स्थिति -1: 22 मई 2007
‘‘बीस मई को मैं ने पहली बार लिखा और चुपचाप बैठ गया। बाईस मई को चिट्ठा खोला तो भौंचक्का रहा गया। एक, दो नहीं, पूरी नौ टिप्पणियाँ! मैं बौरा गया। रोमांच का चरम क्या होता है यह पहली बार जाना।’’
(अपने ही ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी।)
स्थिति - 2: 21 अप्रेल 2012
‘‘पापा! बधाई हो! आपका ब्लॉग 50000 पेज व्यू पार कर गया है।’’ - वल्कल। (मेरा बड़ा बेटा)
‘‘अच्छा लगा तुम्हारा यह सन्देश पाकर। किन्तु क्या यह वाकई में इतनी बड़ी बात है?’’ - मैं
सन्तोष हो रहा है, दोनों स्थितियों के अन्तर को देखकर।
20 मई 2012 को, जब ब्लॉग जगत में मेरा छठवाँ साल शुरु हुआ तो पाँच बरस पहलेवाला रोमांच, नाम मात्र को भी, दूर-दूर तक अनुभव नहीं हुआ। खुद से बेहतर लोगों के पास बैठने का यही फायदा होता है - भ्रम दूर हो जाते हैं। वास्तविकता की जानकारी भले न हो, कोई बात नहीं, किन्तु भ्रमों का दूर हो जाना आदमी के स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही होता है। सो, ब्लॉग जगत की कृपा से, मैं ‘स्वस्थ’ हूँ।
अपने शुरुआती दिनों को याद करता हूँ तो अपनी मूर्खता पर जोर से हँसी आती है। उन दिनों किसी की एक सौ पोस्टें होने की सूचना चकित करती थी। लगता था, कैसे लिख लेते हैं भाई लोग इतना? ऐसे ‘शतक वीरों’ के प्रति आदर भाव तो पैदा होता ही था, कहीं न कहीं ईर्ष्या भी पैदा होती थी और विचार आता था - ‘हाय! राम! कब मेरी सौ पोस्टें पूरी हों और कब मैं भी ऐसी ही घोषणा करूँ?’
आज स्थिति यह है कि यह पोस्ट लिखने से पहले टटोला तो पता लगा कि पाँच सौ पोस्टें पूरी हो गईं - पता नहीं कब! इतराना तो दूर रहा, खुश होने की कोशिश की तो खुद पर ही झेंप हो आई। हाँ, अपनी इस झेंप पर जरूर खुशी हुई। ऐसी बातों की व्यर्थता का बोध एकान्त में भी आनन्द ही देता है।
यह सच है कि सुखी जीवन के लिए भ्रम जरूरी होते हैं। किन्तु निर्भ्रम होने का सुख उससे कहीं अधिक बड़ा होता है। ब्लॉग जगत ने मुझे यही सुख दिया है।
ब्लॉग जगत से मिला यह ‘पाँच साला हासिल’ मेरी ‘अनमोल निधि’ है।
शुक्रिया मित्रों, मुझे सेहतमन्द और सुखी बनाने के लिए, बनाए रखने के लिए।
यही कृपा बनी रहे।
‘‘बीस मई को मैं ने पहली बार लिखा और चुपचाप बैठ गया। बाईस मई को चिट्ठा खोला तो भौंचक्का रहा गया। एक, दो नहीं, पूरी नौ टिप्पणियाँ! मैं बौरा गया। रोमांच का चरम क्या होता है यह पहली बार जाना।’’
(अपने ही ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी।)
स्थिति - 2: 21 अप्रेल 2012
‘‘पापा! बधाई हो! आपका ब्लॉग 50000 पेज व्यू पार कर गया है।’’ - वल्कल। (मेरा बड़ा बेटा)
‘‘अच्छा लगा तुम्हारा यह सन्देश पाकर। किन्तु क्या यह वाकई में इतनी बड़ी बात है?’’ - मैं
सन्तोष हो रहा है, दोनों स्थितियों के अन्तर को देखकर।
20 मई 2012 को, जब ब्लॉग जगत में मेरा छठवाँ साल शुरु हुआ तो पाँच बरस पहलेवाला रोमांच, नाम मात्र को भी, दूर-दूर तक अनुभव नहीं हुआ। खुद से बेहतर लोगों के पास बैठने का यही फायदा होता है - भ्रम दूर हो जाते हैं। वास्तविकता की जानकारी भले न हो, कोई बात नहीं, किन्तु भ्रमों का दूर हो जाना आदमी के स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही होता है। सो, ब्लॉग जगत की कृपा से, मैं ‘स्वस्थ’ हूँ।
अपने शुरुआती दिनों को याद करता हूँ तो अपनी मूर्खता पर जोर से हँसी आती है। उन दिनों किसी की एक सौ पोस्टें होने की सूचना चकित करती थी। लगता था, कैसे लिख लेते हैं भाई लोग इतना? ऐसे ‘शतक वीरों’ के प्रति आदर भाव तो पैदा होता ही था, कहीं न कहीं ईर्ष्या भी पैदा होती थी और विचार आता था - ‘हाय! राम! कब मेरी सौ पोस्टें पूरी हों और कब मैं भी ऐसी ही घोषणा करूँ?’
आज स्थिति यह है कि यह पोस्ट लिखने से पहले टटोला तो पता लगा कि पाँच सौ पोस्टें पूरी हो गईं - पता नहीं कब! इतराना तो दूर रहा, खुश होने की कोशिश की तो खुद पर ही झेंप हो आई। हाँ, अपनी इस झेंप पर जरूर खुशी हुई। ऐसी बातों की व्यर्थता का बोध एकान्त में भी आनन्द ही देता है।
यह सच है कि सुखी जीवन के लिए भ्रम जरूरी होते हैं। किन्तु निर्भ्रम होने का सुख उससे कहीं अधिक बड़ा होता है। ब्लॉग जगत ने मुझे यही सुख दिया है।
ब्लॉग जगत से मिला यह ‘पाँच साला हासिल’ मेरी ‘अनमोल निधि’ है।
शुक्रिया मित्रों, मुझे सेहतमन्द और सुखी बनाने के लिए, बनाए रखने के लिए।
यही कृपा बनी रहे।
बधाई,बैरागी जी। लिखते रहना भी अच्छे स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण दवाई सिद्ध होती रही है। शुभकामनाएँ रचनात्मक सक्रियता के लिए।
ReplyDeleteशुक्रिया बृजेश भाई।
Deleteविष्णु जी,
ReplyDeleteआपको हार्दिक बधाई! मिठाई मैं यहीं लेकर खा लूंगा क्योंकि आपके ब्लॉग का नियमित पाठक होने का गर्व मुझे भी है।
शुभकामनायें!
आपने तो मुझे अरसे से मालामाल कर रखा है अनुरागजी। कुछ भी कह पाना मुमकिन नहीं लगता।
Delete"सुखी जीवन के लिए भ्रम जरूरी होते हैं" शायद यही सत्य है. आपको कोटि कोटि बधाईयाँ.स्वस्थ रहें सुखी रहें.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाइयाँ!
ReplyDeleteबहुत मुबारक जी...जल्द ही और कई किनारे-ठीहे ध्वस्त होंगे !
ReplyDeletebairagi man
ReplyDeletepranam
इस पाँच साला अनमोल निधी के लिये बहुत बहुत बधाई और आगे के लिये शुभकामनायें।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई, शुभ कामनाएं, आप अपनी मन: स्थिति का इमानदारी से आकलन करते है, यही आपके लेखन की विशेषता भी है.
ReplyDeleteई-मेल से, मेरे बेटे वल्कल का सन्देश -
ReplyDeleteपापा फिर से सक्रिय होने पर बधाईा
आपको ढेरों शुभकामनायें, हम लोगों को आपके अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है।
ReplyDeleteभाई साहब,नमस्कार । जीवन चलने का नाम की तर्ज़ पर आप लिखते रहे और एकोहम ब्लॉग ने 5 साल पूरे कर लिए... 500 पोस्ट के लिए 500 बार बधाई - रवि शर्मा
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