यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।
लगे, फिर श्रम की थाप लगे
फलें सृजन के स्वर फसलों में
युग यौवन उमगे
लगे, फिर श्रम की थाप लगे।
प्यास बुझे प्यासी धरती की
कोख फले बन्ध्या परती की
माटी का मन सुबरन करने
हल का सारा आलस हरने
नई चेतना लेकर युग का
गोरखनाथ जगे
लगे, फिर श्रम की थाप लगे।
सिसको मत भूखे खलिहानों
पीढ़ी का पौरुष पहिचानो
मानिक मोती फिर बरसेंगे
सौ-सौ स्वर्ग तुम्हें तरसेंगे
सजग सहोदर हैं मेहनत के
लोहित-लाल सगे
लगे, फिर श्रम की थाप लगे।
सजग सहोदर हैं मेहनत के
लोहित-लाल सगे
लगे, फिर श्रम की थाप लगे।
आओ हम कुछ ऐसा कर दें
नये स्वेद का सागर भर दें
लाज रखें नव-तरुणाई की
कालिख धो दें अरुणाई की
नवल-भैरवी के राते-रंग
युग के गीत रँगे
लगे, फिर श्रम की थाप लगे।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।
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