श्री बालकवि बैरागी के बाल-गीत संग्रह
‘गाओ बच्चों’ का सातवाँ बाल गीत
‘गाओ बच्चों’ का सातवाँ बाल गीत
रिश्ते
महक रही है रिश्तों से ही जीवन की फुलवारी
टूट नहीं पायेंगे रिश्ते, रिश्तों की बलिहारी
मीठे रिश्तों की बलिहारी
टूट नहीं पायेंगे रिश्ते, रिश्तों की बलिहारी
मीठे रिश्तों की बलिहारी
बेटी क्या है खुशबू घर की, पवन पिया संग जाए
धनुआ जैसी पहरेदारी, बेटा ही कर पाए
नील गगन का रूप पिता है, जनम-जनम सुखकारी
मीठे रिश्तों की बलिहारी।।
तुलसी बिरवा जैसी पावन, बहना माँ की जायी
ईश्वर का वरान सुहावन, परबत जैसा भाई
करुणाकर की करुणा को ही नाम मिला महतारी
मीठे रिश्तों की बलिहारी।।
पति को नाम दिया परमेश्वर, कुंकुम में रंग डाला
घर की लक्ष्मी पत्नी ने ही, पाला वंश उजाला
रिश्तों के रेशम में लिपटी, दुनिया लगती प्यारी
मीठे रिश्तों की बलिहारी।।
-----
संग्रह के ब्यौरे
गाओ बच्चों: बाल-गीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर
पटना, भोपाल, लखनऊ-226018
चित्रकार: कांजीलाल एवं गोपेश्वर, वाराणसी
कवर: चड्ढा चित्रकार, दिल्ली
संस्करण: प्रथम 26 जनवरी 1984
मूल्य: पाँच रुपये पच्चास पैसे
मुद्रक: देश सेवा प्रेस
10, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद
बाल-गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.