पुत्र की विदेश यात्रा पर पिता की मनःस्थिति

                                                                                                                                                  

दादा की विदेश यात्रा कितनी आकस्मिक रही, यह पिताजी श्री द्वारकादासजी बैरागी के इस पत्र से स्पष्ट है। पिताजी को भी तब मालूम  हुआ जब “दशपुर दर्शन” में समाचार छपा। अपने पुत्र की विदेश यात्रा का समाचार पढ़कर पिता पर हुई प्रतिक्रिया भी इस पत्र में स्पष्ट है। यह पत्र दादा को पिताजी ने विदा करते समय दिया था और साथ ही यह निर्देश भी दिया था कि वे इस पत्र को नीमच से रेल में बैठने के बाद पढ़ेंं। दादा की स्वदेश वापसी के बाद “दशपुर-दर्शन” को यह पत्र प्राप्त हुआ।







श्री परमात्मने नमः
24.8.76
मनासा

चि. सपूत नन्दरामदास (बालकवि)
आज दिन को दो बजे “दशपुर-दर्शन” आया। मैं श्रीमान मास्टर सा. रामनारायणजी के साथ चौपड़ खेल रहा। पेपर मुखपृष्ठ पर तुम्हारी विदेश यात्रा शीर्षक देखा। चौपड़ की कौड़ियाँ हाथ में रह गईं। कालम पढ़ा, हृदय में प्रेमाश्रु बह निकले। खेलना एकदम बन्द हुआ। एकदम से दस्त भी आ गई। टट्टी में गया। टट्टी भी आई साफ साफ और साथ साथ नेत्रों में आँसू भी बहुत-बहुत बह निकले।

बेटा सुखी रहो सप्रेम विदेश जाओ। अपना एवं भारत देश का गौरव बढ़ाओ ख्याति प्राप्त करो। ईश्वर तुम्हारी यात्रा सफल करे यश दे एवं सुख सन्तोष यश प्राप्त कर फिर मिलो और मैं मेरी इसी जीवनी में गौरवान्वित होऊँ।

अनेकानेक शुभाशीर्वाद।

द्वारकादास बैरागी

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