‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’
की एकसौवी कविता
यह कविता संग्रह
पाठकों को समर्पित किया गया है।
आज तुम होती
(स्व. इन्दिरा गाँधी के प्रति)
आज तुम होती अगर
तो बात ही कुछ और होती
शस्य-श्यामल भारती माँ
विश्व का सिरमौर होती।
आज तुम होती अगर।
मैं नहीं यह कह रहा
सारा जमाना
बोलती सारी दिशाएँ
बोलते दिग्पाल सारे
देश का कण-कण तड़फ कर
बोलता है
बोलते ब्रह्माण्ड के नक्षत्र अगणित,
स्याह, मेघाच्छन्न इस आकाश की
सौदामिनी होकर चमकती
आज के अन्धे सफर में
एक उजला दौर होती
बात ही कुछ और होती
आज तुम होती अगर।
जो मशालें तुम जलाकर के गई थीं
आज वे गुमसुम खड़ी हैं
प्रेत, काले धर्म के, धर्मान्धता के
रोशनी को पी रहे हैं
बढ़ रही संख्या तटस्थों की
तुम्हारे देश में
हो गए जो चुप
मजे से जी रहे हैं।
तुम अकेली ही खड़ी होतीं
हमारे बीच तो
कोटि-कण्ठों की घुटन को
व्यक्त करती,
व्यक्त ही करती नहीं
अभिव्यक्त भर होती नहीं
इन दिग् दिगन्तों को कँपाता
प्राण पूरित शोर होती
बात ही कुछ और होती
आज तुम होती अगर।
देशध्वज की डोरियों को खींचते
और आँखें मींचते
आज बौने चढ़ गये हैं
उन कंगूरों पर
जहाँ के योग्य
वे बिल्कुल नहीं हैं
देश उनको देखता
होता चकित
उपदेश उनका सुन रहा लगता
मगर सुनता नहीं
बस मुस्कराता है
कि देखो भाग्य इनके
पुण्य किसका
फलित किसको हुआ
इस गणित का मूल्य
कड़वे घूँट पीकर भी चुका है।
कुंज केसर का मगर निःशंक
चरते शीतला-वाहन
पेड़ पर से हॉंक तो हम भर रहे हैं
किन्तु तुम होती अगर तो
हाँक का परिणाम ही होता अलग
देश ध्वज उन्मुक्त ऊँचा ही फहरता
और एक अद्भुत लरज से
डोरियाँ उसकी लरजतीं
वज्र संकल्पित करों में
राष्ट्रध्वज की डोर होती
बात ही कुछ और होती
आज तुम होती अगर।
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संग्रह के ब्यौरे -
मैं उपस्थित हूँ यहाँ: छन्द-स्वच्छन्द-मुक्तछन्द-लय-अलय-गीत-अगीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
एक्स-30, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110020
वर्ष - 2005
मूल्य - रुपये 95/-
सर्वाधिकार - लेखकाधीन
टाइप सेटिंग - आर. एस. प्रिण्ट्स, नई दिल्ली
मुद्रक - आदर्श प्रिण्टर्स, शाहदरा
रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।
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