वशीकरण के खिलाफ

 



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की पचीसवीं कविता 





वशीकरण के खिलाफ

एक पागल सा अँधेरा
थाम कर उँगली हमारी चल पड़ा
और हम भी अनमने से चल पड़े हैं
राम जाने किस तरफ!
मंजिलों की बात
अब बस बात है
अन्ततः यह कौन-से उत्सर्ग की
सौगात है?
एक भ्रम का जाल टूटा
किन्तु जाला मोह की मकड़ी
नया फिर बुन रही है
और घायल पीढ़ियाँ
नोंचती हैं बाल, माथा धुन रही हैं!
हर तरफ दिग्पाल पढ़ते लग रहे हैं
मन्त्र काले
नींव की निष्ठा निरीहों सी पड़ी है
और पकते जा रहे हैं पीठ के छाले
एक पूरी पक्व पीढ़ी
फँस गई है टोटका करते हुए
टटपूँजिए मक्कार ओझा के अजाने देश में।
मिर्च, नींबू और अभिमन्त्रित उड़द
वाली लरजती मुट्ठियाँ हर ओर हैं
नव वशीकरणी हवा का स्पर्श है 
परिवेश में।
जब गणित ही दोगला होकर दगा देने लगे
तो राष्ट्रध्वज की डोरियों को
खींचता है कौन इसको छोड़िये
शून्य में हर अंक को करके समाहित
ठीक सच्चे समीकरण की ओर
युग को मोड़िये।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये 
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग






यह  संग्रह  हम  सबकी  ‘रूना’  ने  उपलब्ध  कराया  है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



रूना के पास उपलब्ध, ‘शीलवती आग’ की प्रति के कुछ पन्ने गायब थे। संग्रह अधूरा था। कृपावन्त राधेश्यामजी शर्मा ने गुम पन्ने उपलब्ध करा कर यह अधूरापन दूर किया। राधेश्यामजी, दादा श्री बालकवि बैरागी के परम् प्रशंसक हैं। वे नीमच के शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता हैं। उनका पता एलआईजी 64, इन्दिरा नगर, नीमच-458441 तथा मोबाइल नम्बर 88891 27214 है। 














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