श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की तेरहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
‘रेत के रिश्ते’
की तेरहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
प्रश्न-चिह्न
हर दिशा खामोश है
शायद उजाला आयेगा,
चन्द किरनें भेंट में
शायद हमें दे जायेगा।
किन्तु मितवा!
रात काली और गहरी हो न जाये
और ये गूँगी दिशाएँ
ठेठ बहरी हो न जायें
इसलिए तुम आज ठहरो
सोच लो
मत दो बधाई
हो न हो
यह रस्म साली
कल करा दे जग-हँसाई ।
-----
संग्रह के ब्यौरे
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
-----
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
जी। यह मान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार सर रचना पढ़वाने हेतु।
सादर प्रणाम
जी। टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteहर दिशा खामोश है
ReplyDeleteशायद उजाला आयेगा,
चन्द किरनें भेंट में
शायद हमें दे जायेगा।
इतनी प्यारी कविता को साझा करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर,सादर नमन
आपकी टिप्पणी ने मेरा हौसला बढाया। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteभैयाजी की सुंदर कृति को पढ़वाने का हृदय से आभार।
ReplyDeleteसाधुवाद।
जी। ब्लॉग पर आने के लिए तथा टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteहर दिशा खामोश है
ReplyDeleteशायद उजाला आयेगा,
चन्द किरनें भेंट में
शायद हमें दे जायेगा।
उम्मीद की किरण जगाती लाजवाब कृति
वाह!!!
जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन सर।
ReplyDeleteसादर।