'बर्लिन से बब्बू को' - चौथा पत्र: पाँचवाँ हिस्सा
दफ्तर हो, कारखाना हो या कोई और संस्थान हर जगह तीन पदाधिकारी निश्चित तौर पर रहते हैं। पहला मैनेजर या जनरल मैनेजर, दूसरा ट्रेड यूनियन का पदाधिकारी और तीरा पार्टी का एक सक्षम पदाधिकारी। दोनों का तालमेल अनूठाा होता है। विवाद पहले ये तीनों आपस में निपटाते हैं। यदि इन तीन से विवाद नहीं निपटे तो फिर बात आगे जाती है। पर उसका अन्तिम निर्णय पार्टी के दफ्तर में होता है। इस देश में न्यायाधीश नियुक्त नहीं होते, चुने जाते हैं। इस देश में पुलिस पहुँचती नहीं, प्रकट होती है। कहीं कोई ऐसी वैसी बात हुई तो दस सेकण्ड के भीतर पुलिस ने वहाँ प्रकट हो जाना चाहिए अन्यथा पुलिस पर सख्त कार्यवाही होती है। सामान्यतया पुलिस दिखाई नहीं पड़ती है। जीवन के कार्य कलाप में दखल भी नहीं देती है। पर ज्यों ही कानून टूटा कि दस सेकण्ड में पुलिस न जाने कहाँ से प्रकट हो जाती है। पता ही नहीं चलता कि यह पुलिस वाला कहाँ से आ गया। हर पुलिसमेन के पास अपनी मोटर सायकल और वायरलेस सेट रहता है। ट्रेफिक पुलिस का सारा काम महिलाएँ देखती हैं और उनके पास एक लम्बा, डण्डे जैसा शस्त्र होता है जो दूर से केवल डन्डे जैसा लगता है, पर उसके भीतर वस्तुतः होता है, दूर तक मार करने वाला एक तमंचा। जो भी वाहन ट्रेफिक का नियम तोड़ता है और चेतावनी की अवहेलना करता है, उसका टायर वहीं फोड़ दिया जाता है। चालक की सजा अलग और सवारियों को अलग से दण्ड।
इस सप्ताह हम लोग संसार प्रसिद्ध ओरवो फिल्म कम्पनी के उस प्रभाग को देखने गये जहाँ एक्सरे की निगेटिव फिल्में बनाई जाती हैं। हमें बड़ी उमंग थी कि हम यह फैक्ट्री घूम-फिर कर देखेंगे। पर संगोष्ठी और प्रश्नोत्तर काल के बाद जब हमने फैक्ट्री देखने की इच्छा व्यक्त की तो हमें बताया गया कि महाशय! सारा निर्माण कार्य निगेटिव फिल्मों का होता है और आप जानते हैं कि ऐसा निर्माण अँधेरे में किया जाता है। मशीनें सब ऑटोमेटिक हैं। आप मात्र मशीनों का शोर सुन सकते हैं। देख कुछ नहीं सकते। फिर एक विशेष तरह के इन्फ्रारेड प्रकाश में से आपको गुजरना पड़ेगाए जिसके लिये आपके पास विशेष पोषाक होना चाहिये। इस स्थिति में उस फैक्ट्री के भीतर जाना ही हमारे लिये असम्भव था। जाते भी कैसे। जब मैंने वहाँ बताया कि मेरा बड़ा बेटा फिल्म में सहायक कैमरामेन है और ओरवो फिल्म उसकी प्रिय फिल्म है, तो प्रबन्धक बहुत प्रसन्न हुए।
ओरवो फिल्म कम्पनी की एक महिला कामगार के बच्चेे से जब दादा ने नमस्ते
की तो जवाब में बच्चे ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। बच्चे की माँ
ने कहा 'बैरागीजी इसे नमस्ते करना सिखाईये।' और दादा ने बच्चे को नमस्ते
करना सिखाया।
इस समारोह में मैंने गीत पढ़े। पर समारोह का सबसे अधिक अविस्मरणीय प्रसंग यदि है तो वह है भाई दिनेश गोस्वामी का पैंतालीस मिनिट का धुँआधार अंग्रेजी में भाषण और भारत सरकार की उपलब्धियों पर शानदार भाषण। इस भाषण को भी कभी नहीं भुला पाऊँगा। उन्होंने इतना ही अच्छा भाषण काॅकटेल पार्टी में भी दिया। जैसा कि तय था हमारी नेता श्रीमती फूलरेणु गुहा, श्री प्रफुल्ल गढ़ई और श्री प्रसाद साहब कल मास्को के लिये रवाना हो चुके हैं। नेता की अनुपस्थिति में केवल दो दिन के लिये हमने कोई नया नेता नहीं चुना। पर दिनेश भाई अपने आप, सबके द्वारा हमारे मुख्य प्रवक्ता मान लिये गये। उनके जिम्मे कस्टम की क्लियरेंस तक का सारा काम उसी तरह कर दिया गया है, जिस तरह कि गुहा दीदी को करना होता। वैसे हमारे प्रतिनिधि मण्डल के सचिव श्री श्रीधरन स्वयं सारा काम देख ही रहे हैं।
-----
चौथा पत्र: छठवाँ हिस्सा निरन्तर
अविस्मरणीय संस्मरण । अनुशासन कोई जर्मनी से सीखें ।
ReplyDelete