श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की बीसवीं कविता
सुबह का भूला
‘शीलवती आग’ की बीसवीं कविता
सुबह का भूला
कोई भी अनुकूल नहीं है
न आकाश, न हवा, न पानी
और राम तेरी मेहरबानी
आग का तो कोई सवाल ही नहीं है।
या तो वह बुझ गईं है
या हो गई हे बर्फ।
अब बची केवल धरती
सो उससे सम्वाद टूटे
एक अरसा बीत गया।
इतना क्यों सहती हैँ वह?
धीरज का पाठ क्यों देती है वह?
इसी गुस्से में उसे पीठ दे दी।
अब कोई भी अनुकूल नहीं है।
जिनसे बना है मिट्टी का यह काँच
वे पाँच के पाँच
बिलकुल प्रतिकूल हो गए।
सारे रेत महल हवाई किलों की तरह
फिजूल हो गए।
तब फिर किससे बोलूँ?
मन की गाँठ किसके सामने खोलूँ?
सोचता हूँ धरती से ही शुरुआत करूँ
बाकी चार के लिए भी उसी से बात करूँ
अपनी ही जमीन से जुड़ने में
आखिर हर्ज क्या है?
शायद वही बता सके कि
आग, आकाश, हवा और पानी को
इन दिनों मर्ज क्या है ?
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न आकाश, न हवा, न पानी
और राम तेरी मेहरबानी
आग का तो कोई सवाल ही नहीं है।
या तो वह बुझ गईं है
या हो गई हे बर्फ।
अब बची केवल धरती
सो उससे सम्वाद टूटे
एक अरसा बीत गया।
इतना क्यों सहती हैँ वह?
धीरज का पाठ क्यों देती है वह?
इसी गुस्से में उसे पीठ दे दी।
अब कोई भी अनुकूल नहीं है।
जिनसे बना है मिट्टी का यह काँच
वे पाँच के पाँच
बिलकुल प्रतिकूल हो गए।
सारे रेत महल हवाई किलों की तरह
फिजूल हो गए।
तब फिर किससे बोलूँ?
मन की गाँठ किसके सामने खोलूँ?
सोचता हूँ धरती से ही शुरुआत करूँ
बाकी चार के लिए भी उसी से बात करूँ
अपनी ही जमीन से जुड़ने में
आखिर हर्ज क्या है?
शायद वही बता सके कि
आग, आकाश, हवा और पानी को
इन दिनों मर्ज क्या है ?
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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