श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’
की सत्रहवी कविता
‘कोई तो समझे’
की सत्रहवी कविता
यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को
समर्पित किया गया है।
ठहरो
मेरा
झलाझल लौ-वाला
ऊर्जस्वी, प्रज्ज्वलित दीप
मत रखना उस देहरी पर
जिसके इस ओर निकम्मे
और उस ओर नपुंसक रहते हों।
जो अँधेरे में बेआवाज रोयें
और उजाले में निरर्थक बेसुरा शोर करें,
वे किसी भी मौत मरें
यह कहकर मैं नहीं होना चाहता हैँ
दायित्वहीन।
पर मैं नहीं हूँ
सर्वशक्तिमान प्रभुसत्ता-सम्पन्न प्रभु से भी बड़ा
जो उनके लिए भी हो जाऊँ खड़ा
जो कि नहीं हैं खुद अपने
और तोड़-तोड़ कर अपने ही सपने
बैठ जाते हैं ‘रोशनी! रोशनी!!’ जपने।
इन शुतुरमुर्गों के शवों पर
आखिर मैं अकेला
मर्सिया कब तक पढ़ूँगा?
अब
निकम्मों और नपुंसकों के खिलाफ
पहिले मैं अपने आप से
लड़ूँगा।
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संग्रह के ब्यौरे
कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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