tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post6190884084143478873..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: असम्मान का बीज: सम्मान की फसलविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-64768346557397598732011-12-26T11:42:12.189+05:302011-12-26T11:42:12.189+05:30ई-मेल से प्राप्त, बिलासपुर के श्रीयुत राहुलसिंहजी...ई-मेल से प्राप्त, बिलासपुर के श्रीयुत राहुलसिंहजी की टिप्पणी -<br /><br />''नेकी कर दरिया में डाल''.विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-26611651398266950122011-12-26T11:40:34.860+05:302011-12-26T11:40:34.860+05:30मेरी यह पोस्ट रतलाम से प्रकाशित होनेवाले साप्ताह...मेरी यह पोस्ट रतलाम से प्रकाशित होनेवाले साप्ताहिक उपग्रह में, मेरे स्तम्भ 'बिना विचारे' में प्रकाशित हुई थी। उस पर मन्दसौर के श्री वीरेन्द्र जैन की यह टिप्पणी प्राप्त हुई -<br /><br />असम्मान के बीज: (और) सम्मान की फसल।<br />वाह! वाह! विष्णु भाई, सार्थक रही पहल।।<br />छुटभैयों की श्रृंखला, तिकड़मबाजी कर्म।<br />समाचार छपते रहें, पहला उनका धर्म।।<br />दकियानूसी सोच पर, किया आपने वार।<br />कलम आपकी यूँ चली, जैसे तेज कटार।।<br />सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ै, लगे न कौड़ी दाम।<br />धन्धेबाजों के लिए, और नहीं कुछ काम।।<br />आत्मपरक लेखन नहीं, यह तो सच्ची सीख।<br />अपने फोटो छपवाकर, बाँट रहे वो भीख।। <br />‘बिना विचारे’ जो लिखा, बात बड़ी मन भाई।<br />‘उपग्रह’ अन्तिम पृष्ठ पर, अच्छी डाँट लगाई।।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-31628526993041732202011-12-20T17:27:47.612+05:302011-12-20T17:27:47.612+05:30@ Vishnukant Mishra
मुझे लगता है, ऐसे अनुभवधारियो...@ Vishnukant Mishra<br /><br />मुझे लगता है, ऐसे अनुभवधारियों की संख्या बहुत अधिक है किन्तु लिहाज में कोई भी बोलता नहीं। आपने मंच से अपनी असहमति व्यक्त की - यह सचमुच में साहसी और उल्लेखनीय बात है। ऐसे प्रसंग यदि निरन्तर होने लगें तो गरीबों का अपमान बन्द हो जाए। आपके आत्म बल को मैं नमन करता हूँ।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-58643582732804966542011-12-20T11:58:45.735+05:302011-12-20T11:58:45.735+05:30Bairagi ji ... Main aapki baat se puurntta hi sah...Bairagi ji ... Main aapki baat se puurntta hi sahmat hoon . mainey ek bar rotry club ke ex sammaroh meyn viklong jano ko trycycle baatney ke sammaroh meyn gaya tha.. vaha pr ek ek viklong ke sath rotariyan si ki patniyon das das bar photo khichvaa rahi thi .. mainey is baat pr manch se hi ghoor virodh kiya thaa .. tb se aise sammarohon me nahi jaata hooo. .... yeh english me type kr raha hooon kyoki hindi ho nahai pa rahi hai ...chma krna.Vishnukant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/09926642156870376388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-28772739838141306282011-12-17T15:19:59.089+05:302011-12-17T15:19:59.089+05:30आपने बिलकुल उचित किया - यह गलत है ही | यह "दा...आपने बिलकुल उचित किया - यह गलत है ही | यह "दान" नहीं होता - यह "दाता" का अहम् पोषण होता है | जिसे सच में दान देना होता है - वे अकेले में - या anonymously भी कर सकते हैं !!!Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-78418444222633951122011-12-16T16:57:39.892+05:302011-12-16T16:57:39.892+05:30आपने बिलकुल उचित कदम लिया, 'वे' शायद इसे क...आपने बिलकुल उचित कदम लिया, 'वे' शायद इसे कभी ना समझ पायेंगे।नितिन | Nitin Vyashttps://www.blogger.com/profile/14367374192560106388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-26821346846920476902011-12-16T16:54:34.247+05:302011-12-16T16:54:34.247+05:30आपने बिलकुल उचित कदम लिया, 'वे' शायद इसे क...आपने बिलकुल उचित कदम लिया, 'वे' शायद इसे कभी ना समझ पायेंगे।नितिन | Nitin Vyashttps://www.blogger.com/profile/14367374192560106388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-63281524015008142952011-12-16T09:11:45.686+05:302011-12-16T09:11:45.686+05:30एक दम सही विचारधारा. किसी एक कहानी में पढ़ा था की ...एक दम सही विचारधारा. किसी एक कहानी में पढ़ा था की अरब का कोई बादशाह जब भी दान देता था तो उपर की ओर निगाए करके देता था, इस चक्कर मै वो किसी की शक्ल नहीं देख पता था. बड़ी हिम्मत करके उसके एक मुलाजिम ने पूछा की ये उपर के ओर निगाहे करके दान देना के पीछे कारण क्या है, आप तो ये भी नहीं देख पते की किसको दान दिया? बादशाह कहता है की मै तो उपर वाले का शुक्रिया देता हूँ की इतनी ताकत होने के बावजूद भी उसने अपने बन्दों की मदद के लिए मुझे चुना. <br />आपके 'वे' को और उन जैसे कई औरो को अपना नजरिया बदलना चाहिए, समझना चाहिए की वो सिर्फ और सिर्फ एक जरिया हैं. वर्ना दान तो पैसे से करेंगे लेकिन जितना करेंगे उतना ही दिमागी रूप से गरीब भी होंगे.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-36992128070446705652011-12-16T07:03:21.450+05:302011-12-16T07:03:21.450+05:30दिखावा करनेवालों को भी मतलब भर के चमचे मिल रहे हों...दिखावा करनेवालों को भी मतलब भर के चमचे मिल रहे हों तो काम करने की ज़रूरत क्या है। और फिर काम में तो समय, श्रम, धन के साथ चिंतन-मनन भी लगता है, किसके पास इतना भेजा फाल्तू पड़ा है औरों के लिये। ऐसे लोग जिस दरवाज़े जायें, वहाँ कुपित किये जायें, तब भी समझने वाले नहीं।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-10183458766972043972011-12-16T06:43:31.360+05:302011-12-16T06:43:31.360+05:30दान का अभिमान बड़ा ही तुच्छ जान पड़ता है, पुण्य पर...दान का अभिमान बड़ा ही तुच्छ जान पड़ता है, पुण्य पर ग्रहण जैसा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-3649566517716078262011-12-15T22:56:58.104+05:302011-12-15T22:56:58.104+05:30उनका अप्रसन्न होना छु गया.....जब तक वे अप्रसन्न नह...उनका अप्रसन्न होना छु गया.....जब तक वे अप्रसन्न नहीं होंगे तब तक वे अपने दायरे में कैसे आयेंगे..... आपका अनुभव हमें एक नया आत बल देगा इन मठाधीशो से लड़ने के लिए...... himanshu rai saxenaAnonymousnoreply@blogger.com