नणदल

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की छठवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।







नणदल
  
पिया म्हारी नणदल घणी नखरारी
राजा म्हारी नणदल घणी नखरारी
नखरारी लागे प्यारी
जामण जायी बेन्याँ थारी
घणी नखरारी
सैंयाँ म्हारी नगदल घणी नखरारी

आज दुपेराँ म्हूँ न्‍हावा ने गई थी
नखरारी दाऽरी म्हारे साथे अई थी
बड़ी बड़ी आँखाँ ती देखे अंग म्हारो
केऽवे के भाभी बदलीग्यो रंग थारो
अणी खुणे, वणी खुणे
थाँकी-म्‍हारी वाताँ हुणे
करे रखवारी
पिया म्हारी नणदल घणी नखरारी

'गोठण के घरे जई री' वा यूँ  केऽई ने जावे
छाने-छाने जोसीड़ा ने हाथ वतावे
जोसी थारा टीपणाँ में देखो भाग म्हारा
चाँद कदी ऊगेगा, डूबेगा कदी तारा
खेताँ में या रसिया गावे
दीवा लाग्याँ घरे आवे
असी कई सुधारी?
पिया म्हारी नणदल घणी नखरारी

'म्हारा भई ती यूँ को ऽ' ने 'म्हारी बई ती यूँ को ऽ'
कणा कई केवाड़े, 'म्हूँ कई कूँँ, थी को'
'अबके हटवाड़ा ती हुड़ो एक मँगई दो'
पिंजरा में मैना रोवे, पियाजी उड़ई दो
बजाजां के जावो पिया
सालूड़ा मोलावो पिया
पागाँ चल्ला वारी
पिया म्हारी नगदल घणी नखरारी

बागाँ में भी व्हा तो भँवरा के पाछे भागी
तितल्याँ पकड़ने गालाँ पे बैठावा लागी
निबूड़ा ने डाड़म काचा रोज तोड़े
काची काची कलियाँ की बहियाँ मरोड़े
आपने दीखे व्हा भोली
फाड़ी न्‍हाकी नवी चोली
गाठी घुण्ड्याँ वारी
पिया म्हारी नगदल घणी नखरारी

केई दाण परणईद्‌या अणा दनाँ ढुल्‍ला- ढुल्‍ली
चम्पा ने चमेली को माँडो करनो न्‍हीं भूली
म्हारे डीले झूमे रोज, पनघट पे जई-जई ने
म्हारो मन भी वेंडो वेईग्यो पिया, वणके साथे रेई ने
आज तो थी आँखाँ मीचो
काले कई ऊँचो नीचो
थाँकी जिम्मेदारी
पिया म्हारी नणदल घणी नखरारी

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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