ लगाकर फ़ुर्सत में पढने के लिये रख छोड़ी थी। पावा-आनी सेठ के श्रेष्ठ आचरण के बारे में जानकर तृप्ति हुई। आप बताते रहिये। आज के समय में जब चहुँओर मोहभंग की स्थिति है, ऐसे उदाहरण हमारी इंटेग्रिटी सलामत रखने में सहायक सिद्ध होंगे। करमरकर जी के "भविष्य की पुस्तक" की कामना में हमें भी शामिल जानिये!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-13121975028589105662012-05-08T10:01:18.802+05:302012-05-08T10:01:18.802+05:30):
Further, no comments...):<br /><br />Further, no comments...pankaj vyas ratlamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-86942845873366249352012-05-07T23:32:19.064+05:302012-05-07T23:32:19.064+05:30एक पाठक की नजर से, आलेख का सन्देश व्याख्यायित क...एक पाठक की नजर से, आलेख का सन्देश व्याख्यायित करने का जो अधिकर और सुविधा आपके पास है, वही अधिकार और सुविधा मुझे, आपकी टिप्पणी का अर्थ समझने का भी है। मैंने तो यह नहीं चाहा कि आप मेरे आलेख का अर्थ क्या लगाऍं और क्या नहीं? फिर यह आग्रह क्यों कि आपकी टिप्पणी का अर्थ वही समझा जाए जो और जैसा आप चाहते हैं? <br /><br />मेरी निश्चित धारणा है कि 'तोकोलॉजी' अकारण और निस्वार्थ नहीं की जाती। उसके पीछे सुनिश्चित लक्ष्य (और स्वार्थ) होता ही है। इसीलिए जब आपने मेरे आलेख का भाष्य 'तोकोलॉजी' में किया तो, मेरी धारणानुसार, उसके पीछे मेरा कोई सुनिश्चित लक्ष्य और स्वार्थ स्वत: ही निहित हो जाता है।<br /><br />आपकी टिप्पणी मुझे कैसी लगी, यह जाने दें। यह तय है कि मेरी 'प्रति टिप्पणी' आपको न तो अनुकूल लगी और न ही प्रसन्नतादायक। आपको हुई असुविधा और वेदना के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-80062308644401429192012-05-07T10:53:06.173+05:302012-05-07T10:53:06.173+05:30मुझे ख़ुशी होगी गर मैं गलत साबित होऊंगा.... सवाल ...मुझे ख़ुशी होगी गर मैं गलत साबित होऊंगा.... सवाल आपको लाभ होने, या न होने का नहीं है|क्या वाजिब लाभ मिलाना बुरा है? मैंने बात की है लेख से मिले सन्देश की...| कदाचित, टिपण्णी आपको अच्छी न लगी हो, लेकिन एक पाठक की नजर से पड़ेंगे तो शायद....,pankaj vyas ratlamnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-77818286756265567152012-05-07T01:20:08.082+05:302012-05-07T01:20:08.082+05:30'बिना विचारे' पढने का धन्यवाद और पढकर (य...'बिना विचारे' पढने का धन्यवाद और पढकर (यहॉं) टिप्पणी करने का अतिरिक्त धन्यवाद। मुझे लग रहा है कि आप मुझ पर, नियमित रूप से नजर नहीं रख रहे हैं वर्ना यहॉं 'बिना विचारे' का हवाला नहीं देते क्योंकि राजेन्द्रजी शर्मा वाला आलेख, 'एकोऽहम्' में ही ('उपग्रह' के 'बिना विचारे' में प्रकाशित होने से पहले ही) प्रकाशित हो चुका था। आपकी यह मनोभावना उसी आलेख पर अंकित होती तो अधिक प्रासंगिक होती।चलिए, कोई बात नहीं।<br /><br />ईश्वर करे, आपका अनुमान सौ टका सच हो और कलेक्टर की 'तोकोलाजी' करने का कुछ तो लाभ मुझे मिले। यदि ऐसा नहीं होगा तो आपका अनुमान असत्य होने का कष्ट आपको हो न हो, मुझे अवश्य होगा।<br /><br />आपकी इस टिप्पणी के बाद से मैं, तनिक अतिरिक्त आतुरता से, कलेक्टर श्री राजेन्द्र शर्मा के किसी ऐसे सन्देश की प्रतीक्षा करने लगा हूँ जिससे मुझे 'तोकोलाजी' का यथेष्ट पारिश्रमिक/मुआवजा मिले।<br /><br />आप भी अपने स्तर पर कोशिश कीजिएगा कि आपकी टिप्पणी सच हो सके। इस हेतु मैं आपका अत्यधिक आभारी होऊँगा। मेरी ओर से अग्रिम आभार और धन्यवाद स्वीकार करें।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-31816349468473378232012-05-07T01:06:16.654+05:302012-05-07T01:06:16.654+05:30ई-मेल से प्राप्त, श्री सुरेशचन्द्रजी करमरकर, रतल...ई-मेल से प्राप्त, श्री सुरेशचन्द्रजी करमरकर, रतलाम की टिप्पणी -<br /><br />विष्णुजी, आज का बाज़ार हमें दानव बनकर कैसे लील रहा है, इसका एक प्रमाण जो मेरे द्वारा प्रयोग कर सिद्ध हुआ है, जल्दी ही आपको लिखकर भेजूँगा। आप दैनिक कामकाज के चलते उपयोगी सामग्री ढूँढ लेते हैं और उसे कलमबद्ध भी तत्काल कर देते हैं। आलस नहीं करते। <br /><br /> यह 'एकोऽहम्', भविष्य में एक पुस्तक का आकर लेगा यह मेरा विश्वास है.विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-4208222051693658452012-05-05T21:08:38.124+05:302012-05-05T21:08:38.124+05:30बिना-बिचारे कोलम पड़ा, जिसमें जिलाधीश श्री राजेंद्...बिना-बिचारे कोलम पड़ा, जिसमें जिलाधीश श्री राजेंद्र जी शर्मा का जिक्र है| पढ़ने के बाद ऐसा लगा, जैसे 'तोकोलोजी' हो गई हो| हर बार के तेवर की कमी इस बार खली....|PANKAJ VYAS, RATLAMnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-74691716765089855922012-05-04T06:37:41.649+05:302012-05-04T06:37:41.649+05:30खूब कही. आपकी हां में हम भी हां मिलाते हैं.खूब कही. आपकी हां में हम भी हां मिलाते हैं.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-24156270194822660532012-05-03T23:05:37.617+05:302012-05-03T23:05:37.617+05:30आनंद दायक रहा पाव-आनी सेठ के बारे में पढना|आनंद दायक रहा पाव-आनी सेठ के बारे में पढना|संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-30585088894505340852012-05-03T22:52:50.005+05:302012-05-03T22:52:50.005+05:30मूल्य बदलते जाते हैं अब..मूल्य बदलते जाते हैं अब..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6339308067419784042012-05-03T19:31:51.324+05:302012-05-03T19:31:51.324+05:30आज के युग मे पाँव आनी सेठ मिलना मुश्किल है । आज तो...आज के युग मे पाँव आनी सेठ मिलना मुश्किल है । आज तो सब राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट की तरह... सब लूटने मे लगे है । और इंटरनेट तथा TV channels तो इनके सबसे अच्छे साथी हो गए है । पब्लिक भी जानबूझकर इनके मकडजाल मे फँसती जा रही है । - रवि शर्माAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-12522871668702376762012-05-03T10:48:29.985+05:302012-05-03T10:48:29.985+05:30‘पाव आनी सेठ’ ही हमारी व्यापारिक धरोहर है हमारी वा...‘पाव आनी सेठ’ ही हमारी व्यापारिक धरोहर है हमारी वाणिज संस्कृति है। हमारी संस्कृति में महाजनी प्रथा भी सेवा-प्रमुख थी लाभ दूसरे स्तर पर आवश्यक था। अंग्रेजो के जमाने और पाश्चात्य लालच नें हमारी व्यपारिक प्रथाओं को तोडने का कार्य किया और उस व्यवस्था को मुनाफा बेस बनाने दुष्कृत्य किया। साथ ही हमारी व्यापार प्रथाओं को शोषणखोर विज्ञापित करते रहे। अधूरे में पूरा हमारे ही कुछ लालची महाजनों (जिनका बहुत ही अल्प प्रतिशत था) नें साक्ष्य उपलब्ध करवा दिए। इस तरह पाश्चात्य व्यापारी हमारी वित व्यवस्था और व्यापार प्रथा को तोड़ने में कामयाब हुए। वस्तुतः महाजनों के लिए साहुकार शब्द रूढ़ था। यह शब्द ही ईमानदारी का पर्याय है। सेठ शब्द भी श्रेष्ट के अर्थ में है। लेन-देन का आचार श्रेष्ट होता था।<br />आज गला काट प्रतिस्पृद्धा के बीच भी निति-नियम से व्यापार करने वाले ‘पाव आनी सेठ’ विद्यमान है, ऐसे उदाहरण सुनना सुनाना भी हमारे मन बसी नैतिकताओं को स्मृद्ध करने के प्रयोजन से होता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-59647197930574358492012-05-03T10:00:33.361+05:302012-05-03T10:00:33.361+05:30प्रबंधन की एक बड़ी विषयवस्तु आपने सहज ठंग से समझा ...प्रबंधन की एक बड़ी विषयवस्तु आपने सहज ठंग से समझा दी ... संत तुकाराम के जीवन में जब एक अवसर दुकानदारी करने का आया था तब उन्हौने भी " सामान के साथ विश्वास भी अपनी दुकान के ग्राहकों को कुछ इसी अंदाज़ में दिया था ... धन्य हों " पाव आनी सेठ "सम्पजन्यhttps://www.blogger.com/profile/07175205962362124688noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6598890083124379462012-05-03T09:28:43.973+05:302012-05-03T09:28:43.973+05:30thanks !thanks !drshttps://www.blogger.com/profile/14478873206498132730noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-82950665853736721262012-05-03T09:27:42.882+05:302012-05-03T09:27:42.882+05:30aaj bhi bade vayapari isi tarah se sochate hai bas...aaj bhi bade vayapari isi tarah se sochate hai bas pratisht bad gaya haidrshttps://www.blogger.com/profile/14478873206498132730noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-69713599717219911952012-05-03T09:05:41.635+05:302012-05-03T09:05:41.635+05:30अरे वाह हम भी पहले यही सोच रखते थे, किंतु यहाँ की ...अरे वाह हम भी पहले यही सोच रखते थे, किंतु यहाँ की लूटपाट हमारी सोच के ऊपर हावी हो गई।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.com