‘भावी रक्षक देश के’ की भूमिका और सामान्य जानकारियाँ

दादा श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह ‘भावी रक्षक देश के’ की कविताओं का प्रकाशन कल से यहाँ शुरु हो रहा है। इस संग्रह में कुल जमा पाँच बाल-गीत हैं। आज पढ़िए, दादा का आत्म-कथन तथा किताब से जुड़ी सामान्य जानकारियाँ

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प्यारे बच्चों!

यह पुस्तक तुम तक आ सकी, इसका मुझे असीम सुख है। इसीलिए मैंने यह पोथी लिखी भी है कि तुम इसे पढ़ो, समझो और इसमें कोई अच्छी बात आई हो तो उसके अनुसार आचरण करो। इसको लिखते समय मैंने इस बात का ध्यान रखने की बहुत ही अधिक कोशिश की है कि इसकी भाषा सरल हो, फिर भी मैं मानता हूँ कि यह उतनी सरल नहीं बन पाई है जितनी कि तुम्हारे लिए आवश्यक है। वास्तव में तुम्हारे लिए लिखना बड़ा ही कठिन काम है, किन्तु जहाँ कठिनाई हो अपने गुरु या शिक्षक से सहायता ले सकते हो। हाँ, एक बात का मुझे भरोसा है कि यदि तुम जरा भी चतुराई से काम लोगे तो यह पूरी पुस्तक आसानी से नाटक के रूप में मंच पर खेली जा सकती है। मैं सोचता हूँ कि तुम यह प्रयोग करोेगे। इस किताब में से यदि एक पंक्ति भी तुम्हारे जीवन में कुछ काम आ सके तो मैं समझूँगा कि मेरी मेहनत सफल है।

खूब पढ़ो और आगे बढ़ो, जल्दी ही मिलेंगे।

- बालकवि बैरागी
मनासा (मन्दसौर, म. प्र.)

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समर्पण

बब्बू को

(बब्बू याने छोटा भाई विष्णु बैरागी)

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रचनाक्रम

1. आह्वान

2. सहगान

3. प्रेरणा

4. प्रतिज्ञा

5. सहगान

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भावी रक्षक देश के - पहला बाल-गीत ‘आह्वान’ यहाँ पढ़िए










भावी रक्षक देश के (कविता)
रचनाकार - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली 
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य -  एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972 
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

2 comments:

  1. कई उद्बोधन गीत पढ़े। बहुत ही प्रेरणा और राष्ट्रीय संवेदनाओं को विस्तार देते हैं। अद्भुत सुखद अहसास।
    दादा से मेरा सम्पर्क 5-6 साल तक रहा । उनके 7-8 पत्र मेरे पास अनमोल धरोहर की तरह रखे हैं
    मैंने दादा का साक्षात्कार भी लिया जो 'दैनिक ध्वज'में प्रकाशित करवाया। मेरी पुस्तक में मैंने इसे लिया है। फरवरी 2018में जन्मदिन पर उनको शुभकामनाओं वाली कई कविताएं भी भेजी थी, दादा ने फोन करके बताया था कि कहीं छपवा दी है। मैंने दादा को कविताओं के साथ एक कलाई घड़ी भी भेजी थी। दादा से मैं एक आत्मीय लगाव आज भी महसूस करता हूँ। खैर...।
    कृपया सम्पर्क करे अथवा मुझे अवसर दें मैं आपका आभारी रहूंगा। प्रणाम।
    अशोक बैरागी, तहसील गोहाना, जिला सोनीपत, हरियाणा।9466549394

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  2. आपकी टिप्‍पणी अभी ही देख पाया। विलम्‍ब के लिए क्षमा कर दें। दादा के प्रति आपकी आत्‍मीयता जान कर बहुत अच्‍छा लगा। आज बहुत देर हो गई है। कल आपसे बात करता हूँ।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.