नवो धान

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की आठवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।








नवो धान

नवो धान घर में आयो
पूँजी को धनुष तोड़वा ने जणे
सीता को राम स्वयंवर में आयो
नवो धान घर में आयो

कारा-गोरा गारा में निपजो म्हारा दाता
बदली दी अणने गरीबाँ की रातां
चोमासे सरसो ने, हियारे हरसो
माणक ने मोत्याँ ती भरदी पराताँ
बाताँ ही बाताँ में
हाथाँ ही हाथाँ में
मेहनत की एक ईऽज लहर में आयो
नवो धान घर में आयो

|खेत में न्‍हीं मायो, खरा में न्‍ही मायो
तो छकड़ा में बैठी ने गुवाड़ी में आयो
मुट्ठी को वेईग्यो यो माणी-मणासा
छकड़ा ही छकडा में वेईग्यो सवायो
गाडी गडाराँ की
गलियाँ गुँजातो
उमराव पाकी उमर में आयो
नवो धान घर में आयो

खेताँ का राजा ने मूँछाँ मरोडी
राणी ने सजनसई ओढ़नी ओढ़ी
लीप्यो-छाब्यो आँगणों ने माँडी द्या माँडणा
आरती संजोई ने गीत गाती दौडी
निरधन को बैली
लकछमी ती पैली
अरवाणो धोरी दुपर में आयो
नवो धान घर में आयो

घर-घर बधावा ने घर-घर दिवारी
मेटी दी अणने अमावस अँधारी
कतराई बिछड्या के अईग्या नवा आणा
परणई दी कतरी ही डावड्याँ कुँवारी
अमरत का दुकड़्या में
आयो अवतारी
लगनाँ का लागत पहर में आयो
नवो धान घर में आयो

रकड्याँ घड़ईगी, घड़ईग्या कंदोरा
बाजूबन्द की बेरकाँ में लूमे लाँबी ओ ऽरी
घेरदार घाघरा ने टुक्‍यॉं वारी काँचरी
पेरी तो ओरा-दोरा फिरे नवा छोरा
गाम-गाम असवारी
अईगी मदन की
रूप को रंगीलो रेलो शहर में आयो
नवो धान घर में आयो

मन में उमंग और तन में उमंग है
मेहनत की जिन्दगी को नवो रूप रंग है
हस्ती की मस्ती है मस्ती का गीत है
गीत में भी प्रीत है प्रीत को भी ढंग है
निरधन-गरीब कई
उमरा-अमीर कई
हगरा को ठाठ बराबर में आयो
नवोधान घर में आयो

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन






यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

1 comment:

  1. मालवा की भोली भाली संस्कृति की मनभावन झलक लिए इस कविता में कृषक परिवार के
    सहज मस्ती भरे जीवन के पहलुओं का सुंदर चित्रांकन किया है।
    --आलोक पंजाबी

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