मार्च में सम्पन्न हुए, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में हुई, काँग्रेस की करारी हार पर टिप्पणी करते हुए सोनिया गाँधी ने कहा था - ‘हमारी समस्या है......बहुत सारे नेताओं का होना।’
कल मुझे लगा, यह समस्या धीरे-धीरे तमाम राजनीतिक दलों और अधिकांश सगठनों को अपने लपेटे में लेती जा रही है - नेताओं की भीड़ और कार्यकर्ताओं की गुमशुदगी।
राष्ट्रीय स्तर के एक प्रमुख राजनीतिक दल के एक प्रकोष्ठ के स्थानीय संयोजक कल मिले तो चिन्तित थे। उन्हें अपने प्रकोष्ठ की बैठक करनी थी किन्तु उन्हें समुचित सहयोग नहीं मिल पा रहा था। उपस्थितों की संख्या अधिकतम तीस होनी थी किन्तु इतनी छोटी बैठक की व्यवस्था भी नहीं कर पा रहे थे। जेब में इतनी रकम थी नहीं कि किसी मझौले स्तर की होटल में भी बैठक आयोजित कर लें और किसी सार्वजनिक स्थल पर या किसी सराय/धर्मशाला में कर पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा था क्योंकि वहाँ व्यवस्थाएँ और भाग-दौड़ करने के लिए न्यूनतम कार्यकर्ता भी उनके पास नहीं थे।
वे बड़े परेशान थे। राजनीतिक स्तर इतनी हैसियत या कि धाक नहीं बनी है कि प्रशासकी सहायता प्राप्त कर सकें। किसी से चन्दा लेकर उपकृत होने से भी बचना चाह रहे थे - पता नहीं आज के चन्दे की वसूली कल किस तरह से कर पाएँगे? और यह भी पता नहीं कि चन्दा देनेवाले का काम करवा सकें, इस हैसियत में कल रहें भी या नहीं? खुद के परिवार में भी इतने सदस्य नहीं कि व्यवस्थाओं हेतु भाग दौड़ कर सकें। इधर, बैठक करनी भी जरूरी।
उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। मुझसे सलाह माँगी तो मेरे पास भी कुछ नहीं था। यही कहा कि या तो बैठक करें ही नहीं या फिर पद त्याग कर दें। उनसे यह भी नहीं हो पा रहा।
अब मुझे जिज्ञासा हो गई है। यह देखना रोचक होगा कि वे बैठक कर पाते भी हैं या नहीं और यदि कर पाते हैं तो कैसे?
बात बहुत ही छोटी है किन्तु मुझे इतनी छोटी भी नहीं लग रही कि ध्यान से उतर जाए।
बात बहुत ही छोटी है किन्तु मुझे इतनी छोटी भी नहीं लग रही कि ध्यान से उतर जाए।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा ...आपने आभार
वे बड़े परेशान थे। राजनीतिक स्तर इतनी हैसियत या कि धाक नहीं बनी है कि प्रशासकी सहायता प्राप्त कर सकें। किसी से चन्दा लेकर उपकृत होने से भी बचना चाह रहे थे - पता नहीं आज के चन्दे की वसूली कल किस तरह से कर पाएँगे? और यह भी पता नहीं कि चन्दा देनेवाले का काम करवा सकें, इस हैसियत में कल रहें भी या नहीं? खुद के परिवार में भी इतने सदस्य नहीं कि व्यवस्थाओं हेतु भाग दौड़ कर सकें। इधर, बैठक करनी भी जरूरी।
ReplyDeleteआपने उनके मर्म स्थल को छू दिया .
आगे आने वाले दिन ही बता पायेंगे.
ReplyDeleteबरसाती मेंढको जैसे भरे हुए नेताओं के देश में चुपचाप सुनने वाला कार्यकर्ता ढूंढना वाकई कठिन समस्या है। श्रोताओं का सम्मान समारोह करवा दें तो शायद लोग आयें!
ReplyDelete