‘सम्बन्ध’ तोड़ दिया मेरी वाली ‘इस लड़की’ ने

हे! प्रभु, कैसी विवशता? कैसी असहाय दशा? कहाँ तो जी कर रहा है कि ‘इस’ लड़की के चित्र से अनन्त आकाश को ढँक दूँ और कहाँ यह लाचारी कि उसका चित्र तो दूर की बात रही, उसका नाम भी अपने ब्लाग पर नहीं दे पा रहा हूँ।

उसके विवाह की तारीख तय हो चुकी थी। निमन्त्रण पत्र छप चुके थे। आयोजन हेतु परिसर आरक्षित कर उसका अग्रिम भुगतान किया जा चुका था। आमन्त्रि अतिथियों के ठहरने के लिए होटल बुक की जा चुकी थी। वस्त्राभूषणों की सारी खरीदी हो चुकी थी। शेष था तो केवल बारात का आना, तोरण का मारा जाना और पाणिग्रहण संस्कार का सम्पन्न होना। किन्तु परसों 'उसने' ‘यह रिश्‍ता’ तोड़ दिया-अपनी ओर से। अत्यन्त विनम्रतापूर्वक किन्तु उतनी ही दृढ़तापूर्वक।

'वह' बेंगलुरु की एक कम्प्यूटर कम्पनी में साफ्टवेयर इंजीनीयर है। कोई डेड़-दो महीने पहले ही उसका ‘सम्बन्ध’ तय हुआ था। सब कुछ उसके पिता ने किया था। उसने लड़का देखने या उससे मिलने की कोई उत्सुकता नहीं जताई थी। पिता ने जो किया, उसे सर-माथे चढ़ा लिया था। बस, यही कहा था कि विवाहोपरान्त भी वह नौकरी करती रहेगी। ‘सम्बन्ध’ तय होने से पहले लड़के और उसके पिता को भी यह बात साफ-साफ बता दी गई थी। दोनों ने इसे स्वीकार किया था। उसके बाद ही जन्म पत्रियों का मिलान और बाकी सारी बातें हुई थीं और ‘सम्बन्ध’ तय हुआ था।

किन्तु कोई एक पखवाड़ा पहले ‘लड़के’ ने अपना विचार बदलने की सूचना दी। दोनों पिता असहज हुए। आपस में बात की और तय किया इस बारे में लड़का-लड़की ही आपस में बात करें और अन्तिम निर्णय लें। सो, दोनों ने बात की, बार-बार की। यह महत्वपूर्ण नहीं था कि लड़के ने विचार क्यों बदला। यही महत्वपूर्ण था कि लड़के ने विचार बदला है। हाँ, लड़के ने इतनी रियायत दी कि शादी के बाद पाँच-सात महीने तक लड़की नौकरी कर सकेगी किन्तु अन्ततः उसे नौकरी तो छोड़नी ही पड़ेगी। लड़की इसके लिए जब शुरु से ही तैयार नहीं थी तो अब क्या तैयार होती? सो, अन्तिम निर्णय लड़की ने लिया-‘तो फिर मैं यह शादी नहीं करूँगी।’ दोनों ने यह भी तय किया कि अपने-अपने पिता को इस निर्णय की जानकारी वे खुद ही देंगे।

और कल ‘उसने’ अपने पिता को बैंगलुरु से फोन पर खबर दी-‘पापा! आज मैंने शादी से इंकार कर दिया है।’ पिता यह आशंका पहले ही लिए बैठे थे। सो, असहज तो अवश्‍य हुए किन्तु उन पर पहाड़ नहीं टूटा। थोड़ी ही देर में लड़के के पिता का फोन आ गया और दोनों ने एक दूसरे से क्षमा-याचना कर ली। दोनों दुःखी अवश्‍य थे किन्तु किसी के मन पर बोझ नहीं था। यह फैसला उन दोनों में से किसी का नहीं था।

लड़की के पिता ने विस्तार से मुझे सारी बात बताई। मैंने लड़की से बात की। वह किंचित मात्र भी असहज नहीं थी। मैंने पूछा-‘अब आगे क्या?’ वह बोली-‘आगे क्या, क्या? मुझे थोड़े ही कुछ करना है? सब कुछ पापा ही करेंगे। पापा का फैसला, मेरा फैसला। बस, शादी के बाद भी नौकरी करने की मेरी शर्त बरकरार है और पापा यह अच्छी तरह जानते हैं।’

मुझे इस लड़की पर बड़ा मान हो आया। कोई ‘किन्तु-परन्तु’ नहीं। अपनी इच्छा और मानसिकता को लेकर न तो कोई संशय और न ही कोई भ्रम। अपनी पढ़ाई और उसके दम पर कर रही अच्छी-खासी कमाई का कोई गुमान और अहंकार भी नहीं। पिता पर अन्धविश्‍वास! लड़का कौन हो, कैसा हो, कहाँ का हो, इन सारी बातों से कोई लेना-देना नहीं। पिता जो भी करेंगे, श्रेष्‍ठ और हितकारी ही करेंगे। किन्तु अपनी पहचान और आर्थिक स्वतन्त्रता के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं।

अपनी जड़ों से जुड़े रहकर मध्यवर्गीय परिवार की कोई औसत लड़की कितनी प्रगतिशील, कितनी आत्म विश्‍वासी और कितनी दृढ़ इच्छा शक्ति वाली हो सकती है-यह अनूठा अनुभव मुझे आज हुआ।

इस लड़की से बात करते हुए मुझे मैंगलोर में, पब से घसीटी जा रही और पिट रही लड़कियाँ याद आने लगीं। मुश्‍िकल से पाँच लाख की आबादी वाले कस्बे की, मेरी वाली ‘यह लड़की’ अभी भी ‘जीन्स’ तक नहीं पहुँची है। आज भी सलवार-सूट ही पहनती है। लेकिन यह मन से कितनी प्रगतिशील है और आत्मा से कितनी संस्कारशील?

कुँवारी कन्या को सौ वर। सो, मेरी वाली ‘इस लड़की’ की शादी भी होगी और ईश्‍वर ने चाहा तो जल्दी ही होगी। तब, आपको ‘उससे’ अवश्‍य मिलवाऊँगा। वादा रहा।

तब तक आप मेरी वाली ‘इस लड़की’ की बेहतरी के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना कीजिएगा। प्लीज।

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11 comments:

  1. पढ़कर अच्छा लगा. अगर जींस पहनने से विचार उन्नत होते तो फ़िर तो फ़िर अरविन्द मिल्स का झंडा सारी दुनिया में गढा होता.

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट. आपकी उस होणार लड़की को हमारी भी शुभकामनाएं.

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  3. हमारी भी अनंत शुभकामनाएं ।

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  4. सही फैसला लिया... क्यों वो नौकरी छोड दे.. हरगिज नहीं, सलाम उसके जज्बे को..

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  5. आपकी ‘ इस लड़की’ से मिल कर अच्छा लगा ...इश्वर उनकी इच्छा को पूर्ण करते हुए उन्हें योग्य जीवन साथी का सुख दे यही प्रार्थना और कामना है....."

    Regards

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  6. ईश्वर करे उसकी मनोकामना सफ़ल हो.

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  7. मेरी वाली ‘यह लड़की’ अभी भी ‘जीन्स’ तक नहीं पहुँची है। आज भी सलवार-सूट ही पहनती है। लेकिन यह मन से कितनी प्रगतिशील है और आत्मा से कितनी संस्कारशील?

    सब कुछ आपने लिख दिया हमारे लिखने लायक अब शब्द नहीं है।

    आभार।

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  8. आज से कई साल पहले दिल्ली की एक बस में मैंने भी अनुभव किया था ....विचारों ओर आत्मविश्वास को किसी पहनावे की की जरुरत नही है

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  9. भारत की हर होनहार और सुशील बिटीया को हमारे आशिष भेजते हैँ
    - लावण्या

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  10. कन्या के फ़ैसले को बहुत बधाई और उस लडके की मानसिकता पर लानत...

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  11. इस लड़की के नये-पुराने में सामंजस्य बनाने की क्षमता से प्रसन्न हूं।
    कमोबेश यही सामंजस्य हमने अपनी जवानी में बनाया था।

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