मृत्युभोज (‘मनुहार भाभी’ की पन्द्रहवीं कहानी)



श्री बालकवि बैरागी के
प्रथम कहानी संग्रह
‘मनुहार भाभी’ की पन्द्रहवीं कहानी




मृत्युभोज  

इसे कहते हैं सौ सुनार की और एक लुहार की। बल्देवा ने अपने बाप का मृत्यभोज कर भी लिया और मृत्युभोज हुआ भी नहीं। पाँचों पकवान बनाकर वह जाति-बिरादरी और समाज की बाट देखता रहा पर न कोई खाने जा सका और न पहुँचा ही। यहाँ तक कि जिन लोगों ने तरह-तरह के तर्क-कुतर्क करके यह मत्युभोज करवाया वे तक इस भोज को खा नहीं सके। न बलदेवा जात से बाहर निकाला गया, न समाज से दूर रहा। पर वाह रे बल्देवा! पट्ठे ने साँप भी मार डाला और लाठी भी नहीं टूटने दी। आज बल्देवा की बुद्धि के हल्ले उसकी जात में तो हो ही रहे हैं पर न जाने कहाँ-कहाँ से लोग आ-आकर उसको नई नजर से देख रहे हैं और एक बल्देवा है कि सामने बाबाजी के चबूतरे पर बैठा मजे से अपनी बीड़ी फूँक रहा है। जो भी उसकी तारीफ करता है उसे वह बीड़ी पीने की जोरदार मनुहार करता है और फिर इधर-उधर की बातों में लग जाता है, आज तक उसने किसी को नहीं बताया कि उसे यह ‘अक्कल’ मिली कहाँ से।

बल्देवा ने अपने बाप से उसके जीते जी ही कह दिया था कि ‘सोच-समझकर मरने का प्रोग्राम बनाना। आपके मरने पर मैं जात-वात जिमाने के चक्कर में नहीं पडूँगा। यह काज-कर्यावर और मृत्युभोज जैसा महापाप मुझसे नहीं होने का। मरना हो तो मरो और नहीं मरना हो तो मत मरो। हाँ, मैं आपका वारिस हूँ, जायन्दा बेटा हूँ इस नाते सेवा-चाकरी और इलाज-विलाज में कोई कोर-कसर नहीं रहेगी और वैसे भी अभी आपको मरने की क्या जल्दी है? अभी गॉँव-मोहल्ले में आपसे पहले क्यू-कतार-लाइन-लमडोरी में एक से एक दाने-बूढ़े लगे पड़े है।’ और बल्देवा न जाने किस-किस का नाम बता देता-‘वो देखो आपसे इतनी ज्यादह ऊम्मर वाला अमका-ढमका अभी तक खींच ही रहा है कि नहीं? क्यों मरूँ-मरूँ करते हो? धाता-विधाता ने अच्छा भला मिनक जनम दिया। आराम से काटो। दो टैम रोटी, चार टैम चाय और आठ टैम......।’ और बल्देवा का बूढ़ा बाप उसकी बात बीच में ही काट देता। बुढ़ऊ को न अपने बेट से काई शिकायत थी, न अपनी बहू से कोई आमना था। सेवा-चाकरी में कोर-कसर थी ही नहीं। उसकी उम्र के दूसरे लोग बल्देव की सेवा के समाचार सुन-सुन कर उससे जलन पालते और अपने बेटों-बहुओं का रोना रोया करते। 

पर हर हथेली पर आयु की एक छोटी-बड़ी लम्बी-पतली लकीर खींची हुई होती ही है। एक न एक दिन उस लकीर को अलोप होना ही है। आदमी गिनती की साँसें लाता है, उस गिनती को कब पूरा होना है यह किसी को मालूम नहीं होता। यही इस दुनिया का आनन्द है।

बेशक बल्देवा ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था पर था अपने दायरे का चतुर सुजान। जब कभी बल्देवा लहर में आता वो रास्ते चलते कह बैठता था, ‘सम्हाल कर मेरे भैया! बहुत जोर लगा लेगा तो भी बत्तीस हजार पाँच सौ दिनों से ज्यादह गाड़ी चलने की नहीं है। साल के तीन सौ पैंसठ दिन और से ज्यादा से ज्यादा सौ बरस जी लेगा। फिर तो काठ की घोड़ी पर लाड़ा बनना ही है बापू! ठसका-वसका छोड़ो और थोड़ा परमार्थ भी कर लो!’ 

और जैसा कि होना था एक दिन बल्देवा का बाप जम के भैंसे का भोज बन गया। जैसा कि गाँव गली में होता आया है सभी ने बल्देवा के बाप को कन्धों पर उठाया और “राम नाम सत्त है” के बीच ‘रघुपति राघव राजाराम’ गा दिया। नाई ने बल्देवा का माथा उस्तरे से कानकेश देने वाला बना दिया और पाँच कुण्टल लकड़ी और दो घण्टों की ले-दे में बात बल्देवा के बाप से सरक कर काज-कर्यावर, जीवण-चूँटण, ओसर-मोसर, नुक्ते-मृत्युभोज पर आकर ठिठक गई।

तीसरे दिन जात-समाज ने उठावना निपटाया। बल्देवा को मन्दिर दर्शन करवा कर बिरादरी मोसर की चिट्ठियाँ फाड़ने बैठ गई। जो लोग जात-बिरादरी के नहीं थे, वे अपने घरों को लौट गए। बल्देवा ने पंचायत के मन की थाह ली। उसने चारों तरफ देखा। लोगों को गिना। उससे छिपा नहीं था कि इस जाजम पर मृत्युभोज के विरोधी, बहुत हुआ तो दो-एक भाई लोग ही निकलेंगे। बाकी सब तो हर कीमत पर मोसर चाहते ही थे। सभी के अपने-अपने तर्क थे। बल्देवा किस-किस के जवाब देता? उसने मन में हिसाब लगाया कि यह मोसर होता है तो फिर समझ लो या तो मकान बिकना है या बाप का छोड़ा हुआ जमीन-कुआ-अडाण। मोसर का गणित हर लेखे बल्देवा के खिलाफ था। बाजार में चीज-वस्तु के भावों की कल्पना भर से बल्देवा की धड़कनें तेज हो गईं......और अभी तो बारहवें में पूरे नौ दिन शेष थे। बैठने आने वालों का खर्चा माथे पर लहरा ही रहा था। यह तो गनीमत थी कि बल्देवा का बेटा सयाना नहीं था। अभी वह छोटा था। जानता कुछ नहीं था और बल्देवा की घरवाली कजरी तीज और करवा चौथ तक पतिव्रता थी। पर दूसरे भाई-बन्धु आखिर किस दिन माफ करने वाले थे! कजरी नेे भला इसी में समझा कि बल्देवा पंचों की बात मान ले। हीला-हवाला न करे। 

आखिरकार ‘जात-गंगा का मान रखने के लिए’ बल्देवा ने हामी भर ली कि वो अपने बाप का मोसर करेगा और ठाठदार करेगा। जात-गंगा कब उसके आँगन में आती है! और फिर ले-दे कर एक ही तो बाप हुआ करता है सभी का! वो भी भला कौन-सा बार-बार मरा करता है? जो भी होना होता है वो बस एक बार में हो जाता है। फिर उसके बाप ने उसे नंगा-भूखा भी नहीं छोड़ा था। घर के हर मेम्बर का पेट भरा हुआ था। घर का मकान, इज्जत-आबरू लायक खेती-बाड़ी, सब तो छोड़ कर मरा है उसका बाप! भगवान की मेहरबानी से माथे पर कोई बोझ, कर्जा-वर्जा भी नहीं रहा। बेटा अभी शादी के लायक दस साल बाद होगा। कौन-सी चिन्ता है जो वह अपने बाप का मोसर नहीं करेगा? वह करेगा और बिरादरी की शान से ज्यादा शानदार करेगा। जिसने भी बल्देवा की यह बात सुनी उसकी बाँछें खिल गईं। बेटा हो तो ऐसा। हाँ, वे दो-एक लोग जरूर उदास थे जो कि बल्देवा से मोसर के करारे विरोध की आशा लगाए बैठे थे। बल्देवा ने जात-गंगा के हाथ जोड़े और निवेदन किया कि मोसर की तिथि, तारीख, वार सब भली प्रकार देख लो। उस दिन कोई ग्यारस, प्रदोष, पूनम, पड़वा ऐसी नहीं निकल आए जो कि व्रत-उपवास की हो वर्ना फिर व्रत-उपवास करनेवालों के लिए फलाहार वगैरा की व्यवस्था अलग से करनी पड़ेगी।

पंचायत ने पंचांग मँगा कर सब कुछ देख-दाख कर सारा कार्यक्रम तय कर दिया। चिट्ठियाँ फाड़ने का दस्तूर हो गया। बल्देवा ने जहाँ-जहाँ जिस-जिस को चिट्ठी भेजनी है, वहाँ-वहाँ, उस-उस का पता-ठिकाना ले लिया। और फिर उसने हाथ जोड़ कर उसके बाप के फूल हरिद्वार में ब्रह्मकुण्ड कुशावर्त घाट में प्रवाहित करने और वहाँ पहुँच कर कर सारा श्राद्ध कर्म और बारह दिनों में सम्पन्न किया जाने वाला पितृ तर्पण कर्म करने की आज्ञा चाही। बिरादरी ने राजी-राजी उसे आज्ञा दे दी। शाम को बल्देवा को समाचार मिला कि कौन तो उसका मकान खरीदना चाहता है और कौन खेत खरीदने की तुक भिड़ा रहा है। मन ही मन हँसा बल्देवा। रात में उसनेे घरवाली से सलाह-मशवरा किया। अपने साले को दूसरे दिन घर सौंपा और भिनसारे, पहलीवाली बस से अपने बेटे और पत्नी के साथ हरिद्वार के लिए बढ़ लिया। साला आखिर था बल्देवा का साला । उसन शेष नौ दिनों तक घर-आँगन का मोर्चा अपने जिम्मे ले लिया। पाँचवें दिन की दोपहर बल्देवा अपने बाल-बच्चों के साथ हरिद्वार में हर की पौेड़ी पर अपने पण्डाजी के साथ खड़ा हुआ था। पण्डाजी से उसने अपने गाँव भेजने के लिए एक भरोसे का आदमी माँगा। जरूरी कागजात उसे घर पहुँचाना हैं वर्ना उसके बाप का जनम-जमारा बिगड़ जाएगा। सारा काज-कर्यावर धरा रह जाएगा । उसके बाप की आत्मा जनम-जनम तक राख में लोटेगी। वह प्रेत योनि में उलझन जाएगा।

सातवें दिन पण्डाजी का दिया हुआ आदमी बल्देवा के आँगन में बल्देवा के पत्र के साथ मौजूद था। बल्देवा के साले को घेर-घार कर जात-बिरादरी वाले लोग तरह-तरह के मोसरों-कर्यावरों की बात कर रहे थे। वे लोग बल्देवा की वापसी के दिन गिन रहे थे। सारी तैयारियाँ बाकी हैं। भला आदमी मात्र तीन दिनों में क्या-क्या करेगा?

पण्डाजी के आदमी ने बल्देवा का पत्र उसके साले को सौंपा। बल्देवा के साले ने पत्र को खोला। पास में ही बैठे हुए एक बिरादर को पढ़ने के लिए दिया। ज्यों-ज्यों वह पत्र पढ़ता गया त्यों-त्यों उसके हाथ काँपते गए।

बल्देवा ने उसके साले को लिखा था कि गंगा मैया का किनारा और फिर हर की पौड़ी! इससे अच्छा स्थान भला और कौन-सा हो सकता है? परिवार ने तय कर लिया है कि पंचों की राय के मुताबिक जात-गंगा का हुकुम सिर माथे चढ़ाते हुए पिताजी का मोसर यहीं हरिद्वार में करना तय हो गया है। पण्डाजी सारी व्यवस्था कर रहे हैं। आप ऐसी चिट्ठियाँ सभी को पहुँचा देना। कोई रह नहीं जाए। मेरी जात-गंगा के पाँव पखारने का मौका मुझे भगवान की दया और जात-बिरादरी की मेहरबानी से ही मिला है। मेरा पुण्य और मेरे पिताजी का भाग्य ही भला है कि मैं जात के चरण गंगाजल से ही धोऊँगा और मेरा सारा परिवार उस चरणामृत से अपने सात-सात जन्म पवित्र करेगा। बिरादरी वालों को हाथ जोड़ कर मेरी मनुहार पेश कर देना कि मुझे, मेरे पिताजी को और मेरे परिवार को जरूर-जरूर भवसागर से तार दे और आप भी दस दिनों का धूप पिताजी को देकर हरिद्वार पधार जाना। हम पण्डाजी के पास ही ठहरे हैं। बिरादरी ने जिस-जिस पकवान की चाहना की थी वे सभी बनवाने की पूरी तैयारियाँ हैं। जात-गंगा से मेरी हाथाजोड़ी है कि मेरे परिवार पर यह उपकार जरूर करे। पिताजी के फूल ब्रह्मकुण्ड में तर्पण करने के बाद सन्त समागन और सतसंग का यहाँ बढ़िया अवसर है। तुम्हारी बहिन का, तुम्हारे भानजे का और मेरा मन यहाँ लग गया है। हम बहुत खुश हैं। आशा है वहाँ भी सभी राजी-बाजी होंगे।

अपना यह पत्र खत्म करने से पहले उसने फिर लिखा कि ऐसा नहीं हो कि गाँव से हरिद्वार तक आने-जाने का भाड़ा-किराया खर्च करने की कंजूसी में बिरादरी वाले यहाँ नहीं पधारें और मेरे पिता के मोसर का बना-बनाया खाना पड़ा रह जाए। आप तो जानते ही हो कि यहाँ हरिद्वार में हम लोग पण्डाजी से कर्जा लेकर ही लेकर सारा यह काम हाथ में ले रहे हैं। अपने-अपने घर-ऑँगन में तो काज-कर्यावर हर कोई कर लेता है पर शास्त्र कहते हैं कि अगर इस तरह का काम गंगा मैया के दरबार में किया जाए तो खाने वाले और खिलाने वाले सभी को मोक्ष मिलता है। सो, जरूर पधारना। सभी को हमारा जय गंगा माई की कहना। आते समय खेती-बाड़ी की व्यवस्था चार-पाँच दिनों के लिए करके निकलना!’

पढ़ने वाले ने पत्र को वहीं जाजम पर फेंक दिया। जात-गंगा घर बैठे-बैठे ही मात-गंगा में समा गई। जिसने भी सुना वही सनाका खाकर रह गया। लोग बल्देवा पर बलिहारी हो गए। आज तक समझ में नहीं आया कि बल्देवा को यह सूझ किसने दी। हरिद्वार और हर की पौड़ी उसके दिमाग में ढाल और कवच के तौर पर कैसे आई। बल्देवा के आसपास वालों की चिन्ता आज यह है कि कहीं यह कवच हर कोई नहीं पहिनने लग जाए।

बिरादरी के एक तबके को दूसरी चिन्ता यह है कि लोग बल्देवा को उकसा रहे हैं कि वह बिरादरी के जिम्मेदार लोगों पर हरिद्वार में बनवाए गए पकवानों और पूरियों के खर्चे का दावा लगा दे। सारा पैसा वसूल करे। कोरट-कचहरी हो जाए।

बल्देवा अपनी बीड़ी फूँकता है और कहता है, ‘लो साहब! कौन-सा खर्चा और कौन-सा हर्जा-मुआवजा! हरिद्वार में कौन तो प्रेतभोज बनाता है और कौन खाता है? हर कोई जानता है कि गाँव से गंगा जी तक का आने-जाने भाड़ा खर्च करके कौन खाना खाने आएगा? हजार कोस उड़ने की ताकत होते हुए भी गिद्ध तक अपने आसमान से बाहर नहीं जाता। जात-बिरादरी में लोग कोई गिद्ध तो होते नहीं हैं। हर कोई जानता है कि मरने वाले की याद में माल-मलीदा खाना, उसकी आत्मा को सताना और अपने आप नरक में जाने का रास्ता तैयार करना हैं। और तो और मेरे बाप के नाम पर पण्डाजी तक ने मेरा खाना नहीं खाया। मैं, मेरा बेटा और मेरी घरवाली वहाँ गंगा नहाते रहे और सत्संग करते तीरथ-जल लेते रहे। भगवान मेरे बाप की आत्मा को अपनी छाती में जगह दे।’

और एक लम्बी ‘ओऽम् शान्ति!’ कह कर बल्देवा नई बीड़ा सुलगा लेता है।

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कहानी संग्रह के ब्यौरे

मनुहार भाभी - कहानियाँ
लेखक - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - नीलकंठ प्रकाशन, 1/1079-ई, महरौली, नई दिल्ली-110030
प्रथम संस्करण 2001
मूल्य - 150/- रुपये
सर्वाधिकार - लेखक
मुद्रक - बी. के. ऑफसेट, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032


रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक, अभियोजन  (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।

 


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