छोटी और फटी झोली का सुख याने मेरी जन्म वर्ष गाँठ

आँखों के आगे जब स्वार्थ नाच रहा हो तो आदमी शिष्टाचार को कैसे ताक पर रख देता है - यह जानने के लिए मुझसे मिलिए। मैंने ऐसा ही किया है। अभी-अभी ही।

30 मार्च को मेरा जन्म दिनांक था। अपने जीवन के पैंसठवें वर्ष में प्रवेश कर गया मैं इस दिन। जिस शान से हमने ‘अंग्रेजीयत’ को आत्मसात कर लिया है, उसके चलते, 29 और 30 मार्च की सेतु रात्रि से ही मुझे बधाई और शुभ-कामना सन्देश मिलने लगे थे। सबसे पहला सन्देश मिला, रात पौने बारह बजे के आसपास - आलोट के हमारे अपार सम्भावनाशील युवा अभिकर्ता प्रिय अमित चौधरी का। मैंने हाथों-हाथ ही बात कर उसे धन्यवाद दिया। किन्तु अगले दिन इस शिष्टाचार को कायम नहीं रख सका।

वित्तीय वर्ष की समाप्ति किसी भी बीमा अभिकर्ता के लिए अतिरिक्त व्यस्ततावाला समय होता है। और जिन अभिकर्ताओं ने, क्लब सदस्यता के लक्ष्य हासिल नहीं किए हों, उनके लिए तो जिन्दगी-मौत का सवाल सामने आ खड़ा होता है। क्लब सदस्यता का अर्थ मेरे लिए था - लगभग अस्सी हजार रुपयों की प्राप्ति। मैं कबूल करता हूँ कि इस लालच के अधीन ही मैं अशिष्ट हो गया। इधर मुझे दनादन सन्देश मिल रहे थे और उधर मैं, सब कुछ भूल कर, ‘इकतीस मार्च देवता’ की आराधना में जुटा हुआ था।

ब्लॉग ने मेरी दुनिया विस्तारित की थी किन्तु यह विस्तार मेरी सीमाओं से बाहर नहीं था। किन्तु फेस बुक ने मेरी क्षमता और सीमा को अपर्याप्त बना दिया। बधाई देनेवाला लगभग हर चौथा कृपालु सूचित कर रहा था कि उसने फेस बुक पर भी अपनी शुभ-कामनाएँ अंकित की हैं। मुझे अच्छा भी लग रहा था और झेंप भी आ रही थी। झेंप का एक बड़ा कारण था - 30 मार्च को ही जन्म दिनांकवाले अपने प्रिय महीप धींग सहित कुछ और कृपालुओं को मैं बधाइयाँ नहीं दे पा रहा था। आज तक नहीं दे पाया। कारण वही - ‘इकतीस मार्च देवता’ में नजर आ रहा मेरा आर्थिक स्वार्थ। दिन भर सोचता रहा कि रात को सबको कृतज्ञता ज्ञापित कर दूँगा। किन्तु ऐसा नहीं कर पाया।

शाम को मैं घर पहुँचा तो आशीर्वाददाताओं ने मेरी अगवानी की। देर रात तक यह सिलसिला चलता रहा। बधाइयाँ, शुभ-कामनाएँ और आशीर्वाद स्वीकार के प्रत्येक क्षण यह विचार मन में बराबर बना रहा कि मुझे आज ही सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर देनी है। किन्तु ऐसा नहीं हो पाया।

प्रिय गुड्डू (अक्षय छाजेड़) और उसकी उत्तमार्द्ध सौ. ज्योति ने अपराह्न में ही सूचित कर दिया था कि हम दोनों (पति-पत्नी) का रात्रि भोजन, ‘छाजेड़ परिवार’ के साथ होगा। साढ़े नौ बजते-बजते, गुड्डू और ज्योति के बुलावे पर बुलावे आने लगे। तत्काल ही जाना पड़ा। भोजन से निपटे तो ज्योति, उसकी सुघड़ बिटिया साक्षी और कैशोर्य के पहले चरण के प्रभाव से ओतप्रोत बेटे ईशान ने केक सामने रख दिया। केक, ज्योति ने घर पर ही बनाया था। सबको भली प्रकार पता है कि मुझे ‘केक संस्कृति’ रुचिकर नहीं है। किन्तु मेरी अरुचि को ठेंगे पर रखकर सबने मेरे हाथ में चाकू थमा दिया। बचाव के लिए मैंने अपनी उत्तमार्द्ध की ओर देखा तो पाया कि वे इस मामले में मेरा साथ छोड़ कर पहले से ही सबके साथ हो चुकी थीं। मैंने केक काटा। पहला ग्रास अपनी उत्तमार्द्ध के मुँह में परोसा। उन्होंने वैसा ही मेरे साथ किया। उसके बाद ज्योति, साक्षी और ईशान ने क्रमशः मुझे केक खिलाया। निस्सन्देह मुझे ‘केक संस्कृति’ रुचिकर नहीं है किन्तु उससे भी अधिक असंदिग्ध तथ्य यह रहा कि केक सचमुच में बहुत ही नर्म और स्वादिष्ट था। उसका कम मीठा होना उसकी उल्लेखनीय विशेषता थी। मैं कबूल करता हूँ कि घर पर बना, इतना नर्म और स्वादिष्ट केक मैंने पहली बार खाया।

‘केक उपक्रम’ के दौरान ही भोपाल से हिमांशु (राय) का फोन आया। बधाई देते हुए कहा कि वह भी फेस बुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुका है। मैंने जब बताया कि फेस बुक तो दूर रही, आज मैं अपना मेल बॉक्स भी नहीं खोल पाया हूँ तो हिमांशु ने परिहास करते हुए बताया कि कम से कम सवा सौ सन्देश तो दर्ज होंगे ही। मुझे गुदगुदी तो हुई किन्तु सिहरन भी हुई - इतने सन्देशों का उत्तर व्यक्तिगत रूप से कैसे दे सकूँगा? इस सोच में डूबा ही था कि लगभग सवा दस बजे, भिलाई से पाबलाजी का फोन आया। मानो महाभारत का संजय सब कुछ अपनी आँखों देख रहा हो इस तरह बोले - ‘केक का एक टुकड़ा मेरे लिए फोन पर रख दीजिए।’ मुझे सचमुच में ताज्जुब हुआ - उस समय केक का टुकड़ा मेरे हाथ में ही था। मैंने वास्तविकता बताई तो वे खूब खुश हुए और दुगुने जोश से चहकते हुए बधाइयाँ दीं।

रात लगभग साढ़े दस बजे घर लौटा। जी किया - मेल बॉक्स खोल कर देखूँ। किन्तु शरीर ने साथ नहीं दिया। सोचा, अगले दिन यह जिम्मेदारी निभा लूँगा। किन्तु स्वार्थ आड़े आ गया और ‘इकतीस मार्च देवता’ की पूजा-आराधना में लग गया।

वह दिन और आज का दिन। दो-एक ग्राहकों को उनकी (नए बीमों की) रसीदें भेजने के लिए मेल बॉक्स खोला तो देख कर भावाकुल भी हुआ और घबराया भी। बाप रे! निश्चय ही डेड़ सौ से अधिक सन्देश तो होंगे ही!
सन्देश अभी भी नहीं देखे हैं। पहले यह पोस्ट प्रकाशित करूँगा और उसके बाद ही सारे सन्देश पढूँगा। भावना तो यही है कि प्रत्येक सन्देश का उत्तर अलग-अलग ही दूँ। लेकिन वास्तव में करूँगा क्या - यह तो उसी समय मालूम हो सकेगा।

बहरहाल, आशीर्वाददाताओं की संख्या देख मैं ‘अभिभूत’ से कोसों आगे, ‘भावाकुल’ हूँ। अत्यधिकभावाकुल। मुझ अकिंचन को सबने जिस तरह मुझे आत्मीयता से समृद्ध किया, उसके सामने मैं नत मस्तक हूँ। धन्यवाद, आभार और कृतज्ञता जैसे शब्दों की अपर्याप्तता और बौनापन मुझे साल रहा है। खुद को व्यक्त करने का सामर्थ्य नहीं है मेरे पास।
मेरी झोली बहुत छोटी तो है ही, फटी हुई भी है। लेकिन इसका छोटा होना और फटा होना मुझे भाग्यशाली बना रहा है - सारी शुभ-कामनाएँ, मेरी झोली से निकल मेरे आँगन में फैल गई हैं। उनकी आत्मीयता और ऊष्मा मुझे आलिंगनबद्ध किए हुए हैं। मैं इस बन्धन से मुक्त होना नहीं चाहता। मैं तमाम कृपालुओं का आजीवन ऋणी बनकर ही रहना चाहता हूँ। नहीं होना मुझे ऋण-मुक्त। यही याचना है कि इसी तरह मुझे निभा लीजिएगा। सहन कर लीजिएगा मेरी कुटिलताओं और अशिष्टताओं को। आपकी शकुनी भावनाएँ ही मुझे शायद इन दुर्गुणों से मुक्त कर दे।

चलते-चलते एक बात विशेष रूप से। आपको शायद अच्छी लगे। गए साल, अपने जन्म दिनांक पर मैंने खुद से एक वादा किया था - दूसरों में खोट नहीं देखूँगा। यह वादा पूरा-पूरा तो नहीं निभा पाया किन्तु स्वयम् के प्रति अधिकतम क्रूर और वस्तुपरक होते हुए कह रहा हूँ कि अपने इस दुर्गुण पर मैंने यथेष्ट नियन्त्रण पाया है। कल तक जिनके नाम से भी मुझे चिढ़ होती थी, गए साल उनमें से कइयों के साथ मैंने घण्टों व्यतीत किए - सचमुच में प्रसन्नतापूर्वक और बिना किसी असुविधा के, बिना किसी चिढ़ के। ईश्वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिएगा कि मैं इस दुर्गुण से पूर्णतः मुक्त हो सकूँ।

मैं सदैव की तरह ही, आप सबका कृपाकांक्षी हूँ।

19 comments:

  1. BEAUTIFUL MEMOREBLE MOMENT OF LIFE NARRATED .
    NICE POST

    ReplyDelete
  2. आपको शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  3. आपको ढेर सारी शुभकामनाएं, शतायु हो दीर्घायु हो।

    ReplyDelete
  4. पुनः अनेक शुभकामनाएँ...

    ReplyDelete
  5. एक बार फिर से बधाई! ‘इकतीस मार्च देवता’ के कुछ किस्से हमें भी याद हैं।

    ReplyDelete
  6. दूसरे में खोट ना देखना, अपने ऊपर सबसे बड़ी क्रूरता है, परंतु अपने ऊपर भी क्रूर होना चाहिये।

    आपको एक बार फ़िर बधाई ।

    ReplyDelete
  7. Shubhkamnaien..............

    ReplyDelete
  8. Apki es posting ne to sab ko ek dhanyavaad se bhi bahut jyada de diya..
    Ab ek Vinati hai apse ki main aapse age me aur life exp me bahut hi chota hun to aap kripya kar ke mere name k sath ji na lagaya kare..Hindi typing nahi aati but always love hindi...kyonki mere papa bhi hindi ke lecturer hai aur ek kavi bhi,to hindi to humesha like karte hai..
    ek baar fir se dhanyabaad etni achi posting k liye..

    ReplyDelete
  9. सुन्दर संस्मरण।शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  10. सुन्दर. पुनः एक बार...

    ReplyDelete
  11. जन्म दिन की विलंबित शुभकामनायें। आपके लिये गये रेज़ोल्यूशन से हम भी कुछ सीखने का प्रयास करेंगे(अगले साल से) :)

    ReplyDelete
  12. चलिए देर से ही सही हमारी भी शुभकामनाएं स्वीकारिये .....

    कुछ-कुछ ऐसा ही हल मेरा भी हुआ था जन्मदिन वाले दिन ...:))

    ReplyDelete
  13. आपको बहुत बहुत बधाई, अब ३० मार्च की तारीख में समस्या तो आयेगी ही।

    ReplyDelete
  14. जन्म दिन मुबारक हो। उत्तम लेखन, बढिया पोस्ट - देहात की नारी का आगाज ब्लॉग जगत में। कभी हमारे ब्लाग पर भी आईए।

    ReplyDelete
  15. AAP KITNE ACHCHHE WRITER HAI YAH TO AAPKI ABHIVAKTI NE PRAKAT KIYA. AAP KATAI SWARTHI NAHI HAI , AAP BHAVISH ME IS TARAH NA SOCHI NA AAP SHAKUNI HAI. AAP AAP HI HAI .LIC MERI PATNI BHI KARTI HAI ISME ABHIRTA KA SWARTH BAHLI HI NAJAR AATA HO PAR ME JAANTA HOO ANDHER KO BHAGAYA NAHI JAA SAKTA PAR PRAKSH KO PETA KAR ANDERE KO DOOR KIYA JA SAKATA HAI. AAPNE BAHUT BAHUT ACHCHHA LIKHA. HAMRE DESH KI PARMPARA DEEP JALANE KI HAI . JANM DIVAS PAR HAVAN KARTE SAMAYH DEEP JALA KAR ANGNI PRAJWALIT KI JAATI HAI . TABHI HAVAN HOT HAI HAVAN ME IDAM MAM YANE YAH MERA nahi hai kaha jata hai bima bhi idam mam hai. kher jyada achchha lik nahi pata par part ko tar samjhe bund ko gagar samjhe aur jivam sahradah : ko pave 100 varsh se adhik varsho dak adin ho kar jye v is tarah likte rahi yahi shubh kamana.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी भावनाओं के लिए कोटिश: धन्‍यवाद और आभार।

      मैं बीमा अभिकर्ताओं की सुरक्षा और बेहतरी के लिए सदैव सक्रिय, बीमा अभिकर्ताओं के संगठन 'लियाफी' काकाम भी करता हूँ और इसीलिए अधिकाधिक अभिकर्ताओं से सम्‍पर्क करने की कोशिश भी करता हूँ। आप कह रहे हैं कि आपकी श्रीमतीजी भी अभिकर्ता हैं। मुझे प्रसन्‍नता होगी यदि आप उनसे मेरा परिचय कराऍं। मेरा मोबाइल नम्‍बर 98270 61799 है। उचित समझें तो सम्‍पर्क करने पर विचार करें।

      Delete
  16. देखिए आपको बधाई न देकर मैंने आपकी परेशानी नहीं बढ़ाई!
    आपको इतने मित्रों ने याद किया आप भाग्यशाली हैं. आपको इस बात की भी बधाई.
    घुघूतीबासूती

    ReplyDelete
    Replies
    1. कोटिश: धन्‍यवाद और आभार। कृपा है आपकी। आप जैसों की शुभ-कामनाऍं ही तो मेरी मूल पूँजी है। ईश्‍वर से मेरे लिए प्रार्थना कीजिएगा कि मेरीबुध्दि भ्रष्‍ट न हो और विवेक नष्‍ट न हो।

      और देखिए न! मैं भी कम नहीं। कृतज्ञाता ज्ञापन में मैंने भी भरपूर देरी की।

      Delete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.