श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की सोलहवीं कविता
‘ओ अमलतास’ की सोलहवीं कविता
यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।
इन्कलाब है
समर्पित किया गया है।
इन्कलाब है
रोइये या गाइये ये इन्कलाब है
देखते ही जाइये ये इन्कलाब है
बाखुशी उस बाँध को तोड़ तो दिया
अब डूब कर मर जाइये, ये इन्कलाब है
और क्या करते सिवा नारा लगाने के
आप ही समझाइये ये इन्कलाब है
रोटियों के मामले की मुल्तवी रखें
और भी कुछ खाइये ये इन्कलाब है
एक दो नारे सुने और बाँध ली उम्मीद
अब तथ्य पर आ जाइये ये इन्कलाब है
रेत में तो जी लिये, अब आ गया दलदल
शौक से चिल्लाइये, ये इन्कलाब है
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‘ओ अमलतास’ की पन्द्रहवीं कविता ‘बड़ा मजा है’ यहाँ पढ़िए
‘ओ अमलतास’ की सत्रहवीं कविता ‘चुप रहो’ यहाँ पढ़िए
संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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