श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की पाँचवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की पाँचवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
आज तो करुणा करो
समर्पित किया गया है।
आज तो करुणा करो
हर शिरा ने शीश तुमको ही झुकाया
नाथ! तुम ही हो प्रभंजन
आज तो करुणा करो
000
वन्दना की वेदना से मैं अपरिचित
पर निरत हूँ वन्दना में रात दिन
तुम सुपरिचित मैं अपरिचित
आ गई कजरी निशा कितनी भयावह प्रातः बिन
हर निशा ने शीश तुमको ही झुकाया
नाथ! तुम ही हो किरण कण
आज तो करुणा करो
हर शिरा ने शीश तुमको ही झुकाया
000
व्यग्र, व्याकुल, विरह विगलित
छटपटाते प्राण का मैं क्या करूँ
डूबती तम तोम में
पल-पल सिसकती वर्तिका को
छोड़ कर मन्दिर तुम्हारा
और किसके पग धरूँ
हर शिखा ने शीश तुमको ही झुकाया
नाथ! तुम ही हो कवच-मन
आज तो करुणा करो
हर शिरा ने शीश तुमको ही झुकाया
000
झिलमिलाती कामनाएँ चेतना को
चूमकर चुपचाप हैं
अश्रु स्नाता एक चितवत कर रही संकेत मुझको
यह तम्हारी, हाँ तुम्हारी
पावनी पदचाप है
हर तृषा ने शीश तुमको ही झुकाया
नाथ! तृम ही हो सजल घन
आज तो करुणा करो
हर शिरा ने शीश तुमको ही झुकाया
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संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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