अदम्य : जन्म शाम 7.04 पर। यह चित्र 7.55.41 बजे का।
इससे मिलिए। यह है ‘अदम्य’ - हमारी मौजूदा गृहस्थी की तीसरी पीढ़ी का पहला सदस्य। हमारा पहला पोता। इसका जन्म तो हुआ 22 मार्च की शाम 7 बजकर 4 मिनिट पर पर। किन्तु उस सुबह 5 बजे से ही हमारी सम्पूर्ण चेतना, सारी गतिविधियाँ, सारी चिन्ताएँ, सारे विचार इसी पर केन्द्रित हो गए थे - इसकी माँ, प्रशा को उसी समय इसने अपने आगमन की पहली सूचना दी थी।
21 मार्च की शाम को, प्रशा को, डॉक्टर को दिखाया था। डॉक्टर ने कहा था - 15 अप्रेल को या उसके बाद ही प्रसव होगा। किन्तु 21 और 22 मार्च की सेतु रात्रि में, कोई दो बजे से प्रशा असामान्य हो गई। कोई तीन घण्टे तक वह सहन करती रही। अन्ततः, सुबह पाँच बजे अपनी सास, मेरी उत्तमार्द्ध को उठा कर अपनी स्थिति बताई। उन्होंने मुझे उठाया और फौरन ही डॉक्टर से फोन पर बात की। डॉक्टर ने कहा - ‘स्नान-ध्यान कर आठ बजे ले आइए।’
सुबह 8 बजे प्रशा को अस्पताल में भर्ती करा दिया। डॉक्टर ने पहले ही क्षण कहा - ‘डिलीवरी आज ही होगी। शाम चार बजे तक नार्मल की प्रतीक्षा करेंगे। नहीं हुआ तो सीजेरियन करना पड़ेगा।’
परिवार में हम दो ही सदस्य और दोनों ही अस्पताल में। याने हमारा पूरा परिवार अस्पताल में। सुबह नौ बजे बेटे वल्कल को, मुम्बई सूचित किया। शाम छः बजे वल्कल पहुँच गया। मुम्बई से इन्दौर तक वायुयान से और इन्दौर से रतलाम तक मोटर सायकिल से यात्रा की उसने।
चार बजे तक तो हम सब सामान्य थे किन्तु उसके बाद से, ‘सीजेरियन’ की कल्पना से ही घबराहट होने लगी। प्रशा को चार बजे से ही डाक्टर और नर्सों ने ‘लेबर रूम’ में ले लिया था। उनकी भाग-दौड़ हमें नजर तो आ रही थी किन्तु कोई भी हमसे बात नहीं कर रहा था। घड़ी के काँटे जैसे-जैसे सरकते जा रहे थे, मेरी आँखों के आगे चाकू-छुरे नाचने लगे थे। अस्पताल के कर्मचारियो में से कोई भी हमसे कुछ नहीं कह रहा था किन्तु मुझे बार-बार ‘आपमें से कौन खून दे रहा है?’ सुनाई दे रहा था। मेरी नसें खून का दबाव नहीं झेल पा रही थीं। मैं अपनी ही धड़कनें साफ-साफ सुन रहा था। मेरी कनपटियाँ चटक रहीं थीं। घबराहट के मारे मुझसे बोला नहीं जा रहा था। मैं ईश्वर से एक ही प्रार्थना कर रहा था - प्रशा को सीजेरियन से बचा ले।
पाँच बज गए। छः बज गए। नर्सों की आवाजाही कम हो गई थी। सात बज गए। लेकिन कहीं से कोई खबर नहीं। मैं पस्तहाल हो, ऑपरेशन थिएटर के बाहर बेंच पर बैठ गया। लगभग सात बजकर दस मिनिट पर एक नर्स बाहर आई और मेरी उत्तमार्द्ध से बोली - ‘आप कुछ कपड़े लाए या नहीं? लाइए! कपड़े दीजिए।’ मेरी उत्तमार्द्ध पूरी तैयारी से आई थी। फौरन ही कपड़े दिए। कपड़े लेकर नर्स जिस तरह से अचानक प्रकट हुई थी, उसी तरह अन्तर्ध्यान हो गई। न तो उसने बताया और न ही उसने पूछने का मौका दिया कि कपड़े माँगने का मतलब क्या है। मैं ही नहीं, हम सब सकते में थे। किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था। तभी, मेरी बाँह थपथपाकर, ढाढस बँधाते हुए मेरी उत्तमार्द्ध बोलीं - ‘खुश हो जाइए। डिलीवरी हो गई है। आप दादा बन गए हैं।’ मुझे विश्वास नहीं हुआ। नर्स ने तो कुछ नहीं कहा! फिर ये कैसे कह रही हैं? मैंने पूछा - ‘आपको कैसे मालूम? नर्स ने तो कुछ भी नहीं कहा।’ वे सस्मित बोलीं - ‘ईश्वर ने यह छठवीं इन्द्री हम औरतों को ही दी है। कुछ पूछिए मत। किसी को फोन कीजिए। फौरन मिठाई मँगवाइए।’ मैं नहीं माना। मैं कुछ पूछता उससे पहले नर्स फिर प्रकट हुई। मैं कुछ बोलूँ उससे पहले ही वह, हवाइयाँ उड़ती मेरी शकल देख, मुस्कुराती हुई मेरी उत्तमार्द्ध से बोली - ‘सर को अभी भी समझ में नहीं आया होगा। डिलीवरी हो गई है। नार्मल हुई है और बाबा हुआ है।’ कह कर नर्स एक बार फिर हवा हो गई।
ऑपरेशन थिएटर के बाहर बैठे हम तमाम लोग एक क्षण तो कुछ भी समझ नहीं पाए। लेकिन पलक झपकते सब समझदार हो गए। सब हमें और एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहे थे। लेकिन हम दोनों? पता नहीं क्या हुआ कि ‘डिलीवरी नार्मल हुई है’ सुनकर हम दोनों के हाथ अपने आप ही आकाश की ओर उठ गए। हम दोनों की आँखें झर-झर बह रहीं थीं। उस क्षण हमें भले ही अपना भान नहीं था किन्तु हमें, अपनी वंश बेल बढ़ने से अधिक प्रसन्नता इस बात की थी कि हमारी प्रशा, सीजेरियन का आजीवन कष्ट भोगने से बच गई। ईश्वर की यह अतिरिक्त कृपा हमें अनायास ही ‘उसके प्रति’ नतमस्तक किए दे रही थी। हमें सामान्य होने में तनिक देर लगी और जब हम खुद में लौटे तो रोमांचित थे - ‘अरे! हम तो दादा-दादी बन गए!’ हम दोनों आपस में कुछ भी बोल नहीं पा रहे थे। थोड़े सहज हुए तो हम दोनों ने वल्कल को बधाइयाँ और आशीष दी। तभी नर्स, हमारे परिवार की अगली पीढ़ी के पहले सदस्य को कपड़ों में लिपटाए लाई और मेरी उत्तमार्द्ध को थमा दिया। उपस्थित लोगों के मोबाइल की फ्लेश गनें चमकने लगीं।
इसके बाद जो-जो होना था, वह सब हुआ। हमारी जिन्दगी बदल चुकी थी। क्या अजीब बात है कि एक नवजात शिशु ने पल भर में हमें बूढ़ा बना दिया था और हम थे कि निहाल हुए जा रहे थे!
फुरसत में तो हम पहले भी नहीं थे किन्तु इस शिशु ने हमें अत्यधिक व्यस्त कर दिया। हमारी व्यस्तता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 22 मार्च के बाद मैं अब यह पोस्ट लिख पा रहा हूँ - कोई डेड़ माह बाद। ये तीन पखवाड़े हम लोग जिन्दगी भर नहीं भूल पाएँगे।
22 मार्च को पोता आया और 30 मार्च को मेरी जन्म तारीख थी। दोनों प्रसंगों पर हमारे परिवार पर और मुझ पर, कृपालुओं/शुभ-चिन्तकों की जो अटाटूट कृपा-वर्षा हुई, उस सबके प्रति मैं धन्यवाद और कृतज्ञता ज्ञापित करने का न्यूनतम, सामान्य शिष्टाचार भी नहीं निभा पाया।
मेरी इस पोस्ट को ही मेरा धन्यवाद/कृतज्ञता ज्ञापन और मेरी क्षमा याचना मानें, स्वीकार करें और उदारमना हो, मुझे क्षमा करने का उपकार करें।
इन तीन पखवाड़ों के हमारे अनुभव आपको निश्चय ही आनन्द देंगे। आप सब हमारे मजे ले सकें, इसलिए वह सब लिखूँगा - जल्दी से जल्दी।
पोते को निहारती दादी: चित्र 7.45.39 बजे।
अपने बेटे के साथ मुदित मन माता-पिता, प्रशा और वल्कल। चित्र 7.51.04 बजे।
अपने नवजात बेटे को देख खुश हो रहा पिता, वल्कल। चित्र 7.55.11 बजे।
हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ, दादा पद स्थापना ले लिए साथ ही बूढ़पन के अहसास का आनंद मनाने के लिए भी. अदम्य के लिए शुभार्शीवाद!!
ReplyDeleteसुप्रभात संग बूढ़े होने की बधाई स्वीकार करें . प्रशा और वल्कल बाबू को भी माता पिता बनने की शुभकामना और नये मेहमान राजा देवाशीष को मेरा स्नेह ......
ReplyDeleteहर ओर आनन्द ऐसे ही व्यक्त रहे, शुभकामनायें...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
ReplyDeletebadhaii
ReplyDeleteAgain Congratulation. Grand Son come with Your Designation as Grand Father and Grand Mother.Budhe hone ka bhi apana anand hai.
ReplyDeleteओह.. अब समझ में आया आपके अंतर्ध्यान होने का कारण.. :)
ReplyDeleteबधाई दादा-दादी जी एवं उनके सम्पूर्ण वंश को. :)
वाह जी, बधाई हो. पार्टी कब किधर है?
ReplyDeletecongrates to grand father,grand ammma ,valkal and bahu. VISHANUJI you will feel younger with the kid not old.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई सर ! आपका पोता आपसे भी आगे जाए !
ReplyDeleteबधाई हो बैरागी जी।
ReplyDeleteआप सबों को बधाई ..
ReplyDeleteबच्चे को आशीर्वाद !!
अरे वाह !
ReplyDeleteक्या बात है !
हमने भी देख लिया पोते को।
ढेर सार प्यार आशीष नवागत को, और आप को सपरिवार ढेर सारी बधाई !
Bhaiji ! Nand ke Aanand bhayo.....!
ReplyDeleteबधाईयां!!
ReplyDeleteWo kahte hai na mooldhan se byaj jyada ajij hota hai...khoob anand uthaiye...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteबधाई आपको ..
ReplyDeleteप्रशा-वल्कल और आपको " गोतियार " पाने की अशेष बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ..... एक नन्हा शिशु कितना व्यस्त कर देता है यह मैं बखूबी समझ सकती हूँ ..... बच्चा नहीं बोलता लेकिन दादा दादी सबसे ज्यादा बोलते हैं :)
ReplyDeleteइतने लम्बे समय से इंतजार कर रहे हैं की आपकी कोई नयी पोस्ट आये, निराश हो गए हैं इंतजार करते करते ।
ReplyDeleteआज पहली बार आपकी पोस्ट पर आना हुआ, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने अपना यह सुखद अनुभव।
ReplyDeleteआपको दादा जी बनने की बहुत बहुत बधाई एवं ढ़ेर सारी शुभकामनायें...:))
बूढ़े तो नहीं हाँ थोड़ा बड़ा बना दिया आपको , बहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeletesirf umr mai bada hone se koi bada nahi ho jata,karmo se bade hoyiye,nihayati darpoke or do muhe insaan hai aap.
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद। एक आप ही हां जिसने मुझे सही-सही पहचाना। मैं भी आपसे सहमत हूँ। लेकिन क्या किया जाए? बाकी लोग अपन दोनों से सहमत नहीं हैं।
Deleteआपने अपनी पहचान उजागर की होती तो आपसे व्यक्तिश: मिल कर धन्यवाद देने पर विचार करता किन्तु मेरा दुर्भाग्य कि मैं इस सुख से वंचित हूँ क्योंकि आप तो मुझसे भी अधिक डरपोक निकले। आपने ऐसा कौन सा पाप या घटिया हरकत कर ली जो अपनी पहचान छुपानी पड रही है आपको?
इसी तरह मुझ पर नजर और कृपा भाव बनाए रखिएगा।
कुदरत ने हमें ऐसा बनाया है की हम अपनी पीठ नहीं देख सकते और उसे दूसरे ही देख पाते है इसलिए दूसरा जो कुछ देखता है उससे हमें कुछ फायदा उठाना चाहिए भूल को तर्क से साबित नहीं किया जा सकता
ReplyDeleteरही बात डरपोक होने की तो आप को बता दू महानुभाव की सत्य और साहस को किसी पहचान की जरूरत नहीं पाप की बात आप न ही करे तो बेहतर होगा एक बार अपने इतिहास में झाँक कर देखिये आपके सभी पाप, दम्भ, गलत काम आपके समक्ष एक फिल्म की भाँती दिखाई देने लगेंगे और बाकि तो आप हैं ही अति में समझदार।
क्षमा कीजिएगा प्रभु। तनिक विलम्ब से आपकी सेवा में उपस्थित हुआ। मेरे बारे में आप बिलकुल सही कह रहे हैं। राहत इस बात की है कि मैं तो शुरु से ही खुद को 'मुझ से बुरा न कोय' और ' मो सम कौन कुटिल खल-कामी' ही मानता रहा हूँ। मुझे तो प्रसन्नता इस बात की है कि मैं आपकी प्रसन्नता का निमित्त बन रहा हूँ। मुझे लतियाने, हडकाने, जुतियाने में आपको अपूर्व सुख मिल रहा है - यह मुझ पर ईश्वर की अतिशय कृपा है। आप मेरा भला ही कर रहे हैं। लगे रहिए।
Deleteविष्णु जी, हिंदी ब्लॉग पढ़ना शुरू करते ही सौभाग्य से आपके ब्लॉग के दर्शन हुए और यकीन मानिये कि जब तक आपके ब्लॉग के तक़रीबन सारे पोस्ट पढ़ नहीं लिए कोई दूसरा ब्लॉग नहीं पढ़ा | मगर आपसे एक ही शिकायत है कि या तो आप इतना अच्छा लिखते नहीं (मगर ये तो आप के हाथ में है ही नहीं), या आप के लेखन में इतना विलम्ब नहीं होना चाहिए था (ये आप के हाथ में है) | आपको दादाजी बनने की अनेकों शुभकामनाएं | आपकी अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है |
ReplyDeleteसादर
राजेश गोयल
गाजियाबाद
राजेशजी,
Deleteपता नहीं, आपके मेल के जवाब में जो कुछ मैंने लिखा था वह आपको मिला या नहीं। बहरहाल, आपने जो ताकत दी, उसका अपेक्षित प्रभाव हुआ और परिणामस्वरूप मैंने आज से लिखना शुरु कर दिया है। आपको कोटिश: धन्यवाद और आभार। ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिएगा।
मेरी सारी प्रार्थनाएं सदैव आपके साथ हैं | ईश्वर आपको सदैव सबल, धैर्यवान एवं उत्साही बनाये रखे |
Deleteआपका मेल मुझे नहीं मिला | कृपया भेजे गए मेल का पता चेक कर लें | वैसे मेरा मेल id है goyalrajesh1972@gmail.com, and rg_cex@rediffmail.com. आपके मेल का इंतजार रहेगा |
सादर
राजेश गोयल
गाज़ियाबाद