श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की इक्कीसवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की इक्कीसवीं कविता
हिन्दी
हिन्दी नहीं किसी की दासी
हिन्दी अपने घर की रानी
हिन्दी है भारत की भाषा
हिन्दी है गंगा का पानी,
हिन्दी अपने घर की रानी।
हिन्दी अपने घर की रानी
हिन्दी है भारत की भाषा
हिन्दी है गंगा का पानी,
हिन्दी अपने घर की रानी।
- 1 -
भारत में ही जनमी हिन्दी
भारत में परवान चढ़ी
भारत इसका घर-आँगन हैं
नहीं किसी से कभी लड़ी.
सबको गले लगाकर चलती
करती सबकी अगवानी
हिन्दी अपने घर की रानी।
- 2 -
खेतों-खलिहानों की बोली
आँगन-आँगन की रांगोली
सत्यं-शिवं-सरलतम-सुन्दर
पूजा की यह चन्दन रोली
जनम-जनम, जन-जन की भाषा
कण-कण की वाणी कल्याणी
हिन्दी अपने घर की रानी।
- 3 -
भूख नहीं है इसे राज की
प्यास नहीं है इसे ताज की
करती आठों पहर तपस्या
रचना करती नव समाज की
याचक नहीं, नहीं है आश्रित
सदा सनातन अवढर दानी
हिन्दी अपने घर की रानी।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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