श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की तीसवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की तीसवीं कविता
उनका पोस्टर
मेरे शहीदों!
आज तक मैंने
किसी से नहीं कहा
कि
तुम्हारी शहादत के
बाद भी
तुम्हारे नाम पर
मैंने कितना कुछ सहा।
यूँ तो मेरा सिर
हमेशा नीचा है
तुम्हारे सामने
लेकिन बीसवीं सदी का
सबसे बड़ा अपराधी
(वह भी तुम्हारा)
बना दिया है
मुझे राम ने।
आज तक मैंने
किसी से नहीं कहा
कि
तुम्हारी शहादत के
बाद भी
तुम्हारे नाम पर
मैंने कितना कुछ सहा।
यूँ तो मेरा सिर
हमेशा नीचा है
तुम्हारे सामने
लेकिन बीसवीं सदी का
सबसे बड़ा अपराधी
(वह भी तुम्हारा)
बना दिया है
मुझे राम ने।
मैं खुद को
तुम्हारा निर्लज्ज अपराधी
घोषित करता हूँ
माँगता हूँ तुमसे
कठोर सजा
कि,
तुम जब गाड़कर
आकाश पर मेरी ध्वजा
वापस नहीं लौटे
तब,
उन्होंने मेरी दीवार पर
अपना पोस्टर
बड़े दर्प से चिपकाया
और मुझे चेताया--
‘देखो!
यह पोस्टर हम
लेई या गोंद से नहीं
शहीदों के खून से
चिपका रहे हैं
ससम्मान रखवाली करना
इस पोस्टर की
हम दूसरी दीवार की
तलाश में जा रहे हैं।’
अब,
दीवार मेरी
पोस्टर उनका
और खून तुम्हारा।
मातम मेरे घर
और उनके घर
बेशर्म खुशियों का फव्वारा।
मैं चीखना चाहता था
पर चीख नहीं पाया
इस कायर भीड़ से
अलग दिख नहीं पाया।
मेरे शहीदों!
मेरी दीवार पर
उनके पोस्टर के पीछे लगा
तुम्हारा खून पपड़ा रहा है
और यह पपड़ाता लहू
मुझे न जाने
कौन-कौन से पाठ
पढ़ा रहा है?
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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