हम इतिहास बदलने वाले

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की चौदहवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।





हम इतिहास बदलने वाले

हम इतिहास बदलने वाले
इतिहासों के निर्माता
बदल रहे हैं रूप-रुंग अब
प्यारे हिन्दुस्तान का
देख जमाने आँख खोल कर
जौहर इस सन्तान का

खेत-खेत में है हरियाली, भर गई ताल तलैया रे
श्रम गीतों से गूँज रही है, अमराई की छैयाँ रे
मुसकाती मेहनत की कलियाँ
महक रहीं हैं अलियाँ-गलियाँ
बदल दिया रुख बात-बात में हर आँधी तूफान का
देख जमाने आँख खोल कर जौहर इस सन्तान का
हम इतिहास बदलने वाले.....

अंगारे बरसाने वाला, आसमान चुपचाप है
कंगाली सिर पीट-पीट कर, करती करूण विलाप है
रिमझिम आती है खुशहाली
रोज ईद और रोज दिवाली
मान गई कुदरत भी लोहा गौरवमय बलिदान का
देख जमाने आँख खोल कर जौहर इस सन्तान का
हम इतिहास बदलने वाले.....

हर पगडण्डी सड़क बना दी, हर थाली में रोटी है
हर तन दिखता ढेँका-ढँका कुछ, दिखती नहीं लंगोटी है
हर आँगन में पहुँची शिक्षा
दे दी हमने कठिन परीक्षा
भरा-भरा लगता है आँचल, हर खाली खलिहान का
देख जमाने आँख खोल कर जौहर इस सन्तान का
हम इतिहास बदलने वाले.....

युद्ध पचासों रोके हमने, गा कर अमन तराना रे
गौरव के यश-गीत हमारे, गाता आज जमाना रे
सबको जीना सिखलाया है
पंथ अमन का दिखलाया है
सोया मानव जगा दिया है, हमने हर इन्सान का
देख जमाने आँख खोल कर जौहर इस सन्तान का
हम इतिहास बदलने वाले.....

मेघा भी बरसाते मस्ती, बिजली राह दिखाती है
विरहा गा-गा करके मंजिल, रोज हमें बुलाती है
चलें लुटाते हस्ती-मस्ती
प्यार मुहब्बत बस्ती-बस्ती
लिखना है इतिहास नया फिर, युग के अमर निशान का
देख जमाने आँख खोल कर जौहर इस सन््तान का
हम इतिहास बदलने वाले.....
 
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




 

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