श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की सोलहवीं कविता
खूब
‘शीलवती आग’ की सोलहवीं कविता
खूब
तुम!
जो बकौल तुम्हारे
कभी चुप कर दिये गए थे
अब क्यों चुप हो ?
अँधेरे में प्रार्थना करना
और उजाले में गालियाँ बकना
कायरता नहीं तो
और क्या हैं?
बुरा मत मानो
बाशऊर लोग
तब भी बोल रहे थे
और अब भी बोल रहे हैं।
बेशऊर लोग तब भी चुप थे
और अब भी चुप हैं।
ओर सनद कर लो कि वे
कल भी चुप रहेंगे।
चुप्पी तुम्हारा चरित्र है
अँधेरा तुम्हारा अध्यात्म
और आतंक तुम्हारा आत्मीय मित्र है।
कोई फर्क नहीं है तुम्हारी गिड़गिडाहट
और गुर्राहट में
खूब जी लेते हो यार!
झुँझलाहट और घबड़ाहट में।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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