श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की अठारहवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की अठारहवीं कविता
उनका पेशा
न वे आपके
प्रेमी हैं, न पुजारी
सेवक या उपासक
तो हैं ही नहीं।
भक्त वे हो नहीं सकते।
प्रेमी हैं, न पुजारी
सेवक या उपासक
तो हैं ही नहीं।
भक्त वे हो नहीं सकते।
उनके इष्ट या अभीष्ट का
अनुमान नहीं है आपको
बड़े अगम्य हैं वे
इसीलिए प्रणम्य हैं वे।
जो लगते हैं आपको
आराधक जैसे
सीधे-सादे साधक जैसे।
उनकी नन्दी मुद्रा
उनका गरुड़ासन
सब हैं सोद्देश्य
वे चाहते हैं बस
आपकी कृपा विशेष
कि केवल एक बार
आप उनकी पीठ भर
सहला दें
ताकि वे आपके नाम से
दुनिया को दहला दें।
हर ताकतवर के सामने
उकड़ूँ बैठना
उनका संस्कार है
उकड़े बैठकर
अपनी पीठ खोल देना
उनका पेशा है
व्यापार है।
इसमें
न पूँजी लगती है
न पैसा
जिस पेशे में
नफा ही नफा हो
उसमें सोच और
संकोच कैसा ?
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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