tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post4010993453902890390..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: ‘अधिक’ को बेचने के बजाय बाँट कर भी कृतज्ञविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-67193462461303863182018-02-10T00:51:21.816+05:302018-02-10T00:51:21.816+05:30अति उत्तम सर जी!अति उत्तम सर जी!तकनीक द्रष्टाhttps://taknikdrashta.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-26407726946022256132018-02-09T09:35:12.599+05:302018-02-09T09:35:12.599+05:30कॉलोनी कल्चर भी कुछ अजीब है, जब जरूरत होती है तो ल...कॉलोनी कल्चर भी कुछ अजीब है, जब जरूरत होती है तो लोग कहते हैं कि मेरा किसी ने साथ नहीं दिया और जब जरूरत नहीं तो दूर से ही राम-राम। अच्छा संस्मरण।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-48596516369341342352018-02-08T11:35:40.914+05:302018-02-08T11:35:40.914+05:30बहुत ही सहजता से बहुत महत्वपूर्ण बात कर गए हैं दाद...बहुत ही सहजता से बहुत महत्वपूर्ण बात कर गए हैं दादा ,बहुत अच्छा लगता है जड़ो से सरोकारों की बात की जाती है। गाहे-बगाहे हम भी इसी कॉलोनी कल्चर के शिकार हैं। <br />ऑफिस से घर जा कर ऐसा लगता है कि जैसे किसी जेल में कैद हो अपने आप को कैद कर लिया है ईश्वर करें सभी को ऐसा पड़ोस मिले और सभी मनुष्य बन पाए। बहुत छोटे में बहुत बड़ा लिखा है आपने, सलामmahavirhttps://www.blogger.com/profile/17441336950724313008noreply@blogger.com