ब्लाग विश्व में आने की इच्छा कोई पौने तीन बरस पहले पैदा हुई जब "वागर्थ्" में इसके बारे में आैर खास कर श्री रवि रतलामी के बारे में पढ़ा था । चूँकि मंै भी रतलाम से ही हूँ, सो रविजी से मिल कर ब्लाग विधा के बारे में जानने की इच्छा भी हुई आैर उत्सुकता भी । लेकिन रविजी को तलाश नहीं कर पाया । गये दिनों "हंस" में उनका विज्ञापन देखा तो मन की मुराद पूरी हो गई । उनसे मुलाकात कर उनका शागिर्द बनने की ख्वाहिश जताई । ब्लागिंग के प्रति तो उन्होंने मुझे पहले ही क्षण से उत्साहित किया लेकिन मेरा गुरू बनने की बात को लेकर, मेरी उम्र देखकर, मंै इस समय साठ पार कर चुका हूँ, वे संकोच में पड़ गए । उन्होंने हाँ भी नहीं कहा तो इनकार भी नहीं किया । मेरे लिए तो यह उनकी स्वीकृती ही थी । आैर मंैने अपने आप को उनका शागिर्द मान लिया । यह अलग बात है कि वे तो द्रोणाचार्य हंै ही, मंै एकलव्य बन पाता हूँ या नहीं ?
कल शाम मंै अपना लेपटाप लेकर उनके घर जा धमका । मेरे लेपटाप पर रविजी ने इस हेतु आवश्यक सारे प्रोग्राम, सारे फाण्ट्स वगैरह लोड कर इस काबिल कर दिया कि मंै "श्रीँ गणेशाय नम:" कर सकूँ ।
इसके बाद रूक पाना मेरे लिए मुमकिन कैसे होता ? खास कर तब, जबकि रविजी ने तो मेरे नाम का ब्लाग ही बना दिया ! यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मंै ने तो केवल ब्लागों पर पोस्टिंग करना चाहा था । लेकिन रविजी ने तो मुझे "पाठक" से बदल कर "लेखक" बना दिया । सो, ब्लागिंग की दुनिया में, रविजी मेरे "जनक" हंै । याने, बेटे की उम्र बाप से ज्यादा । है ना रोचक ? सो, यदि मेरी कोई बात अच्छी लगे तो उसका श्रेय रविजी को । मूर्खताआंे का स्वामित्व आैर उत्तरदायित्व तो मेरा ही रहेगा । रविजी का इसमें कोई दखल मुझे मंजूर नहीं ।
मेरे ब्लाग का नामकरण मंै ने अपने स्थापित चरित्र के अनुरूप किया है । अपने मित्र मण्डल में मंै "एबला आदमी" यह मालवी बोली का शब्द है जो हिन्दी के "कुटिल" के आसपास ठहरता है के रूप में पहचाना आैर जाना जाता हूं । सीधे मुँह बात नहीं करना, सवाल का सीधा जवाब दिया तो क्या जवाब दिया ? याने कि मेरे मित्र मण्डल में मुझ जैसा मंै अकेला हूँ । कोई दूसरा मुझ जैसा हो, यह मुझे हजम नहीं होगा । इसीलिए पेश है एकोऽहम् ।
इस क्षण तक मुझे नहीं पता कि मंै क्या लिख पाउंगा । लेकिन मेरे उस्ताद का नाम खराब न हो, यह कोशिश तो अचेतन में भी रहेगी । ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिएगा कि मंै कुछ भी अनपेक्षित, अनुचित, आपत्तिजनक न करूँ आैर इसीलिए मुझ पर पैनी नजर भी बनाए रखिएगा । आपकी चुप्पी मुझे मेरी हर बात को सही बात मानने का भ्रम पैदा कर देगी जो मेरे लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होगा ।
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ReplyDeleteबधाई!
ReplyDeleteआप अपने पहले ही प्रयास में गोल्ड मेडेलिस्ट हो गए!
नियमित लेखन हेतु शुभकामनाएँ.
Vishnu Bairagi जी,आप के ब्लोग मे रवि जी की चर्चा वा उन के द्वारा की गई आप की सहायता का वृतांत पढ कर मन प्रसन्न हो गया।आप ने जिस ढंग से वॄताण्त को प्रस्तुत किआ है वह और भी प्रशंसनीय है।आशा है अब निरंतर आप को पढ पाएगें।
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ReplyDeleteबैरागी जी,
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगिंग मे आपका स्वागत है। नियमित रुप से लिखते रहिए, पढने और उत्साहवर्धन के लिए हम है ना।
आशा है आप अपने एकोहम को को चिठ्ठाकारिता मे बरकरार रखेगे भाइ रतलामी जी जिसके साथ है उसका चिठ्ठा अकेला ही बेजोड होना ही चाहिये . मै भी भगवान शिव को इसी बहने याद कर लेता हू . . . शिवोsहम,शिवोsहम ! सच्चिदानदोsहम !
ReplyDeleteबढ़िया विवरण।
ReplyDeleteकहते हैं कि साठा सो पाठा।
शुभकामनाएं
कौन हैं भाई. रतलाम के! और हम कभी मिले नहीं.
ReplyDeletebhai saab maja aa gaya, aapko badhai
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteविष्णु बैरागी जी पत्रकार व लेखक हैं - (बालकवि बैरागी जी के भ्राता. )
स्वागत है जी,एकोऽहम् पर मुझे भी एक सूक्ति याद आ गयी.
ReplyDeleteन तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं
नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः ।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति .
बीस मई को मंै ने पहली बार लिखा आैर चुपचाप बैठ गया । बाईस मई को चिट्ठा खोला तो भांैचक्का रहा गया । एक, दो नहीं पूरे नौ पोस्ट ! मंै बौरा गया । रोमांच का चरम क्या होता है यह पहली बार जाना । ब्लागियों की दुनिया की यही बात मुझे सबसे अच्छी आैर अनूठी लगी कि यहां प्रशंसा भाव प्रचुरता से उपलब्ध है । एक ही विधा में काम करने वाले प्राय: ही टांग खिंचाई ही करते हंै । लेकिन यहां तो इस नौसिखिए को जिस तरह हाथों हाथ लिया है वह अभिभूत कर देने वाला है । मंै आप सबका बहुत बहुत आभारी हूं । आप सबने मुझे सचमुच में जवान बना दिया है । मेरी हिम्मत बंधी है । अब लिखने में डर नहीं लगेगा आैर लगेगा तो नाम मात्र का । आभार ।
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है बैरागी जी। नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर भी अवश्य जाएं।
ReplyDeleteरवि जी का धन्यवाद एक और साहित्यकर्मी को हिन्दी की दुनिया में लाने के लिए।
ई-पंडित
Papa.... aap waqui me 'Ekohum' ho... sabit ho gaya :)
ReplyDeletevishnu bhai,net kidunia ke maje le rahe ho.maa ki sikh ab nahi chlegi.kuch nahi badalne wala,satyug me bhi yahi kahte hoge kalyug me bhi yahi kahte rahege,upbhogata wadi samaj vyavastha,upbhogatawadi sadhnose badlaw sabhav he? pahle to samay thamaa ke pas bethane ka uski sunneka.jesi praja vesa raja fir bhi koshish to honi chhiye raftar kam karne ki. lage raho. -vivek mehta.
ReplyDeleteआदरणीय विष्णुभैया,
ReplyDeleteक्या कहने । मैं पहले तो अपने आलसीपने के लिए माफी चाहता हूं। आलसीपना भी क्या, अस्तव्यस्तपना ही कहिए। आपने चिट्ठी लिखकर अपने चिट्ठे की सूचना दी थी। पर मैं खुद उन दिनों नौसिखिया था इस मामले में । इस बीच कुछ प्रेमी मुझे भी ब्लॉगियों की दुनिया में घसीट लाए हैं। उम्मीद है मिलते रहेंगेा
आपका हरिद्वार वाला
pranam
ReplyDeleteaaj apke blog par aane ka soubhagya mila to likhe bina nahi raha gaya.aapki kuch rachnaye padi ,acchi lagi.
basant panchmi ke shubh avsar par aapka aashirvad chahti hu.
aapki bhanji
reeti bairagi
ये पोस्ट बांचकर बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteमेरो नाम केभिन एडम्स, बंधक ऋण उधारो एडम्स तिर्ने कम्पनी को एक प्रतिनिधि, म 2% ब्याज मा ऋण दिनेछ छ। हामी विभिन्न को सबै प्रकार प्रदान
ReplyDeleteऋण। तपाईं यस इमेल मा अब हामीलाई सम्पर्क गर्न आवश्यक छ भने: adams.credi@gmail.com