मर गई, फिर भी सौभाग्‍य कांक्षिणी !

मैं हिन्‍दी के प्रति भावुक जरूर हूं किन्‍तु शुध्‍दता का आग्रही नहीं हूं क्‍यों कि जानता हूं कि शुध्‍द सोने के गहने नहीं बनते । फिर, भाषा तो 'बहती नदी' है । जितने घाटों को छुएगी, उतनी ही सम्‍पदा साथ लेती जाएगी । लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि वह नदी ही न रहे । लिहाजा, न्‍यूनतम सावधानी तो बरतनी ही चाहिए ।

दो उदाहरण प्रस्‍तुत हैं । निष्‍कर्ष खुद निकालिएगा ।

रतलाम निवासी, जैन मतावलम्‍बी एक महिला ने 31 दिनों के उपवास किए । जैन सम्‍प्रदाय में इसे 'तपस्‍या' कहा जाता है और इसका धार्मिक महत्‍व बहुत ज्‍यादा है । जिस परिवार का कोई सदस्‍य यह 'तपस्‍या' कर लेता है, उस परिवार के लिए यह सौभाग्‍य, गर्व और उत्‍सव का कारण बन जाता है । इस महिला की इस उपलब्धि को सार्वजनकि करने के लिए जो प्रेस नोट प्रसारित किया गया उसमें इसे 'सौभाग्‍य कांक्षिणी' के रूप में उल्‍लेखित किया गया जब कि यह महिला न केवल विवाहित है बल्कि बच्‍चों की मां भी है । मजे की बात यह रही कि अधिकांश अखबारों ने इस प्रेस नोट को ज्‍यों का त्‍यों छापा । इस स्थिति को क्‍या कहा जाए ? यह माना जाए कि यह बाल बच्‍चेदार सुहागन एक और विवाह करना चाहती है ?

लेकिन यह तो कुछ भी नहीं है । सबसे तेज गति से बढने का दावा करने वाले, बहु संस्‍करणीय, हिन्‍दी के एक अग्रणी अखबार ने तो कमाल ही कर दिया । एक महिला के अवसान पर, उसके उठावने के विज्ञापन (दिनांक 21 सितम्‍बर 2007) में इस अखबार ने उस महिला के नाम से पहले 'सौभाग्‍य कांक्षिणी' विशेषण प्रयुक्‍त किया है ।

मुमकिन है कि प्रेस नोट तैयार करने वाले और विज्ञापन बनाने वाले का भाषा ज्ञान शून्‍यवत रहा हो लेकिन उन्‍हें छापने वाले अखबारों का भाषा ज्ञान तो भरपूर रहा होगा ? वे तो भाषा की ही रोटी खाते हैं ? फिर, अखबारों को तो यह ध्‍यान भी रखना चाहिए कि लोग उनकी भाषा की नकल करते हैं । उनकी जिम्‍मेदारी तो और अधिक होती है ।

लिहाजा, शुध्‍दता का आग्रह न करते हुए भी, 'अर्थ का अनर्थ न करने का आग्रह' तो किया ही जा सकता है ।

यह आग्रह अनुचित है ?

4 comments:

  1. वे तो सौभाग्यकांक्षिणी हैं - पर उनके बारे में जानने का सौभाग्य तो आपने हमें दिया है. धन्यवाद.

    है मजेदार भाषा का बिना विचारे यह प्रयोग! :)

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  2. अगर आप इस लेख के साथ स्कैन किया चित्र भी डालते तो सोने में सुहागा होता.

    चित्र डालने की कला सीख लेनी चाहिए, जल्दी! :)

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  3. इधर टाइप कीजिए

    प्रिय भाई बब्बू !
    ये करिश्मा तो अख़बार वालों ने किया है पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि म.प्र.शा स न मे एक जन संपर्क अधिकारी
    और एक चर्चित कहानीकारा के परिवार में उनके भाई के द्वितीय चिर ंजीव की वैवाहिक-पत्रिका मे अत्यंत आ ग्रह से आमंत्रित करते हुए वर की
    माता ( जिन्हे दादी बने एक अर सा हो गया था ) के नाम के साथ भी सौभाग्यका ंक्षणी छ पा था . आँखें फटी रह गई पढ़ते-पढ़ते...........................

    --भै र व फ़ र क्या
    सेन रेमो न,कॅलिफॉर्निया,यू.एस.ए.;

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  4. सौभाग्याकांक्षिणी

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