यो बसन्त है

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की पचीसवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।






यो बसन्त है

यो बसन्त है
यो बसन्त है

ठण्‍ड गई परदेस, तावड़ो लगवा लाग्यो जी
बिरहण आँगण लीमड़ली को, अंग-अंग गदरायो जी
कारो काग बोलवा लाग्यो, कट्यो-कट्यो रूखो-रूखो
शाह भमरड़ो लग्यों भटकवा तरसो और भूखो-भूखो
आँबो मोर॒यो, अमली मोरी, बोले कोयल कजरारी
धूम धड़क्‍का ती अईगी है ऋतुराजा को असवारी
है ऋतुआँ को राजा आखिर
रूपवान गुणवन्त है
यो बसन्‍त है

कल्याँ खुली ने फूल वणीगी, फूल डील में न्‍हीं मईर्‌या
काँटा की कँटवाड़ उलाँघी, तितली भँवरा इतरईर्‌या
धरती की पचरंगी चोली भरी-भरी भारी लागे
गन्‍ध-सुगन्‍ध असी फेलीगी, काँटा तक वाला लागे
सारस की जोड़ी दोड़ी री, आला गच्च अडाणा में
आपूड़ी की गन्‍ध गजब है, ज्वाराँ का खलिहाना में
अमल कसूँबो पीवा
आँगण अईग्यो औघड़ सन्त है
यो बसन्‍त है

एक-एक कण गावा लाग्यो, दसी दिसा रस घोरईग्यो
प्रणघट जाती पणिहारी को, देखो तो मन बोरईग्यो
छैल-छबीला, नवा डावड़ा टेढ़ा-टेढ़ा नारे रे
दो पावण्‍डा चाले जण में, दो सो दाण खँखारे रे
लेई गुलाब की थारी अईगी राधा भोरी ढारी रे
 व्‍हा कई जाणे 
अणी उसन की महिमा घणी अनन्त है
यो बसन्‍त है

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।



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