tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post2275483158532059207..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: मैं ही आतंकी, मैं ही नेता, दोष किसे दूँ ?विष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-9609143113382793082008-12-03T22:37:00.000+05:302008-12-03T22:37:00.000+05:30गज़ब की वैचारिक शक्ति और लेखन ! शुभकामनायें भाई जी...गज़ब की वैचारिक शक्ति और लेखन ! शुभकामनायें भाई जी !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-74684767165298269352008-12-02T21:51:00.000+05:302008-12-02T21:51:00.000+05:30एक आम भारतीय की बात को इतनी साफगोई से कह पाने का ध...एक आम भारतीय की बात को इतनी साफगोई से कह पाने का धन्यवाद. इतने भारतीयों के अलावा कई और भारतीय पक्ष भी हैं!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-83808730095937676402008-12-02T21:04:00.000+05:302008-12-02T21:04:00.000+05:30niraj shukla said... sir, aap ka vichar bilkul sah...niraj shukla said... <BR/>sir, aap ka vichar bilkul sahi hai. ham hamesha apni jimmedariyon se bhagate hain, isliye hi har samasya hamara pichha karti hai. phir vah hamari niji jindagi se judi samsyaen hon ya rashtriy star ki. jis din se ham samasyaon ke pichhe bhagana shuru kar denge us din se har samasya swtah hi dur ho jayegi. nirajNIRAJ KUMAR SHUKLAhttps://www.blogger.com/profile/13506391560693767196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-60903355112709249442008-12-02T21:01:00.000+05:302008-12-02T21:01:00.000+05:30This comment has been removed by the author.NIRAJ KUMAR SHUKLAhttps://www.blogger.com/profile/13506391560693767196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-51809273534350703682008-12-02T19:07:00.000+05:302008-12-02T19:07:00.000+05:30हम सभी अकर्मण्यता के दोषी हैं। आत्महत्या करना भी अ...हम सभी अकर्मण्यता के दोषी हैं। आत्महत्या करना भी अकर्मण्यता से भागना ही है। हम क्यों न आज से इस अकर्मण्यता को त्यागें। जितना हो सके कर्म को अपने जीवन में स्थान दें।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-7723836661433428592008-12-02T11:13:00.000+05:302008-12-02T11:13:00.000+05:30सरिताजी,धन्यवाद । कठिनाई यही है कि प्रत्येक यही ...सरिताजी,<BR/>धन्यवाद । कठिनाई यही है कि प्रत्येक यही कहता है कि एक के बदलने से क्या होगा । यही कहकर हम सब बदलाव से बचते हैं और नतीजे में आज जैसे लज्जाजनक दृश्य देखते हैं ।<BR/>निजी लाभ के लिए हम जिस तरह, दूसरों की परवाह किए बिना लगे रहते हैं, उसी प्रकार यदि हम 'वतन' के लिए भी लगे रहें तो तस्वीर बदल सकती है । किन्तु हमारा नियन्त्रण केवल स्वयम् तक ही सीमित है, दूसरों पर नहीं ।<BR/>मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं । अपनी-अपनी जगह पर हम, अपने ईश्वर को, अपनी आत्मा को साक्षी मान कर लगे रहें । ईश्वर हमें इतना आत्म बल प्रदान करता रहे कि हम लोक-उपहास से विचलित न हों ।<BR/>आपको साधुवाद ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6326045255280039262008-12-02T11:08:00.000+05:302008-12-02T11:08:00.000+05:30आदरणीय सुब्रमणियन साहब,आत्म हत्या करना शायद अधिक...आदरणीय सुब्रमणियन साहब,<BR/>आत्म हत्या करना शायद अधिक आसान है, किन्तु यह पलायन है । स्वयम् को सुधारने में, जिम्मेदार बनाने में प्राणलेवा कष्ट उठाने पडेंगे ।<BR/>किसी भी कौम के राष्टीय चरित्र की परीक्षा शान्ति काल में ही होती है । <BR/>आज तो सब राष्ट्वादी हैं । किन्तु कल, सब कुछ सामान्य होते ही, हमारा व्यवहार क्या होता है-वही महत्वपूर्ण है ।<BR/>बात अटपटी है और उससे अधिक कडवी, क्षमा कीजिएगा, राष्ट् हमारी वरीयता सूची में शायद अन्तिम स्थान पर ही मिलेगा ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6880012238348451052008-12-02T11:06:00.000+05:302008-12-02T11:06:00.000+05:30सत्य वचन .सत्य वचन .dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }https://www.blogger.com/profile/06395171177281547201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-56874175048549002822008-12-02T11:05:00.000+05:302008-12-02T11:05:00.000+05:30असली गुनाहगार हम खुद हई हैं । हमने हमेशा अपना घर क...असली गुनाहगार हम खुद हई हैं । हमने हमेशा अपना घर का कचरा दूसरे के आंगन में डाल कर मान लिया कि सफ़ाई हो गई । सभी को अपने अंतर्मन को टटोलना चाहिए ,लेकिन इससे होगा क्या ,जब तक अंतरात्मा की आवाज़ सुनने की हिम्मत हममें पैदा नहीं होती । कई लोग मेरे आक्रोश को सही नहीं मानते मेरे प्रयासों की विफ़लता पर व्यंग्य कसते हैं कि तुम अकेले इस देश को नहीं बदल सकती । मेरी देश के प्रति निष्ठा आज के दौर में मुझे हास्य का पात्र बनाती है । पर मेरा विश्वास अटल है कि आज नहीं तो कल हालात ज़रुर बदलेंगे । देश को निराशा से नहीं गल्तियों से सबक लेकर नए हौंसले और जज़्बे से नई शुरुआत कर्के ही संवारा जा सकता है । मगर उसके लिए सभी को अपने भौतिक सुखों से आगे की राह चुनना होगी ।<BR/> धन्यवाद ,आम जन के आक्रोश को इतने बेहतरीन तरीके से शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिए ।sarita argareyhttps://www.blogger.com/profile/02602819243543324233noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-4938627410695168492008-12-02T11:00:00.000+05:302008-12-02T11:00:00.000+05:30श्रीमान् एनानीमसजी,आप मेरे लिखे की पुष्टि ही कर रह...श्रीमान् एनानीमसजी,<BR/>आप मेरे लिखे की पुष्टि ही कर रहे हैं । अपने आपसे आंखु चुराने का जो साहसी कौशल आप बरत सकते हैं, क्षमा करें, मैं नहीं बरत पाता । मेरा आग्रह भी नहीं कि आ बरतें । मेरा नियन्त्रण केवल मुझ तक ही सीमित है - यह मैं भली भांति जानता हूं ।<BR/>हम अपने आप को शरीक किए बिना बात करते हैं, इसी के दुष्परिणाम हम झेल रहे हैं । <BR/>हम 'प्रजा' बने रहना चाहते हैं जबकि आवश्यकता है कि हम 'नागरिक' बनें ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-45008048379541912482008-12-02T10:52:00.000+05:302008-12-02T10:52:00.000+05:30सभी "मै". लगता है आत्म हत्या कर लेनी चाहिए.सभी "मै". लगता है आत्म हत्या कर लेनी चाहिए.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-7734098641958178982008-12-02T10:16:00.000+05:302008-12-02T10:16:00.000+05:30हम एक जुट हो, इसी में दोष छिपाया जा सकता है। गलनि ...हम एक जुट हो, इसी में दोष छिपाया जा सकता है। गलनि के घडियाली आसूँ बहाने से कोई लाभ नही होगा।Pramendra Pratap Singhhttps://www.blogger.com/profile/17276636873316507159noreply@blogger.com