tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post2969049196200907458..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: मुम्बई एपिसोड और हमारा राष्ट्र-प्रेम : एक पहलू यहविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-35952967007505447282008-12-03T22:42:00.000+05:302008-12-03T22:42:00.000+05:30एकोहम् का लिंक "मेरे गीत" पर देकर गर्वान्वित हूँ भ...एकोहम् का लिंक "मेरे गीत" पर देकर गर्वान्वित हूँ भाई जी !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-15450903363578729882008-12-03T11:08:00.000+05:302008-12-03T11:08:00.000+05:30व्यक्तिवादी के साथ "भोगवादी" भी बन चुके हैं हम लोग...व्यक्तिवादी के साथ "भोगवादी" भी बन चुके हैं हम लोग, यह मोमबत्तियाँ जलाने और एकता यात्रायें निकालने का जो ढोंग चल रहा है, व कुछ और नहीं "श्मशान वैराग्य" समाप्त होने से पहले का काम है… बस 3-4 दिन और, फ़िर सब अपने-अपने भ्रष्टाचार में लग जायेंगे… न तो आपके ब्लॉग पर लिखने से कुछ होने वाला है न ही मेरे गुस्से से उबलने पर कुछ होगा…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-78906690886618944002008-12-03T09:00:00.000+05:302008-12-03T09:00:00.000+05:30हम पलट कर अपनी संसकृ्ति को देखें ," तो मरने वाले क...हम पलट कर अपनी संसकृ्ति को देखें ," तो मरने वाले के साथ मरा नहीं जा सकता । " मालवा में मैंने एक लोकगीत सुना है ,जिसका भाव कहता है कि घर वाले तीन दिन , माता पिता इससे कुछ ज़्यादा और नाते -रिश्तेदार श्मशान पहुंचाने तक ही आपके साथ हैं । फ़िर क्यों मन इस जगत में फ़ूला - फ़ूला रहता है , क्यों गुमान करता है ? शायद हम सभी भारतीय संसकृ्ति के मर्म को भलिभांति समझ चुके हैं और निर्लिप्त भाव से मानव जीवन का सुख भोग रहे हैं । आध्यात्मिक पक्ष भी व्यक्तिवादी सोच को पुष्ट सा करता प्रतीत होता है ।<BR/> " आए हैं सो जाएंगे राजा रंक फ़कीर "sarita argareyhttps://www.blogger.com/profile/02602819243543324233noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-66215704189500694082008-12-03T07:41:00.000+05:302008-12-03T07:41:00.000+05:30हम व्यक्तिवादी हो गए हैं, यह सही है। इस में इतिहास...हम व्यक्तिवादी हो गए हैं, यह सही है। इस में इतिहास के साथ साथ वर्तमान की भी भूमिका भी महत्वपूर्ण है। हम समझ सकते हैं कि एक गृहमंत्री को आतंक की घटनाओं के बीच कैसे वस्त्र बदलने का वक्त मिल जाता है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-20860485576465761892008-12-03T06:53:00.000+05:302008-12-03T06:53:00.000+05:30यह सत्य है कि भारतीय मन जब तक व्यक्तिगत स्वयं पर न...यह सत्य है कि भारतीय मन जब तक व्यक्तिगत स्वयं पर नहीं आती, विदग्ध नहीं होता। और यह शायद हमारे धर्म-दर्शन में व्यक्ति/इण्डीवीजुअल को बहुत महत्व देने के कारण है। <BR/>इतिहास ने हमें व्यक्तिवादी बना दिया है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.com