'बर्लिन से बब्बू को' के प्रकाशन की समापन कडी।
।।श्री।।
बालकवि बैरागी फोन 55
मनासा (म.प्र.)
जिला मन्दसौर
जिन दिनों बर्लिन और जी. डी. आर. के अन्य हिस्सों में मैं ये पत्र “बब्बू” को लिख रहा था तब मुझे भी पता नहीं था कि इन पत्रों का उपयोग इस तरह हो जायेगा। सामान्यतया मैंने इन पत्रों को इसी उद्देश्य से लिखा था कि मेरे अपने, स्वजन और परिजन जी. डी. आर. के बारे में मुझसे क्या-क्या प्रश्न कर सकते हैं। वास्तव में ये सारे पत्र “बब्बू” की अमानत थे पर भारत आने पर मैंने पाया कि “बब्बू” ने इन पत्रों को “दशपुर-दर्शन” के माध्यम से सामान्य जनता तक पहुँचा दिया है। सुखद समाचार मेरे लिये यह रहा कि इन पत्रों का सर्वत्र स्वागत हुआ। और भी सुखद समाचार यह रहा कि जब डाक व्यवस्था की गड़बड़ी से मेरे कुछ पत्र मेरी भारत वापसी पर भी यहाँ नहीं मिले और “दशपुर दर्शन” में इस प्रकाशन का क्रम टूटता-सा लगा तो मेरी डाक में इन पत्रों के प्रकाशन की माँग के पत्र बढ़ गये।
किसी दूर देश के बारे में अपना प्रिय पात्र क्या राय बनाता है इसको जानने के लिये लोग उतावले और आतुर रहते हैं। मैं इसे उनका अधिकार मानता हूँ। इन पत्रों को लिखते समय मेरा उद्देश्य किसी भी तरह से वह नहीं था जो कि सामान्य लोग समझ लेते हैं। पर यदि ये पत्र कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हैं और जी. डी. आर. के बारे में सामान्य पाठक की जिज्ञासा को शान्त करते हैं तो बेशक हम दो भाईयों के बीच का यह निजी पत्राचार मेरा लोकप्रिय लेखन मान लिया जाना चाहिये।
इस प्रकाशन का सारा श्रेय जिन मित्रों को जाता है उनके नाम देना मेरी विवशता है। सबसे पहिले तो मैं “बब्बू” याने मेरे सगे छोटे भाई विष्णु बैरागी का आभारी हूँ कि उसने इस निजत्व को भी महत्व में विसर्जित कर दिया। फिर “दशपुर दर्शन” के कर्ताधर्ता भाई सोभाग्यमल जैन “करुण” का आभार मैंने मानना चहिये। प्रकाशन के लिये उनका निर्णय महत्वपूर्ण रहा होगा। सम्पादक मण्डल के सदस्य भाई श्री हेमेन्द्रकुमारजी “त्यागी”, श्री राजा दुबे और भाई विजय बैरागी को मैं धन्यवाद देता हूँ कि इस छोटे से काम को अपने साहित्यिक श्रम से उन्होंने पठनीय बना दिया।
पाठकों का ऋणी तो मैं रहा ही हूँ।
समाप्त मैं इस तरह करूँगा कि जी. डी. आर. मात्र इतना ही और ऐसा ही नहीं है। एक महान् देश के बारे में लिखना पत्र साहित्य के बाहर भी कुछ अर्थ रखता है।
धन्यवाद
22 अक्टूबर 1976 बालकवि बैरागी
दीपावली
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