माँ ने तुम्हें बुलाया है


श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की चाौथी  कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है। 



माँ ने तुम्हें बुलाया है

देखो हिमगिरि की ड्योढ़ी पर हत्यारा चढ़ आया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है

दिखलाना है फिर जौहर
जाग उठो हे प्रलयंकर
महादेव जय हो हर-हर
बोलो अल्ला हो अकबर
कफन बाँध लो फिर सर पर

बेमौसम ही हिमगिरि का हिम देखो आज पिघलता है
दो हजार बरसों का साथी तेवर आज बदलता है
जितना समझाओ उतना ही ज्यादह और मचलता है
करो अमन की बात बावरा बस बारूद उगलता है
नब्बे कोटि भुजाओं का बल लौह लाड़लों रे
(इन) नब्बे कोटि भुजाओं का बल पेकिंग ने अजमाया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....
 
राजनीति के राघव इसको युद्ध नहीं बतलाते हैं
मानवता के माधव सब कुछ सहते हैं समझाते हैं
गला काटता है परदेसी फिर भी गले लगाते हैं
दुनिया क्या जाने हम हिन्दी कितना जहर पचाते हैं
लाल किले की लल्लाई पर लौह लाड़लों रे
लालकिले की लल्लाई पर लाल चीन ललचाया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

झाँसी, प्लासी, पानीपत और कुरुक्षेत्र हुँकार रहा
जलियाँवाला और कलिंग का हर जर्रा ललकार रहा
मान सरोवर की लहरों पर कब किसका अधिकार रहा
सन्निपात के उस रोगी का नहीं और उपचार रहा
शैशव में ही उस रोगी पर लौह लाड़लों रे
शैशव में ही उस रोगी पर महाकाल मँडराया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

मीणों, मेवों, मर्द मराठों, गुप्त, गुर्जरों, परमारों
ओ जाटों, ओ चारण-भाटों, ओ पाटण की तलवारों
ओ बुन्देलों, ओ चन्देलों, बाघ-बघेलों, परिहारों
बन्दा बैरागी के बेटों, ओ नानक के सरदारों
आज शेर की मूँछ पकड़ने लौह लाड़लों रे
आज शेर की मूँछ पकड़ने गार में गीदड़ आया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फ़िर जोहर.....

ओ कन्नड़, ओ कोंकण, तामिल, ओ घाटों के पहरेदार
ओ तैलंग, ओ तीखे तैलप, सूँतों फिर सोई तलवार
ओ मैसूरी, ओ मद्रासी, ओ आन्ध्रा, ओ वज्र बिहार
ओ आसामी, ओ गुजराती, ओ उड़िया, ओ बंग कुमार
माँ काली का खाली खप्पर लौह लाड़लों रे
माँ काली का खाली खप्पर अभी नहीं भर पाया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

ओ बजाज, ओ बिड़ला, टाटा, डालमिया, ओ सोमानी
ओ निजाम ओ सारा भाई, बैद्यनाथ, ओ समदानी
कच्छ देश के कर्ण कुबेरों, बागड़िया, राजस्थानी
(ओ) भामा शाह की सन्‍तानों, तुम पुनः बनो औढर दानी
आज वतन पर सब निछरादो लछमी वालों रे
आज देश पर सब निछरा दो जितना भी जुट पाया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

कैनेड़ी, अय्यूब, सुकर्णों, मेकमिलन कुछ तो बोलो
ओ डिगाल, ओ नासिर, आरिफ, ओ हुसैन मुँह तो खोलो
ओ टीटो, नक्रुमा, कुव्वत, झूठ-सत्य तुम तो तोलो
ओ निकिता तुम ही चाऊ की नई-नई गाँठे खोलो
बिना बात ही बैठे ठाले दुनिया वालों रे
बिना बात ही बैठे ठाले किसका सर खुजलाया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

ओ हंगरी, ओ हिन्दचीन के बुझते-बुझते अंगारों
नये कोरिया पर पग धरती, अमर अमन की झनकारों
चन्द्र, सूर्य, मंगल, पताल के वाशिन्दों और संसारों
ओ उन्नीस सौ सैंतालिस से आज तलक के अखबारों
सच बतलाना इस मरघट में दुनिया वालों रे
सच बतलाना इस मरघट में किसने बाग लगाया है
चलो देश के लौह लाड़़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

अगर हथौड़े-हँसिये का ईमान यहाँ पर छूटेगा
पंचशील का पावन घट यदि इस पनघट पर फूटेगा
अगर हिमालय के हीरों को कोई लुटेरा लूटेगा
(तो) दो हजार क्या दो करोड़ बरसों का रिश्ता टूटेगा
भाई चारा हम नहीं भूले दुनिया वालों रे
भाई चारा हम नहीं भूले, चाऊ ने बिसराया है
चलो देश के लौह लाड़लों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

अगर जंग के रंग उड़े तो कदम नहीं हटने देंगे
माँ पर चढ़ती रक्तांजलि में रक्त नहीं घटने देंगे
सिर पैंतालिस कोटि कटेंगे देश नहीं कटने देंगे
केरल छँटना भी चाहे तो कभी नहीं छँटने देंगे
(अब) केरल सबसे आगे होगा चाऊ चाचा ओ-
(अब) केरल सबसे आगे होगा कवि ये वादा लाया है
चलो देश के लौह लाडलों माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....

कसम तुम्हें है हिमगिरि की उन सर्द हिमानी आहों की
कसम तुम्हें है वीर जवाहर की भृकुटि और भुजाओं की
कसम तुम्हें है करमसिह के हरे-हरे उन घावों की
कसम तुम्हें है तेनसिह के उन अपराजित पाँवों की
बलिदानों का मंगल मौसम लौह लाडलो रे
बलिदानोंें का मंगल मौसम किस्मत से ही आया है
चलो देश के लौह लाड़लो माँ ने तुम्हें बुलाया है
दिखलाना है फिर जौहर.....
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

 

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