tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post77381593985992008..comments2024-02-21T12:26:14.201+05:30Comments on एकोऽहम्: उजास की काली परछाइयांविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-18159533498089276752008-12-08T13:22:00.000+05:302008-12-08T13:22:00.000+05:30मार्मिक स्टोरी.किसी ज़माने में प्रभात किरण के हाल स...मार्मिक स्टोरी.किसी ज़माने में प्रभात किरण के हाल सम्पादक प्रकाश पुरोहित ने भी धर्मयुग में इसी विषय पर एके लेख लिखा था...सालों हो गए..अवचेतन से हटता नहीं; दूसरों का उत्सव आबाद करने वालों के घरों में कितने अंधेरे हैं <BR/>हमें कहाँ मालूम.संजय पटेलhttps://www.blogger.com/profile/04535969668109446884noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-11232517292247989782008-12-07T10:46:00.000+05:302008-12-07T10:46:00.000+05:30मन को कचोटने वाले दृश्य हैं ये वाकई हमारी अंतरात्म...मन को कचोटने वाले दृश्य हैं ये <BR/>वाकई हमारी अंतरात्मा मर गई क्या ?Hamara Ratlamhttps://www.blogger.com/profile/02895238645153199038noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-90025619895923631242008-12-07T03:14:00.000+05:302008-12-07T03:14:00.000+05:30बहुत ही शर्म दायक,क्या सच मे हम ने तरक्की की है ??...बहुत ही शर्म दायक,क्या सच मे हम ने तरक्की की है ??? मै अकसर ऎसी बातो पै लड पडता हुं, हम अपने बच्चो का कितना ख्याल रखते है, ओर इन्हे देख कर नफ़रत से मुंह फ़ेर लेते है, कहा है हमारी संवेदना....<BR/>आप ने बहुत अच्छा लाम किया समाज को आईना दिखया, <BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-41048347535187757632008-12-07T02:55:00.000+05:302008-12-07T02:55:00.000+05:30स्तुत्य प्रयास ! पर मात्र शब्दों की जुगाली से का म...स्तुत्य प्रयास ! पर मात्र शब्दों की जुगाली से का म नहीं चलेगा , न ही कोई समाधान निकलेगा . क्या हम ऐसे कार्य क्रमों का बहिष्कार करने का साहस जुटा पाएंगे जहाँ ऐसे शोषण के द्रश्य<BR/>दिखाई देते हैं ? ' आप णे क ई क र णो , चा ल वा दो , ज सो चा ली र्यो '......की क्षुद्र मा न सिक ता के कारण ही<BR/>शोषण बढ़ रहे हैं . किसी न किसी को तो सार्थक शुरुआत करना होगी और व ह कोई ' मैं ' क्यों नहीं ? पर<BR/>हम परा न्मुखी हो ग ये हैं .bhairav pharkyahttps://www.blogger.com/profile/08004698343793480561noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-24442473988350786772008-12-06T21:28:00.000+05:302008-12-06T21:28:00.000+05:30कुछ सोचने को मजबूर करने वाली संवेदनशील पोस्ट|कुछ सोचने को मजबूर करने वाली संवेदनशील पोस्ट|Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-86941641647843270692008-12-06T17:39:00.000+05:302008-12-06T17:39:00.000+05:30आपकी संवेदनशीलता सराहनीय है. कमी इन बच्चों में नही...आपकी संवेदनशीलता सराहनीय है. कमी इन बच्चों में नहीं है ये तो अपने परिवार के लिये गौरव है। कमी अभिजात्य वर्ग में है जो मोमबत्ती जला कर कर्तव्य का प्रदर्शन कर हाथ धो लेता है।नितिन | Nitin Vyashttps://www.blogger.com/profile/14367374192560106388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-25925160451180462082008-12-06T13:41:00.000+05:302008-12-06T13:41:00.000+05:30कभी कभी सोचता हूँ कब हमारा देश इतना आत्मनिर्भर ओर ...कभी कभी सोचता हूँ कब हमारा देश इतना आत्मनिर्भर ओर विकसित होगा जब ऐसे द्रश्य देखने को नही मिलेगे .....गरीबी ओर अशिक्षा इस देश की सबसे बड़ी बीमारी हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-78247248791473627462008-12-06T12:16:00.000+05:302008-12-06T12:16:00.000+05:30एक नन्ही लड़की किसी बारात में ऐसी ही लाइट उठाए हुए...एक नन्ही लड़की किसी बारात में ऐसी ही लाइट उठाए हुए चल रही थी.. लाइट की वजह से सैकड़ो की तादाद में मच्छर उसके चेहरे के आस पास मंडरा रहे थे.. एक हाथ से उसने लाइट पकड़ रखी थी और दूसरे से वो मच्छर भगा रही थी.. उस दिन मान में एक अजीब सी टीस उठी थी.. <BR/><BR/>ये दृश्य में कभी नही भूल सकता.. शायद कभी हम लोग इस और भी कुछ ध्यान दे.. <BR/><BR/>इस लेख पर आपकी सोच हावी रही.. उम्दा सोच..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-467814697894729402008-12-06T11:45:00.000+05:302008-12-06T11:45:00.000+05:30यह व्यवस्था का विद्रूप है। लेकिन उन रोशिनियों को उ...यह व्यवस्था का विद्रूप है। लेकिन उन रोशिनियों को उठाती हुई लड़कियों की सजीवता जीवन की अक्षुण्णता को प्रमाणित करती है कि यह जीवन भी कभी खिलेगा।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6965768620145074852008-12-06T10:08:00.000+05:302008-12-06T10:08:00.000+05:30इन बाल श्रमिकों के प्रति आपकी संवेदनशीलता सराहनीय ...इन बाल श्रमिकों के प्रति आपकी संवेदनशीलता सराहनीय है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-12888852502103659702008-12-06T10:06:00.000+05:302008-12-06T10:06:00.000+05:30विष्णु जी, बहुत बहुत धन्यवाद! शर्म तो आती ही है मग...विष्णु जी, बहुत बहुत धन्यवाद! <BR/>शर्म तो आती ही है मगर इन बच्चों की कर्मठता देखकर गर्व भी होता है - काश इन्हें थोडा भी सहारा मिल पाये तो यह बच्चे पहाडों से गंगा उतारने में सक्षम हैं.<BR/>जो लोग अपने बच्चे को ज़मीन पर पाँव नहीं रखने देते वे इन बच्चों को नंगे पैर कांच-कंकडों पर इतना बोझ और बिजली के जीवित तारों का जानलेवा ख़तरा देखकर भी कैसे अनदेखा कर सकते हैं - खासकर हमारे नौकरशाह?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com