पनिहारी

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की सातवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।





पनिहारी

नवी उमारिया नवी डगरिया नवा पिया की नवी प्यारी
नवी नगरी मैं नवी गगरी ले पनघट जईरी ओ पनिहारी

मोटी मोटी आँखाँ में नानो नानो काजर आँखाँ लागे नवी नवी
आज नाक में नथ पहरी तो नाक कहे के म्हू भी नवी
नवी माँग में नवा नवा मोती कंकू की टीली नवी नवी
हँसी कामणी तो शरमईगी जुही की कलियाँ नवी नवी
झुके नजरिया दुखे कमरिया भरे अनोखी सिसकारी
नवी नगरी में नवी गगरी ले पनघट जई री ओ पनिहारी
नवी उमरिया नवी डगरिया

नवी गोठणाँ आगे पाछे नवी नणद ने साथ करी
नवी चूमरी नवी नेज ली नवो घड़ो ने नवी चरी
ऊँची मेड़ीलाल किंवाड़ी नवी नवी पेड्याँ उतरी
(तो) नवा पड़ोसी देखण लागा देखे ओ डावड़ा फरी फरी
नवो छेवड़ो नवो बेवड़ो नवा दरद की दुखियारी
नवी नगरी नवी गगरी ले पनघट जई री ओ पनिहारी
नवी उमरिया नवी डगरिया

नवी चूड़ियाँ जरा जरा सी तड़की तड़की लागे ओ राज
नवी-नवी राताँ की नवी नवी वाताँ चुडियाँ के मुख से सुण लो आज
नवी-नवी लाजो मरे लाज ती देखो  अई री लाज ने लाज
अंग'अंग रस में मदमातों जणे मूल पर चढ़ ग्यो ब्‍याज
चाले पसीना का रेला रंगीला रस और रंग की पिचकारी
नवी नगरी में नवी गगरी ले पनघट जई री ओ पनिहारी
नवी उमरिया नवी डगरिया

कमर कंदोरो आगे आवे घड़ी-घड़ी व्हा हरकावे
चोली अणबोली बोली में न्‍ही केणो जो ऊ कई जावे
उड़े ओढ़नी लिपटे लँहगो पग यें वें पड़ता जावे
बिछिया के लारे पगाँ की मेंहदी नवा-नवा रसिया गावे
नवी पन्‍हैयाँ काटे रे कन्हैया नवा-नवा छाला वारी
नवी नगरी में नवी गगरी लें पनघट जईरी ओ पनिहारी
नवी उमरिया नवी डगरिया

धक-धक हिवड़ो करे हठीलो ज्यूँ पनघट मेरे अईर॒यो
कन्‍त पेलाईं से पनघट पर बलद्या ने प्राणी पईर॒यो
मीठो जोग मिलायो रामजी पापी पपैयो यूँ गईर॒यो
गेले देई दो रे कन्‍त कामणी सूरज आतमणे जईर॒यो
परणी सहेल्याँ पड़ी गुलाबी लाल-लाल पड़गी क्वाँरी
नवी नगरी में नवी गगरी ले पनघट जई री ओ पनिहारी
नवी उमरिया नवी डर्गरेया

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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