मेरे देश के लाल हठीले

 
श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की बत्तीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




मेरे देश के लाल हठीले

पराधीनता को जहाँ, समझा श्राप महान
कण-कण की खातिर जहाँ, हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की, शूर-वीर सन्तान

आन-मान अभिमान की धरती, पैदा करती दीवाने
मेरे देश के लाल हठीले, शीश झुकाना क्या जाने

दूध-दही की नदियाँ जिसके, आँचल में कल-कल करतीं
हीरा, पन्ना, माणक से है, पटी जहाँ की धरती
हल की नोंकें जिस धरती की, मोती से माँगें भरती
उच्च हिमालय के शिखरों पर, जिसकी ध्वजा फहरती
रखवाले ऐसी धरती के, हाथ बढ़ाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले, शीश झुकाना क्या जाने

आजादी अधिकार सभी का, जहाँ बोलते सेनानी
विश्वशान्ति के गीत सुनाती, जहाँ चुनरिया धानी
मेघ साँवले बरसाते हैं, जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी माँगे पोंछ डालतीं हँसते-हँसते कल्याणी
ऐसी भारत माँ के बेटे, मान गँवाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले, शीश झुकाना क्या जाने

जहाँ पढ़ाया जाता केवल, माँ की खातिर मर जाना
जहाँ सिखाया जाता केवल, करके वचन निभाना
जियो शान से, मरो शान से, जहाँ का है कौमी गाना
बच्चा-बच्चा पहिने रहता, जहाँ शहीदों का बाना
उस धरती के अमर सिपाही, पीठ दिखाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले, शीश झुकाना क्या जाने
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।





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