tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post9212715790413128843..comments2024-03-22T11:42:48.109+05:30Comments on एकोऽहम्: सरोजकुमार होने का मतलबविष्णु बैरागीhttp://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-24640512524957446882012-04-30T10:09:47.174+05:302012-04-30T10:09:47.174+05:30गिरीश वर्मा
मेरी अधकचरी कवितायें पूरी गम्भीरता से ...गिरीश वर्मा<br />मेरी अधकचरी कवितायें पूरी गम्भीरता से पढ़ना और उन पर अपनी राय देना उनके प्रति एक बड़ा आत्मीय भाव पैदा कर देता है-एक शेर याद<br />आता है -'आपसे झुक कर जो मिला होगा,क़द में वो आपसे बड़ा होगा ' मेरे दूरदर्शन से सेवामुक्त होने के बाद ,ये उन्ही का आग्रह था कि<br />कुछ करो ,तुम्हें करना चाहिये और आज मैंने कई बरस बाद अपनी पेंटिग और कवितायें फिर शुरू की हैं, मैं उन्हें ह्र्दय से सादुवाद देना चाहता हूं -आदमी का सहज -सरल होना कितना कठिन है ये समझा जा सकता है चूंकि हर कोई सरोज कुमार नहीं हो सकता ।girish vermahttp://gkvbhopal.blog.co.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-69044769093639536992012-04-23T06:28:25.399+05:302012-04-23T06:28:25.399+05:30सरोजकुमार जी को पहली बार तब देखा था जब कवि सम्मेलन...सरोजकुमार जी को पहली बार तब देखा था जब कवि सम्मेलन के लिए खरगोन आए थे...और उससे भी पहले मेरे घर मेरे पिताजी से मिलने...इसलिए कि पिताजी उनके शिक्षक रहे थे...शायद १९७५-७६ की बात होगी ये ...फ़िर वर्षों बाद इन्दौर आने पर एक-दो बार मुलाकात हुई संयोग से..पर पिताजी के लिए सम्मान वही...और इस बार जनवरी में बच्चों की शादी पर मेरे सामान्य बुलावे पर आशिर्वाद देने पहुंचे...सिर्फ़ इसलिए कि-‘सर’ तो आज भी मेरे साथ है,और वे सर के परिवार के साथ हैं...उन्हें सादर चरण स्पर्श...<br />वल्कल की बात से मैं भी सहमत ... और बिना पब्लिक डिमांड के भी हमारे लिए आपको ये करना ही चाहिए....Archana Chaojihttps://www.blogger.com/profile/16725177194204665316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-86446647543396908952012-04-19T05:23:33.960+05:302012-04-19T05:23:33.960+05:30एक ही आलेख में जीवन के इतने सारे पक्ष एकसाथ सामने ...एक ही आलेख में जीवन के इतने सारे पक्ष एकसाथ सामने आ गये। अखबार के रूप में ही सही, एक आदर्श का पतन दुखदाई है और इस हक़ीक़त को हज़म कर पाना कठिन है। सरोज जी और उनके सहारे अद्दहमाण के दर्शन कर पाना भी आपके सहारे ही हुआ है, आभार। कवितायें आप अवश्य पढिये और रिकॉर्ड कीजिये। साधारण पर एक साधारण सा विचार मेरा भी है:<br /><br />ईश्वर को साधारण प्रिय है, बार बार रचता क्यों वरना <br />खास बनूं यह चाह नहीं है, मुझको भी साधारण रहनाSmart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-87039316981064993782012-04-19T05:21:18.339+05:302012-04-19T05:21:18.339+05:30This comment has been removed by the author.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-49003570866883628012012-04-19T05:13:27.967+05:302012-04-19T05:13:27.967+05:30मैं तुम्हारे साथ हूँ वल्कल! शुभस्य शीघ्रम!मैं तुम्हारे साथ हूँ वल्कल! शुभस्य शीघ्रम!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-88204550637802340422012-04-18T20:42:38.698+05:302012-04-18T20:42:38.698+05:30ई-मेल से प्राप्त, श्री सुरेशचन्द्रजी करमरकर, रतल...ई-मेल से प्राप्त, श्री सुरेशचन्द्रजी करमरकर, रतलाम की टिप्पणी-<br /><br />विष्णुजी! ''नई दुनिया'' के इस घटनाक्रम से मैं ऐसा दुखी हुआ कि किसी से कहने की सोच नहीं कह सकता।कारण, लोग ऐसी बातों को अनावश्यक कहतें हैं। इस अख़बार ने मुझे हिन्दी सिखाई है। चलो, एक आप तो मिले जो इस अखबार को लेकर इतने सम्वेदनशील हैं।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-6790308773974607012012-04-18T16:57:40.736+05:302012-04-18T16:57:40.736+05:30वल्कल से सहमत।वल्कल से सहमत।नितिन | Nitin Vyashttps://www.blogger.com/profile/14367374192560106388noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-58973308227191857052012-04-18T09:37:40.305+05:302012-04-18T09:37:40.305+05:30हमारा लेखन भी मोटा मोटा है, बस वही भाता है, बारीकि...हमारा लेखन भी मोटा मोटा है, बस वही भाता है, बारीकियत परेशान करती है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-22277023318115753442012-04-18T07:38:57.605+05:302012-04-18T07:38:57.605+05:30विगत वर्षों में 'अनभिज्ञता' में ही 'नई...विगत वर्षों में 'अनभिज्ञता' में ही 'नईदुनिया' पढ़ने की 'आदत' धीरे-धीरे छूट गयी, जबकि शब्दों और भाषा के प्रति 'संवेदनशीलता' ने आपको उससे जुदा किया. 'साहित्यिक स्तर' की गिरावट भी शायद हमें उससे दूर ले गयी.<br />'सरोज कुमार जी' की रचनाओं का मैं भी प्रशंसक रहा हूँ, उनकी उल्लेखित पुस्तक कही उपलब्ध हो तो मैं अवश्य खरीदना चाहूँगा.Mansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-24611726069571595972012-04-17T21:37:57.874+05:302012-04-17T21:37:57.874+05:30"Lux" Uni-Liver banaaye ya koi aur Nir..."Lux" Uni-Liver banaaye ya koi aur Nirmata , upbhokta ko koi fark nahi padta ,yadi Lux ki maulikta evam gunvatta poorvavat bani rahe.yahan dukhad pahloo yah hai ki ullekhit avadhi me jin haathon me is akhabaar ka nizaam aaya, ve doordarshee saabit nahi huye ; aur ksharan ke in haalaat/daur me yah hashra to hona hi tha. Smaran rakhen, Neev ke pattharon ko bhulaakar "Kangooron" ki saraahna Dhaanche ko majbootee nahi pradaan karatee . Kisko bataaye ki Ateet ke gungaan maatra se bhavishya nahi sanwarataa.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-66261212110658730722012-04-17T21:35:10.257+05:302012-04-17T21:35:10.257+05:30पात्र पत्रिकाओं में आजकल मालिकों का ही बोल बाला है...पात्र पत्रिकाओं में आजकल मालिकों का ही बोल बाला है. उनकी नज़रों में लेखक भी तो उनके कुली ही हुए. वैसे आपने बड़े सुन्दर तरीके से सरोज कुमार जी से परिचित कराया. आगे उनकी कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6032637659660002131.post-10753043583300619732012-04-17T16:02:06.493+05:302012-04-17T16:02:06.493+05:30मजा आ जाये यदि ये कवितायें आपकी आवाज़ मे सुनने को ...मजा आ जाये यदि ये कवितायें आपकी आवाज़ मे सुनने को मिल जाये. ऐसा संभव है ये तो मैं जानता हूँ. <br />लेकिन आपके और पाठक-गण की राय भी जानना चाहता हूँ. यदि 'पब्लिक डिमांड' रही तो साथ बैठ कर ये प्रयोग भी करेंगे.वल्कलhttps://www.blogger.com/profile/10916645706304813214noreply@blogger.com