श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की चौदहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
समय के बारे में
‘रेत के रिश्ते’
की चौदहवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
समय के बारे में
समय को इतना समय दो कि
वह सहला सके तुम्हारे घाव
अच्छा है समय से बेबनाव
पर कारगर या बेकार
मरहम लगाने तो दो उसे।
सुरा या कमसुरा गाने तो दो उसे।
जब तुम नहीं सुनते हो उसकी
तो वह भी नहीं सुनता है तुम्हारी
बुरा है उसके सुर में सुर मिलाना
और भी ज्यादा बुरा है
उसके खूँटे से बँध जाना।
काम लो उससे नर्स या दाई का
काम मत लो उससे किसान या हलवाई का।
समय को जो बना लेता है अन्नदाता
उसकी रोटी समय कभी नहीं पकाता।
समय की चाकरी मत करो
उसको चाकर रखो
चाकर भी
उसी की कसम खाकर रखो ।
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संग्रह के ब्यौरे
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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समय के ऊपर लिखी एक सार्थक और प्रासंगिक कविता ।
ReplyDeleteजी। ब्लॉग पर आने के लिए तथा टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 25.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
चयन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद बैरागी जी, बालकवि
ReplyDeleteवैरागी जी की कविता पढ़ने का अवसर देने के निए , सत्य् ही कहा है उन्होंने कि "समय की चाकरी मत करो
उसको चाकर रखो" वाह
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिए और टिप्पणी करने के लिए। आपकी टिप्पणी ने मेरा हौसला बढ़ाया।
Deleteवाह! बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर आभार सर इतनी सुंदर रचना पढ़वाने हेतु।
सादर
जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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