‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’
की इकानब्बेवी कविता
यह कविता संग्रह
पाठकों को समर्पित किया गया है।
चौमासा इस बार
(मत करो आवारागर्दी )
बरसों बाद आये हो मेरे सावन!
भादों भरे मेरे पाहुन पावन!!
तो आओ बैठो
क्षितिज से क्षितिज तक
खुला है सारा आँगन।
खुले मन से मन की बात करो
बेशक दिन और रात करो
बरसना चाहो तो
मुक्त बरसो-उन्मुक्त बरसो
पर मत करो आवारागर्दी
मत कोई उत्पात करो।
डराओ मत
पहले से ही सहमे बैठे
धरती माँ के घर-परिवार को
समझो प्यास से तड़फती
दर-ब-दर दरकती
एक-एक दरार को।
मैं समझ गया कि
राह नहीं भूले
पर कहीं भटक गये
हो न हो
किसी रामटेक पर
यक्षप्रिया के गवाक्षों में
अटक गये थे।
देखो न?
जब तक तुम नहीं आये
तुम पर हँसता रहा अकाल
खुले नहीं मेरे बाजार
हाँ, दूकानें खुलती जरूर थीं
पर चलती नहीं थी।
चलती भी कैसे?
लाचार था, आकाश पर
आश्रित धरती का बेटा
उसके सिक्के सारे थे
तुम्हारे पागल बादलों की जेबों में।
बदल गये उन सिक्कों के
सन्- सम्वत्
जेबों की जेबों में मर गये।
पता नहीं
तुम्हारे होते हुए
तुम्हारे बादल बच्चे
ऐसा कैसे कर गये?
पर अब तुम आये हो तो
स्वागत है तुम्हारा
लेकिन अब ऐसा मत करना
दुबारा।
अब अतिथि की शालीनता को पालो
और अपनी गैर हाजिरी की
कसर यूँ मत निकालो
कि तुम्हारा मेजबान
मेरा हलधर डर जाये
और तुम्हारे बिना भी
जिन्दा रह सकने वाला
तुम्हारी खातिरदारी में ही
मर जाये।
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संग्रह के ब्यौरे -
मैं उपस्थित हूँ यहाँ: छन्द-स्वच्छन्द-मुक्तछन्द-लय-अलय-गीत-अगीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
एक्स-30, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110020
वर्ष - 2005
मूल्य - रुपये 95/-
सर्वाधिकार - लेखकाधीन
टाइप सेटिंग - आर. एस. प्रिण्ट्स, नई दिल्ली
मुद्रक - आदर्श प्रिण्टर्स, शाहदरा
रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2021) को चर्चा मंच "जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा" (चर्चा अंक-4204) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चयन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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