शीर्षक ही आप सबके लिए खुश खबर है। खुश खबर भी दोहरी। पहली तो यह कि आप सबकी भावनाओं ने यथेष्ठ प्रभाव डाला और ‘वे दोनों’ न केवल निर्णय पर पहुँच गए अपितु जैसा आपमें से अधिसंख्य ने चाहा था, उसी निर्णय पर पहुँचे। दूसरी यह प्रतीति कि ब्लॉग का उपयोग, किसी उलझन को सुलझाने में भी किया जा सकता है।
कल मैं लगभग तीन घण्टे ‘उन दोनों’ के साथ रहा। गया तो साथ में ‘पनघट की कठिन डगर’ का, इस पर प्रकाशित सारी टिप्पणियो का और श्रीरमाकान्त सिंह की इस पोस्ट का प्रिण्ट आउट भी लेता गया। सारी सामग्री देखकर वे हैरत में पड़ गए - इतने सारे लोग उनकी समस्या का निदान पाने में लगे! मुहावरों में कहूँ तो यह सब देखकर ‘वे दोनों’ बाग-बाग हो गए, शुरुआती कुछ कुछ क्षणों में भावुक और विगलित होते हुए।
सारी सामग्री उन्हें सौंपते हुए मैंने स्पष्ट किया कि वे दोनों मुझसे कुछ नहीं पूछें, आपस में ही तय करें, अभी ही तय करें और भले ही उनकी बातों से मुझे उनका निर्णय मालूम हो जाए किन्तु अपना निर्णय वे अपने मुँह से मुझे बताएँ। मैंने यह भी कहा कि उनका निर्णय मैं उसी प्रकार सार्वजनिक करूँगा जिस प्रकार उनका विवाद सार्वजनिक किया था।
सारी सामग्री उन्हें सौंपते हुए मैंने स्पष्ट किया कि वे दोनों मुझसे कुछ नहीं पूछें, आपस में ही तय करें, अभी ही तय करें और भले ही उनकी बातों से मुझे उनका निर्णय मालूम हो जाए किन्तु अपना निर्णय वे अपने मुँह से मुझे बताएँ। मैंने यह भी कहा कि उनका निर्णय मैं उसी प्रकार सार्वजनिक करूँगा जिस प्रकार उनका विवाद सार्वजनिक किया था।
कागज-पत्तर फैलाकर वे दोनों काम पर लग गए। एक-एक टिप्पणी को जोर-जोर से पढ़कर उस पर बात विस्तार से की। दोनों ने खूब तर्क-कुतर्क-वितर्क किए। खूब नोंक-झोंक हुई। बीच-बीच में, पाँच-सात बार, प्रश्नाकुल नजरों से मेरी ओर देखा। मैंने हर बार, हँसते हुए इंकार में अपनी मुण्डी हिलाई।
लगभग दो-सवा दो घण्टों के उनके इस ‘विमर्श’ में एक बात ने मेरा ध्यानाकर्षण किया। शुरुआत दोनों ने की, अपनी-अपनी बात को सही साबित करने की कोशिशों से। किन्तु बहुत जल्दी (इस ‘बहुत जल्दी’ से भी ‘बहुत जल्दी’) ‘वे दोनों’ अपनी बेटी की बेहतरी की चिन्ता करने लगे और अपनी बात को सही साबित करने की कोशिशें भूल बैठे।
अन्ततः ‘वे दोनों’ निर्णय पर पहुँच ही गए। जो कुछ ‘उन दोनों’ ने मुझे सुनाया, उसमें ऐसी बातें भी शरीक हो गईं जिनकी कल्पना मैंने नहीं की थीं। जाहिर हैं, आपने भी नहीं की होगी। ‘उनका’ निर्णय आप भी सुन लीजिए -
- रिश्ता कहाँ किया जाए, इसका अन्तिम निर्णय उनकी बेटी ही करेगी।
-इस निर्णय में, लड़के के परिवार के आर्थिक स्तर को पैमाना नहीं बनाया जाएगा। याने, लड़की किसी गरीब को भी पसन्द कर लेगी तो स्वीकार होगा।
- ‘वे दोनों’ यद्यपि दुराग्रह नहीं करेंगे किन्तु लड़के के समुचित शिक्षित होने पर ध्यान रखा जाए, यह आग्रह अवश्य रहेगा।
- लड़के के परिवार में यदि पहले से कोई बहू है तो उसकी दशा, परिवार में उसकी स्थिति और उसके साथ किए गए/किए जा रहे व्यवहार को भी ध्यान में रखा जाएगा।
- अन्तर्जातीय सम्बन्ध स्वीकार नहीं कर पाएँगे।
अपनी बात सुना कर ‘दोनों’ ने पूछा - ‘अब तो आप खुश?’ अपने-अपने अहम् को (अनायास ही) परे धकेल कर, अपनी बेटी की बेहतरी की चिन्ता करने के लिए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद देते हुए मैंने कहा - ‘यह सवाल अपनी बेटी से पूछिएगा।’
चलने से पहले मैंने ‘उन दोनों’ का चित्र लेना चाहा तो पिता ने हाथ जोड़ कर, क्षमा याचना करते हुए कहा - ‘मेरी बेटी और बेटे का विवाह हो जाने दीजिए। मैं अपने पूरे परिवार का फोटू आपका दे दूँगा। आपकी नियत पर मुझे कोई शक नहीं है किन्तु गाँव छोटा है और मेरा जाति-समाज तो और भी छोटा। आप तो जानते ही हो कि कुछ लोग हमेशा फुरतस में रहते हैं और उन्हें फजीते (लोगों की किरकिरी करने) में मजा आता है। क्या पता, कौन-कब-क्या कर बैठे और मेरा परिवार तथा बच्चे परेशानी में आ जाएँ। इसलिए आप मुझे माफ कर दें।’
‘दोनों’ मुझे छोड़ने के लिए दरवाजे तक आए। मैं नमस्कार कर उनसे विदा लूँ उससे पहले ‘पिता’ ने अपने हाथों में मेरे दोनों लेकर, रुँधे गले से कहा - ‘आप तो मेरे परिवार के ही हैं। किन्तु आपके लेख पर जिन-जिन लोगों ने अपनी राय दी है, उन सबको, हम दोनों की ओर से बार-बार और खूब सारे धन्यवाद दीजिएगा। उन सबने किसी अनजान और पराए की बेटी की चिन्ता की और रास्ता दिखाया। भगवान उन सबका भला करे। हम दोनों, आत्मा से उनकी बेहतरी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे।’
और, जैसा कि ऐसे क्षणों में मेरे साथ होता है, मुझे रोना आ गया। हम तीनों, निःशब्द थे। मैं लौट आया - बिना बोले।
मुझे लग रहा है, ‘लोक कल्याण’ लिए अनायास ही आयोजित किसी यज्ञ में मैंने, ब्लॉग के जरिए आप सबके साथ, आहुति दी है - ‘उनके’ और मेरे आँसुओं से भीगी आहुति।
आप सबको धन्यवाद। बधाइयाँ और अभिनन्दन भी।
निसंदेह, इस निर्णय का सारा श्रेय उस दम्पति के सरल व ॠजु मंथन को जाता है। विचार-अहंकारों को सहजता से विलोपित करना बड़ा दुष्कर कार्य है।
ReplyDeleteगौरवानुभूति हो रही है कि इसमें योगदान कर पाए। साथ ही स्वयं को भाग्यशाली मानते है सही समय पर सही विचार निसृत हुए॥
आपका लाख लाख आभार!!
Ant bhalaa to sab bhalla , Badhaai.
ReplyDeletelucky girl . . .
ReplyDeleteब्लॉग्गिंग को आपने एक नयी दिशा दी है.
ReplyDeleteआपने आज तक हो सकता है कई भला काम किया होगा लेकिन आपको किसी ने भी उस एवज में तीर्थ का लाभ नहीं दिया होगा .
ReplyDeleteसचमुच आपका यह कार्य एक तीर्थयात्रा का लाभ देगा . साथ ही आज मैं सिर उठाकर कह सकता हूँ की ९९% ब्लोगर दिल से इश्वर के
प्रतिनिधि हैं . आपने ब्लॉग को एक नई धारा में जोड़ दिया जहाँ प्रेम और विश्वास ही फूलेगा और फलेगा .....
:)
Deleteभाई जी,
ReplyDeleteजन चेतना ऐसे ही आगे बढ़़ती है।
रतलाम में हुई व्यक्तिगत बातचीत से उपजे एक अंतर्राष्ट्रीय विमर्श का यह सुखद परिणाम देखकर मन प्रसन्न हुआ। आपने इस ब्लॉग के द्वारा आप आधुनिक तकनीक के आदर्श उपयोग के उदाहरण सामने रख रहे हैं। शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा हो गया, अच्छाई ऐसे ही बढ़े..
ReplyDeleteएकदम अप्रत्याशित, आपका ढंग सहज लेकिन निराला होता है.
ReplyDeleteई-मेल से प्राप्त राजेश सिंह का सन्देश -
ReplyDeleteश्री बैरागीजी,
आपके इस समाचार से प्रसन्नता तो है ही और ब्लोगिंग का पोशीदा प्रभाव इतना भी हो सकता इसका अंदाजा पहली बार हुआ। आपको साधुवाद इस अनुरोध के साथ कि जैसे इस बार माध्यम बने इस नई धारा के वाहक भी बनें। परिवर्तन कीयह धारा अबाध रूप से सदैव प्रवाहित रहे।
सादर