मेहनत को जुग आयो रे

 

श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्र्रह
‘अई जावो मैदान में’ की पहली कविता

यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।




मेहनत को जुग आयो रे

सेजड़ली में
नींदड़ली में
सोताँ ही सोताँ सरग देस को, सत्यानास मिलायो रे
(अब) सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा पिवड़ा, मेहनत को जुग आयो रे

आँ ऽ पी राजा, आँ ऽ पी परजा, आँ ऽ पी ऽ अपणा रखवारा
अपणा सरवर, ताल-तलैया, अपणा ई नद्दी नारा
अपणी खेती, अपणी रेती, त्यार खड़ा झरना प्यारा
थोड़ो पसीनो देई दे अपणो, सुख देखे जाया थारा
कल का दास गुलामाँ ने, दुनिया पर रंग जमायो रे
(तू) सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा सैंया, मेहनत को जुग आयो रे
सेजडली में.....

लाख जातरी आवे-जावे, सात समन्दर पाराँ से
गलियाँ-गलियाँ जई-जई ने व्ही, मिले लँगोटी वारा से
पूछे है व्ही थारी वाताँ, नदियाँ और पहाड़ाँ से
कूँते है थारी किम्मत वी, धरती का सिणगाराँ से
समझ बावरा थारी माँ को, जग में मान सवायो रे
सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा राजा, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....

बेन-बाव
ड़्याँ, नवी डावड़्याँ, भारत नवो वणावे रे
राड़ करो मत, लाड़ करो भई, गीत प्रीत का गावे रे
वाट-वटूल्या, घाट-घटूल्या, आजादी इतरावे रे
नवा नरोगा नेहरु-गाँधी, पलणा में पोढ़ावे रे
मेंहदी भरिया पाँवाँ से, म्हाने रस्तो नयो वणायो रे
सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा पिवड़ा, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....

दाँतकड़ी ही दाँतकड़ी में, परदेसी ने ताड़ी द्यो
इतिहासाँ की पोथ्याँ में ती, कारो पन्नो फाड़ी द्यो
मरदानी बेट्याँ ने माँ के, लाल तलक फेर काढ़ी द्यो
एक दाण तो विश्वसंघ पर, थारो झण्डो गाड़ी द्योे
मरद, मुछारा, पड़्या निठारा, माँ को दूध लजायो रे 
सुख की सेजां छोड़ म्हारा छलिया, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....

दो दाणा की आसा लेई ने, पंख-पँखेरू आवे रे
थारा सूखा खेताँ में ती, भूखा ही उड़ी जावे रे
जा धरती दुनिया ने पारे, व्हा धरती शरमावे रे
होठ हुकईग्या भारत माँ का, पाणी कूण पिलावे रे
मझ जोबन में करे कपूती, यूँ कई वणे परायो रे
सुख की सेजां छोड़ म्हारा कन्ता, मेहनत को जुगे आयो रे
सेजड़ली में.....

तू इन्दर ती पाणी माँगे, म्हने अचम्भो आवे रे
सुजला-सुफला भारत माँ को, यूँ कई मान घटावे रे 
परबत बलमा अणी घड़ी में, तू जो गरजी जावे रे
तो, सागर सँकड़ो पड़े पसीनो, अतरो बरसी जावे रे
पग पटको वँई थाणी अईजा, यो वर थाने पायो रे
सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा राजा, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....

आखी दुनिया आगे जई री, आँ ऽ पी पिछड़ी जावाँगाँ
देसड़ला को करजो माथे, बलमा कदी चुकावाँगाँ
म्हीं भारत का जाया उपन्या, दुनियाँ ने दिखलावाँगा
अधरम को यो अन्न हठीला, देख अबे नही खावाँगा
श्रम गंगा में न्हावो म्हारा सैंया, घणो मुफत को खायो रे
सुख की सेजाँ छोड़ म्हारा सजना, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....

म्हारा गरा का सोगन उठजा, वगत फेर न्ही आवेगा
तक चुकी तो रेसम को भी, राखोड़ो वेई जावेगा
मनक जमारो अणी देस में, फेर कदी तू पावेगा
राजघाट की सोगन उठ-उठ देख पछे पछतावेगा
अणी बले तो जग-जामण ने, मीठो थान धवायो रे
सुख की सेजां छोड़ म्हारा हिंगरु, मेहनत को जुग आयो रे
सेजड़ली में.....
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन





यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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