tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post6202757651543562765..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: हिन्दी अखबार : पुणे के और मेरे अंचल के विष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-53086318823978584612012-12-07T19:23:39.593+05:302012-12-07T19:23:39.593+05:30भाई साहब,आपका ये लेख इंदौर के सभी अख़बार वाले पढ़ ले...भाई साहब,आपका ये लेख इंदौर के सभी अख़बार वाले पढ़ ले,एसा कुछ जतन होना चाहिए । ताकि हिन्दी की और चिंदी न हो और शर्म से ही कुछ सुधार जाये । नईदुनिया ने तो पत्रो के प्राण हरके केवल एक ढ़ाचा बना दिया है । जिसे छपास का शौक है उसके लिए तो ठीक है,लेकिन पाठकों को बिलकुल आनंद नही आ रहा है । Ravi Sharmahttps://www.blogger.com/profile/07075773362331619467noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-54865911055252565422012-12-05T22:38:43.305+05:302012-12-05T22:38:43.305+05:30देखना पहली बार किसी महिला कण्डक्टर को
- विष्णु बैर...देखना पहली बार किसी महिला कण्डक्टर को<br />- विष्णु बैरागी<br />@ एकोऽहम्<br /><br />महिलाएं हैं हर जगह, पांव रही पसार ।<br />हर क्षेत्र में जम रहीं, हर और विस्तार ।।virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-25286668017388986082012-12-05T22:38:34.405+05:302012-12-05T22:38:34.405+05:30देखना पहली बार किसी महिला कण्डक्टर को
- विष्णु बैर...देखना पहली बार किसी महिला कण्डक्टर को<br />- विष्णु बैरागी<br />@ एकोऽहम्<br /><br />महिलाएं हैं हर जगह, पांव रही पसार ।<br />हर क्षेत्र में जम रहीं, हर और विस्तार ।।virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-50433045579762894912012-12-05T22:35:01.073+05:302012-12-05T22:35:01.073+05:30आपका अवलोकन बहुत सटीक है, भाषा का बाज़ारीकरण होता ...आपका अवलोकन बहुत सटीक है, भाषा का बाज़ारीकरण होता जा रहा है उत्तर भारत में प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-51116067811495501542012-12-05T22:34:53.950+05:302012-12-05T22:34:53.950+05:30एक ज़माने में जनसत्ता भाषा के मामले में शीर्ष पर थ...एक ज़माने में जनसत्ता भाषा के मामले में शीर्ष पर था ,कालान्तर में नव भारत ने वह स्थान हथियाया लेकिन जल्दी ही इसे अंग्रेजी की छूत लग गई .शुरू में हमें "रिसर्चरों ने पता लगाया प्रयोग" अटपटा लगा .कालान्तर में हम भी इसके ग्रास बन गए .साइंसदान नहीं लिखेगें ये लोग साइंटिस्ट लिखेगे .विज्ञानी नहीं लिखेंगे ,स्साला इस अखबार का तो नाम ही NBT हो गया है जैसे यह भी तपेदिक की कोई किस्म हो .बढ़िया मुद्दे उठाए हैं आपने .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-71389921976967937002012-12-05T21:28:10.145+05:302012-12-05T21:28:10.145+05:30बढि़या, सूचनाप्रद और विचारणीय विश्लेषण.बढि़या, सूचनाप्रद और विचारणीय विश्लेषण.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-55155455450039197172012-12-05T19:57:15.856+05:302012-12-05T19:57:15.856+05:30दिनेश सर जी की टिपण्णी से पूर्णतः सहमत दिनेश सर जी की टिपण्णी से पूर्णतः सहमत Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-10534585888330106672012-12-05T12:02:38.819+05:302012-12-05T12:02:38.819+05:30आपने सौ टका सही बात कही है दिनेशजी। पता नहीं क्यो...आपने सौ टका सही बात कही है दिनेशजी। पता नहीं क्यों हमारे अखबार अंग्रेजी की यह गुलामी ढो रहे हैं और पूरे समाज पर जबरन लाद रहे हैं। यदि बोलियों के शब्द प्रयुक्त करें तो इनकी सम्पन्नता, रोचकता और स्थानीयता से उपजा आकर्षण - इन सबमें कितनी बढोतरी हो जाएगी, इसकी इन्हें कल्पना ही नहीं। ये लोग मानसिक रूप से गुलाम ही नहीं, दरिद्र भी हैं।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-34752569659151448172012-12-05T11:37:05.941+05:302012-12-05T11:37:05.941+05:30हिन्दी का प्राण उस की बोलियाँ हैं। हमें जब भी शब्द...हिन्दी का प्राण उस की बोलियाँ हैं। हमें जब भी शब्दों की जरूरत हो उन से न लें और अंग्रेजी के मोहताज हो जाएँ तो भाषा गरीब ही होगी अमीर नहीं। अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी को अंग्रेजी से नहीं बोलियों और भारतीय भाषाओं के शब्दों से समृद्ध किया है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com