यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।
अपने अपने उल्लू
उल्लू
अँधेरे में देखता है, गाता है,
उल्लसित रहता है
अँधेरे और अमावस को
अपना सौभाग्य कहता है।
आते ही उजाला
चौंधिया जाती हैं उसकी आँखें
तब मूँद कर उन्हें
वह रोता है रात के लिए
याने कि जलता है खुद सूरज के जलाल पर
हँसी आती होगी आपको मेरे खयाल पर!
मैंने सुना है कि
कल तक यहीं कहीं कलमुँही अमावस थी
तुम देख रहे थे उसमें भी साफ-साफ
मैं गा रहा था मुक्त-कण्ठ और सौ फीसदी सुर में
आज वे कह रहे हैं
आ गया उजाला
साँवला सूरज तमतमाने की तैयारी में है
और उधर रोते-रोते कोई
जल रहा है सूरज के जलाल पर
अब हँसी आ रही है मुझे
मेरे ही खयाल पर।
हकीकत है ये अँधेरे, उजाले
बरकरार है रोना, गाना, देखना, जलना
सवाल सिर्फ ये है कि
कौन कितने प्रतिशत उल्लू है?
अपनी-अपनी सोचो
कार्य, कारण, आत्म-निर्धारण
ये सब बातें फिजूल हैं
चलिए
मुझे मेरा सौ फीसदी उल्लू होना कबूल है।
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अँधेरे में देखता है, गाता है,
उल्लसित रहता है
अँधेरे और अमावस को
अपना सौभाग्य कहता है।
आते ही उजाला
चौंधिया जाती हैं उसकी आँखें
तब मूँद कर उन्हें
वह रोता है रात के लिए
याने कि जलता है खुद सूरज के जलाल पर
हँसी आती होगी आपको मेरे खयाल पर!
मैंने सुना है कि
कल तक यहीं कहीं कलमुँही अमावस थी
तुम देख रहे थे उसमें भी साफ-साफ
मैं गा रहा था मुक्त-कण्ठ और सौ फीसदी सुर में
आज वे कह रहे हैं
आ गया उजाला
साँवला सूरज तमतमाने की तैयारी में है
और उधर रोते-रोते कोई
जल रहा है सूरज के जलाल पर
अब हँसी आ रही है मुझे
मेरे ही खयाल पर।
हकीकत है ये अँधेरे, उजाले
बरकरार है रोना, गाना, देखना, जलना
सवाल सिर्फ ये है कि
कौन कितने प्रतिशत उल्लू है?
अपनी-अपनी सोचो
कार्य, कारण, आत्म-निर्धारण
ये सब बातें फिजूल हैं
चलिए
मुझे मेरा सौ फीसदी उल्लू होना कबूल है।
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‘भावी रक्षक देश के’ के बाल-गीत यहाँ पढ़िए। इस पन्ने से अगले गीतों की लिंक, एक के बाद एक मिलती जाएँगी।
वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14, रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053
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