‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’
की बानब्बेवी कविता
यह कविता संग्रह
पाठकों को समर्पित किया गया है।
जो कुटिलता से जियेंगे
छीनकर
छल छन्द से
हक पराया मारकर
अमृत पिया तो क्या पिया?
हो गए बेशक अमर
जी रहे अमृत-उमर
लेकिन अभय अनमोल
सारा छिन गया।
देवता तो हो गए पर
क्या हुआ देवत्व का?
आयुभर चिन्ता करो अब
पद-प्रतिष्ठा, राज सत्ता
और अपने लोक की!
छिन नहीं जाए सुधा सिंहासनों की
एक ही भय
रात-दिन आठों प्रहर
प्राण में बैठा रहे
इस भयातुर अमर
जीवन का करो क्या?
जो किसी षड़यन्त्र या
छल-छन्द में शामिल नहीं था
पी गया सारा हलाहल
हो गया कैसे अमर?
पा गया साम्राज्य
‘शिव’ संज्ञा सहित
शिवलोक का,
कर रहा कल्याण सारे विश्व का।
सुर-असुर सब पूजते
उसको निरन्तर
साध्य सबका बन गया
कर्म में कोई कलुष
जिसके नहीं है
शीश पर नीलाभ नभ
खुद छत्र बनकर तन गया!
जो कुटिलता से जिएँगे
वे सदा विचलित रहेंगे
त्राण-त्राता के लिए
मारे फिरेंगे।
हक पराया मारकर
छल छन्द से छीना हुआ
अमृत अगर मिल भी गया तो
आप उसका पान करके
उम्र भर फिर क्या करेंगे?
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संग्रह के ब्यौरे -
मैं उपस्थित हूँ यहाँ: छन्द-स्वच्छन्द-मुक्तछन्द-लय-अलय-गीत-अगीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
एक्स-30, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110020
वर्ष - 2005
मूल्य - रुपये 95/-
सर्वाधिकार - लेखकाधीन
टाइप सेटिंग - आर. एस. प्रिण्ट्स, नई दिल्ली
मुद्रक - आदर्श प्रिण्टर्स, शाहदरा
रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।
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