अब तो ‘सारिका’ को बन्द हुए ही बरसों हो गए। बन्द होने के बरसों पहले उसमें छपी एक लघु कथा याद आ गई।
गाँव से सटे जंगल में एक लड़की अपनी माँ के साथ, जलावन के लिए लकड़ियाँ बीन रही थी। कुछ ही दूरी पर, अमराई में, पिकनिक मनाने के लिए शहर से आई, कुछ लड़कियाँ खेल रही थीं। खेलती हुई वे शहरी लड़कियाँ बिना बात ही जोर-जोर से हँस रही थीं। उन्हें इस तरह हँसते देख, जलावन बीन रहीं लड़की ने अपनी माँ से पूछा - ‘माँ! ये लड़कियाँ बिना बात क्यों हँस रही हैं?’ माँ ने जवाब दिया - ‘बेटा! जब जवानी आती है तो ऐसा ही होता है।’ सुनकर लड़की ठिठक गई। कुछ याद करते हुए बोली - ‘हाय माँ! मैं भी गए साल बिना बात के खूब हँसती थी।’
एक और कहानी याद आ गई। महादेवी वर्मा की यह कहानी हायर सेकेण्डरी कक्षाओं में हमारे पाठ्यक्रम में थी। कहानी का शीर्षक, कहानी की नायिका के नाम पर ही था - ‘लछमा।’ अभावों में जी रही, गाँव की लड़की लछमा को अत्यधिक खुश देख कर महादेवीजी को अचरज हुआ। उन्होंने लछमा से विस्तार से बात की तो मालूम हुआ कि उसने आज तक लड्डू नहीं खाया है। बात-बात में लछमा कहती है कि उसने लड्डू नहीं खाया तो क्या हुआ, वह लड्डू का स्वाद तो जानती है। महादेवीजी हैरत से पूछती हैं - कैसे? लछमा कुछ ऐसा जवाब देती है - ‘पीली मिट्टी का गोला बनाकर मुँह में रख लिया और सोच लिया कि लड्डू रखा है और इस तरह लड्डू का स्वाद आ जाता है।’
और विश्व इतिहास का वह सर्वविदित वाकया भी याद आया जिसमें, रोटी माँग रही भीड़ को आश्चर्य से देखती, फ्रांस की रानी ने सलाह दी थी कि इन्हें रोटी नहीं मिल रही तो ये लोग केक क्यों नहीं खा लेते।
अब वे लोक कथाएँ भी याद आ रही हैं जिनमें, प्रजापालक राजा, भेस बदल कर रात में घूम कर अपनी प्रजा का हाल जानने की कोशिशें किया करते थे। वे गुंजाइश रखते थे कि उनके मन्त्री उन्हें भ्रमित रख सकते हैं, उनसे वास्तविकताएँ छुपा सकते थे। जमीनी हकीकत से वाकिफ होने के लिए की गई अपनी इल कोशिशों में उन्हें ‘प्रजा में फैली, राजा के प्रति नफरत’ की जानकारी बखूबी हो जाती थी और वे खुद को तथा अपनी व्यवस्था को सुधार लिया करते थे।
देश और राजा का नाम तो याद नहीं रहा किन्तु याद आ रहा है कि अपने रथ पर सवार वह राजा जब नगर-यात्रा पर था तो रास्ते किनारे खड़े एक भिखारी ने टोप उतार कर, झुक कर राजा को नमस्कार किया। प्रत्युत्तर में राजा ने भी खड़े होकर, टोप उतार कर, झुक कर भिखारी को नमस्कार किया। यह देख, साथ बैठे मन्त्री ने जिज्ञासा प्रकट की तो राजा ने कहा - ‘जिस देश का भिखारी इतना नम्र हो उस देश के राजा को तो और अधिक नम्र होना चाहिए।’
रहीम का एक दोहा भी याद आ गया -
दीन सबन को लखत है, दीनहि लखे न कोय।
जो रहीम दीनहि लखै, दीनबन्धु सम होय।।
कैसे भूल सकता हूँ कि ‘भीख माँगना’ मेरे परिवार का ‘व्यवसाय’ हुआ करता था और भीख माँगने का बरतन इस व्यवसाय का उपकरण। दादा और जीजी को तो भीख माँगते नहीं देखा किन्तु उनकी करुण-गाथाएँ उनसे और अन्य परिजनों/परिचितों से अनेक बार सुनी। सातवीं कक्षा तक मैंने भी, दरवाजे-दरवाजे जाकर मुट्ठी-मुट्ठी आटा माँगा। रोटियाँ माँगने के लिए माँ के साथ कई बार गया और ‘रामजी ऽ ऽ ऽ ऽ की जय’ की गुहार लगा कर गृहस्वामिनियों को माँ की और अपनी उपस्थिति सूचित की। बरसों तक यह क्रम चला किन्तु एक बार भी, किसी एक भी ‘दाता’ के चेहरे पर हिकारत या नफरत की एक शिकन नहीं देखी। उपकृत करने का भाव भी कभी नजर नहीं आया। जिसने, जो भी दिया, या तो आदरपूर्वक दिया या सहानुभूतिपूर्वक या फिर सहायता करने के भाव से। उस काकी का नाम तो याद नहीं आ रहा किन्तु शकल इस क्षण भी मेरी धुँधलाती आँखों के सामने नाच रही है जो माँ के बर्तन में गरम-गरम रोटी रखते हुए, लगभग रोज ही मेरी माँ से कहती थी - ‘लाड़ी! (लाड़ी याने बहू) भगवान तेरा भला करे जो तू हमें यह सेवा करने का मौका दे रही है।’
ये और ऐसी अनेक अच्छी बातें आज सुबह-सुबह याद आ गई। लगा, भगवत्-भजन कर लिया। आत्मा निर्मल होती लगी। इस सबके लिए चिदम्बरमजी को धन्यवाद। उन्होंने गरीब और गरीबी का मजाक नहीं उड़ाया होता तो इतनी अच्छी बातें याद कैसे आतीं? हमारे परिवार को जीवित बनाए रखनेवाले दाताओं के प्रति कृतज्ञता भाव मन में कैसे उपजता? अपनी हकीकत एक बार फिर कैसे याद आ पाती?
शासक अपनी विफलता की जिम्मेदारी जब अपने नागरिकों पर डालता है तो वह चिदम्बरम हो जाता है। सुनता आया था कि वे अच्छे अर्थशास्त्री हैं किन्तु अब सन्देह हो रहा है। अब तो उनके ‘विवेकवान, सभ्य, शालीन’ होने पर भी सन्देह हो रहा है। भारत का मध्यवर्ग ही भारत की ताकत है। मध्यमवर्गीयों की इतनी बड़ी तादाद दुनिया के और किसी देश में नहीं। इसी मध्यमवर्ग ने सारी दुनिया को भारत के प्रति आकर्षित किया है, ललचाया है। भारत दुनिया का सबसे बाजार यदि बना है तो इसी मध्यमवर्ग कारण।
यह चिदम्बरम का दुर्भाग्य ही है कि वे चाहकर भी इस मध्यमवर्ग को देश निकाला नहीं दे सकते, अपने लिए अनुकूल नागरिक आयात नहीं कर सकते। जाना होगा तो चिदम्बरम को ही जाना होगा।
चिदम्बरमजी! आपने (ऐसे में कोई गरीब ही आपको ‘आप’ कह सकेगा। किसी अमीरजादे का मजाक उड़ाया होता तो वह ‘ऐ! चिदम्बरम’ कहता) गरीब और गरीबों का मजाक उड़ाने की अक्षम्य मूर्खता की है, ईश्वर के प्रति अपराध किया है।
हाँ! एक बात याद रखिएगा। यह गरीबों का अमीर देश है। गरीब ही इसकी परिसम्पत्तियाँ और सम्पदा हैं। आपकी अमीरी और यह ‘गुस्ताख अदा’ बनी रहे, इसके लिए गरीबों का बना रहना अनिवार्य और अपरिहार्य है। इसलिए, गरीबों की चिन्ता करना सीखिए। कोशिश कीजिए कि गरीब प्रसन्नतापूर्वक जी सकें। याद रखिए - गरीब के पास खोने के लिए अपनी गरीबी के सिवाय और कुछ नहीं है। यह भी याद रखिए कि भूखा आदमी कोई भी अपराध कर सकता है - यह हमारे धर्मशास्त्र कहते भी हैं और ऐसा करने को सहज स्वाभाविक भी मानते हैं।
आपकी शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई है। भारतीय साहित्य-वाहित्य की जानकारी तो आपको होगी नहीं। इसलिए तुलसी का एक दोहा लिख रहा हूँ। इसे लिखवा कर अपने टेबल के काँच के नीचे लगवा लीजिएगा -
तुलसी हाय गरीब की, कबहुँ व्यर्थ न जाय।
मरी खाल की स्वाँस से, लौह भसम हुई जाय।।
आप मेरे नहीं, ईश्वर के अपराधी हैं। मैं, एक जन्मना भिखारी, ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ आपको सद्बुद्धि दे और इस देश के असंख्य गरीबों की ओर से, आपको क्षमा करता हूँ।
आपके लिए इससे अधिक कठोर और उपयुक्त कोई और सजा मुझे इस समय नहीं सूझ रही।
(आज इण्टरनेट सेवाऍं देर तक बाधित रहीं इसीलिए पोस्ट देर से प्रकाशित हुई।)
करुणा बलवती है. प्रेम से भी अधिक. यह पोस्ट हमेशा याद रहेगी.
ReplyDeleteफ्रांस की रानी ने सलाह दी थी कि इन्हें रोटी नहीं मिल रही तो ये लोग केक क्यों नहीं खा लेते। ओर इसके ठीक 9 महिने बाद फ्रांस की रानी मेरी का सिर कलम क्रांतिकारी समिति ने कर दिया था।
ReplyDeleteअभी अभी टी वी चेनल पर समाचार बता रहे है कि शरद यादव चिदमंबरम साहब के समर्थन में यह कहते हुए आगे आए है कि चावल के दाम बढते है तो किसानो को फायदा होता है।
यह लोग बताये कि दाम बढ़ते है तो किसान कमाता है या व्यापारी?
देश की जनता इनके साथ वेसा ही सलूक करेगी जैसा फ्रांस की रानी के साथ किया था तो समझ में आयेगा।
मुझे समझ नही आ रहा चिदम्बरम किन गरीबों और मध्यमवर्गीय लोगों की बात कर रहे हैं जो मिनरल वाटर और आइसक्रीम की दुकानों पर कतार लगाए इस देश मे खडे हुए हैं।
ReplyDeleteSatta ke madandhon me kai saare Chidambaram hain, jinhe chaay ke ubaal se nahin, varan Jan-sailaab ke jwaar se hi jameen dikhaai jaa sakti hai.Yah ushmaa saarthak bane.
ReplyDeleteचिदम्बरम जी को शर्म आना चाहिए. और अगर middle-class का 'मिनरल वाटर आसक्ति' देखनी है तो किसी भी जंक्शन पर खड़े हो जाईये, आप पाएंगे की हर ट्रेन के रुकते ही sleeper और general में सफ़र करता मुसाफिर दौड़ लगा कर घर से लायी हुई अपनी खाली हो चुकी पानी की बोतल भरने की पूरी कोशिश करता है.
ReplyDeleteआपके धोती-कुरते की कलफ में जितने रुपये लगते हैं वो किसी परिवार की दिन भर की कमी के बराबर होते हैं.
जिस दिन स्टेशनों की पानी की टंकियां जिसमे साफ़ और पीने योग्य पानी पड़े-पड़े सड़ जाए उस दिन कहियेगा की middle-class मिनरल वाटर पीता है.
देश पर शासन करने वालों की जमातें किसी और देश से आती हैं।
ReplyDeleteफेस बुक पर श्री जीतेन्द्र तिवारी की टिप्पणी -
ReplyDeleteसर! आपका लेख चिदम्बरमजी को एक तमाचा है।
मेरा इरादा वैसा बिलकुल नहीं था जीतेन्द्रजी। पीडा यह है कि जिन्हें मानवीय और सह्रदय होकर लोगों की चिन्ता करनी चाहिए थी, वे ऐसी अमानवीयता और ह्रदयहीनता बरत रहे हैं।
Deleteफेस बुक पर श्री शरद श्रीवास्तव की टिप्पणी -
ReplyDeleteएक गम्भीर बात बहुत सादगी से आपने कह दी। बधाई सर जी।
फेस बुक पर श्री विजय शर्मा, इन्दौर की टिप्पणी -
ReplyDeleteहे! ईश्वर। इसे माफ करना।यह नहीं जानता, यह क्या कह रहा है।
फेस बुक पर श्री रंजन पँवार, इन्दौर की टिप्पणी -
ReplyDeleteमेरे अनुमान से चिदम्बरम का इतना उपहास कभी नहीं हुआ होगा। लेकिन गेंडे की चमड़ी वालों को असर नहीं होता, न ही होगा।
फेस बुक पर श्री गोपाल बैरागी की टिप्पण -
ReplyDeleteजाको प्रभु दारुण दुख देही।
ताकी मति पहले ही हर लेही।
सबका अपना अपना जीवन स्तर है। चुकंदरम कितना भी नीचे जाकर सोचेंगे गरीबी के बारे में ब्रेड बटर से नीचे नहीं जा सकते। क्योंकि उन्होने गरीबी देखी ही नहीं है। सार्थक चिंतन आभार
ReplyDeleteसबका अपना-अपना जीवन स्तर है, चुकंदरम कितना भी नीचे जाकर गरीबी के बारे में सोचेगें तो ब्रेड बटर से नीचे नहीं जा सकते। जिन्होने गरीबी देखी ही नहीं, उन्हे क्या पता गरीबी क्या होती है। खूबसूरत रचना आभार
ReplyDeleteआपका आलेख पढ़ कर ऐसा लगा जैसे हमारे मन के उद्गारों को भी बड़ा सशक्त आधार मिल गया ! हमारे वर्तमान नेता गण कमअक्ली, दम्भ, कड़वाहट, जिद और खिसियाहट की ऑल इन वन प्रतिमूर्तियाँ हैं ! इसे हमारी व्यवस्था की कमजोरी ही माना जाएगा कि ऐसे व्यक्ति संसद में पहुँच कर सत्ता हथिया लेते हैं ! चेतना को झकझोरता बेहतरीन आलेख !
ReplyDeleteशासक अपनी विफलता की जिम्मेदारी जब अपने नागरिकों पर डालता है तो वह चिदम्बरम हो जाता है.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका यह लेख पढ़ कर.
प्रेरक संदर्भ याद दिलाए आपने.
ReplyDeleteयादों का संदर्भ देकर, मध्यम वर्ग की पीड़ा का वास्ता देकर शासक की आँखें खोलने का यह प्रयास हमे भीतर तक भींगो गया।
ReplyDelete...बैरागी की इस चेतना को कोटि-कोटि नमन करता हूँ।
निश्चित ही आपके कहे ये शब्द इस ब्रह्माण्ड से कभी ख़त्म नहीं होंगे , मेने आपके ओर बहुतों क़े ऐसे दर्दों को खुद महसूस किया है - बस इनका अंत देखिएगा , जिसके लिए हमारे ओर आपके पास सिर्फ इन्तजार रूपी नाव खेने क़े अलावा कोई हल नहीं ,सब्र ....सब्र ...?
ReplyDeleteब्लॉग देखा। बहुत परिश्रम किया है आपने।
ReplyDeleteमुझे शामिल करने के लिए अन्तर्मन से आभार। आपने मेरा मान बढाया है।
छिंदबरम का अमानवीय बयान .... बहुत साढ़े हुये शब्दों में आपने अपनी बात रखी .... हर शब्द में आम जनता की पीड़ा झलक रही है
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ReplyDeleteचिदम्बरम का अमानवीय बयान .... बहुत सधे हुये शब्दों में आपने अपनी बात रखी .... हर शब्द में आम जनता की पीड़ा झलक रही है
ReplyDeleteचिदंबरम या किसी भी जमीन से अपनी जड़ें खो चुके नेता को संबोधित करने के लिए इससे अच्छी कोई पोस्ट नहीं हो सकती। किसी दिन जरूरत हुई तो इस पोस्ट के लिंक के साथ कुछ लिखने का प्रयास करूंगा।
ReplyDeleteयह पोस्त अपने साथ बात को खत्म नहीं कर देती, बल्कि विचारों की एक लहर पैदा करती है, शायद यह लहर बहुत दूर तक जाएगी। किसी दिन दिल्ली में तहरीर चौक बना तो इसमें इस पोस्ट की भी भूमिका होगी, भले ही सीमित लोगों के अवचेतन में ही क्यों न हो...
आभार, विष्णुजी...
जिस अंतर्मन से,आपने समाज की ’वेदना’ को शब्द दिये हैं---मन को छूते हैं.
ReplyDeleteकाशः,हमारे देश के,हमारे भाग्य के कर्णधारों के पास भी एक अंतर्मन होता !
हमारी त्रासदी ही यही है—वे मोटी चमडी ओढे,सफ़ेद लबादों में अपनी धूर्तता ओढे हुए हैं.
पहले तो दिल से निकले इस हृदयस्पर्शी आलेख के लिये आभार स्वीकारें! इस देश में न जाने कितने बच्चों की प्रतिभा का कभी पता लग ही नहीं पाता है क्योंकि भिक्षावृत्ति के बाद विकास के अगले चरण में मज़दूरी ही हाथ आती है शिक्षा नहीं। आपका उदाहरण अनुकरणीय है लेकिन देश के सर्वोच्च पदों पर कब्ज़ा किये लोग चाहे किसी भी दल या विचारधारा के हों, किसी भी खुदा को मानते या न मानते हों, आम आदमी के जीवन से पूरी तरह कटे हुए हैं। जिनका काफ़िला निकलने के लिये मार्ग घंटों पहले रोक दिया जाता है, जो बाढ़ और सूखे में जा रही जानों को देखने के लिये हेलिकॉप्टर से टूर करते हों, देश के नौनिहालों के प्राइमरी स्कूल की खसी दीवार के लिये धन की कमी दूर करने के बजाय उनकी शिक्षा प्रणाली पर अजूबे सिस्टम लादकर उसे चौपट करने के नये-नये तरीके ईजाद करते हों। देश के दरी के स्कूल पर एक नज़र मारने के बजाय भारत के सबसे धनाढ्य घरानों के बच्चों के साथ अमेरिका या इंग्लैंड में पढने के बाद वहाँ के किसी एंडोमेंट से सम्बन्धित हों वे जब मंत्री बनते हैं तो कालाधन रोकने के बजाय चेक आहरण पर ही शुल्क लगाते हैं या फिर ग्रोमोर जैसी संस्थाओं में धन का निवेश करते पाये जाते हैं, उन्हें क्या पता आम जनता कौन है, कैसे जीती है। नाकाबिले-माफ़ी हैं ऐसे सफ़ेदपोश!
ReplyDeleteफेस बुक पर श्री रवि कुमार शर्मा, इन्दौर की टिप्पणी -
ReplyDeleteजाके पैर न पड़ी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। चिदम्बरम G के लिए यह बिलकुल फिट है।