‘भुगतान विधियाँ’ से यहाँ तात्पर्य है, किश्त भुगतान करने में उपलब्ध अन्तराल सुविधा।
किन्तु इससे पहले यह जानना रोचक होगा कि भुगतान के लिए विभिन्न अन्तरालों की सुविधा भले ही उपलब्ध कराई जाए, किश्त का दायित्व वार्षिक आधार पर ही निर्धारित होता है। इस बात को विस्तार से आगे समझा जा सकेगा।
यहाँ उपलब्ध कराई गई सारी जानकारियाँ, भारतीय जीवन बीमा निगम के सन्दर्भ में हैं-यह याद रखिएगा। और यह भी याद रखने की कृपा कीजिएगा कि यहाँ प्रस्तुत विचार और मन्तव्य पूर्णतः मेरे निजी हैं, भारतीय जीवन बीमा निगम के नहीं।
किश्त भुगतान के लिए वार्षिक, अर्ध्द वार्षिक, तिमाही, मासिक, वेतन बचत योजना के अन्तर्गत मासिक अन्तराल वाली भुगतान विधियाँ प्रचलन में हैं।
वार्षिक - इस भुगतान विधि के अन्तर्गत ग्राहक वर्ष में एक बार अपनी किश्त चुकाता है। वार्षिक किश्त चुकाने पर बीमा कम्पनी अपने ग्राहक को मूल प्रीमीयम दर पर तीन प्रतिशत की छूट देती है। (कुछ पालिसियों में यह छूट 1.5 प्रतिशत है। ऐसी पालिसियों में अर्ध्द वार्षिक भुगतान विधि मे कोई छूट नहीं है।)
अर्ध्द वार्षिक - इस भुगतान विधि के अन्तर्गत ग्राहक अपनी बीमा किश्त 6-6 महीनों के अन्तराल से वर्ष में दो बार जमा कराता है। इस विधि से किश्त भुगतान करने वाले ग्राहक को बीमा कम्पनी मूल प्रीमीयम दर पर 1.5 प्रतिशत की छूट देती है।
तिमाही - इस भुगतान विधि के अन्तर्गत ग्राहक अपनी बीमा किश्त 3-3 महीनों के अन्तराल से वर्ष में चार बार जमा कराता है। इस भुगतान विधि पर बीमा कम्पनी ग्राहक को मूल प्रीमीयम दर पर कोई छूट नहीं देती है।
मासिक - इस भुगतान विधि में ग्राहक अपनी बीमा किश्त प्रति माह (वर्ष में 12 बार) जमा कराता है। इस विधि से भुगतान करने वाले ग्राहक से बीमा कम्पनी, मूल प्रीमीयम दर पर 5 प्रतिशत अतिरिक्त रकम वसूल करती है।
वेतन बचत योजना - इस विधि के अन्तर्गत किश्त भुगतान की सुविधा वेतन भोगी ग्राहकों को ही उपलब्ध होती है। अधिकांश संस्थान/विभाग अपने कर्मचारियो के लिए यह सुविधा उपलब्ध कराती हैं। इस हेतु संस्थान/विभाग और बीमा कम्पनी के बीच एक लिखित अनुबन्ध सम्पादित होता जिसमें संस्थान/विभाग, अपने कर्मचारियों के वेतन से प्रति माह बीमा किश्त की कटौती कर बीमा कम्पनी को भेजने का वचन देता है। यह कटौती उसी कर्मचारी के वेतन से होती है जो ऐसी कटौती के लिए अपने नियोक्ता से लिखित अनुरोध करता है।
इस विधि के अन्तर्गत ग्राहक यद्यपि मासिक अन्तराल पर किश्त भुगतान करता है किन्तु ग्राहक से कोई अतिरिक्त प्रीमीयम नहीं ली जाती, जैसी कि ‘मासिक भुगतान विधि’ में ली जाती है।
निम्नांकित उदाहरण से बात अधिक स्पष्ट हो जाएगी -
26 वर्षीय व्यक्ति यदि 1,00,000 रुपये बीमा धन की, 20 वर्षीय धन वापसी योजना (तालिका 75 वाली मनी बेक पालिसी) लेता है तो उसकी विभिन्न भुगतान विधियों वाली किश्तों की रकम इस प्रकार होगी -
वार्षिक - रुपये 6,387/-
अर्ध्द वार्षिक - रुपये 3,243/- (अर्थात् रुपये 6,486/- प्रति वर्ष)
तिमाही - रुपये 1,646/- (अर्थात् रुपये 6,584/- प्रति वर्ष)
मासिक - रुपये 576/- (अर्थात् रुपये 6,912/- प्रति वर्ष)
वेतन बचत योजना - रुपये 549/- (अर्थात् रुपये 6,588/- प्रति वर्’ा)
उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि किश्त भुगतान विधि में अन्तराल जितना कम होता है, किश्त की रकम बढ़ती जाती है।
वेतन बचत योजना और तिमाही विधि से भुगतान करने पर वार्षिक रकम में कोई विशेष अन्तर नहीं आता। इसका कारण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है।
वार्षिक विधि से भुगतान करने वाले ग्रहकों को बीमा कम्पनी पर खर्च और श्रम कम करना पड़ता है। उसके लिए वर्ष में एक सूचना पत्र भेजा जाता है, एक रसीद जारी करनी पड़ती है, सम्बन्धित कर्मचारी का समय वर्ष में एक ही बार लगता है, खाता संधारण में भी समय और श्रम की बचत होती है।
अर्ध्द वार्षिक विधि से भुगतान करने वाले ग्राहक के लिए बीमा कम्पनी को यह सब कुछ दुगुना, तिमाही विधि से भुगतान करने वाले ग्राहकों के लिए चार गुना और मासिक भुगतान विधि वालों के लिए बारह गुना करना पड़ता है।
वेतन बचत योजानान्तर्गत भुगतान करने वाले ग्राहकों को कोई अन्तर न पड़ने का कारण बहुत ही सीधा-सादा है। इस योजानन्तर्गत बीमा कम्पनी को एक ही चेक से कई ग्राहकों की किश्त प्राप्त होती है। ऐसे भुगतान के लिए बीमा कम्पनी को कोई सूचना पत्र नहीं भेजना पड़ता और प्रत्येक ग्राहक की अलग-अलग रसीद जारी नहीं करनी पड़ती। खाता संधारण पर होने वाला श्रम और लगने वाला समय यद्यपि तनिक भी कम नहीं होता तदपि इस योजना से मिलने वाली सुविधा के कारण कर्मचारी बीमा कराने को सहजता से तैयार हो जाते हैं क्यों कि किश्त कटौती वेतन से होने के कारण उन्हें आर्थिक भार की विशेष अनुभूति नहीं होती। वैसे भी कर्मचारी वर्ग ऐसी कटौती की मानसिकता लिए हुए होता है।
सुविधा अन्तराल की : किश्त की वसूली पूरी
यह बहुत ही महत्वपूर्ण बिन्दु है।
‘भगवान’ और ‘भाग्य’ वाले हमारे समाज में बीमा बेचना अत्यधिक कठिन काम है और बीमे के लिए एक मुश्त रकम निकाल पाना सामान्य मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए मानसिक और व्यावहारिक रुप से, प्रथम दृष्टया तनिक कठिन ही अनुभव होता है। इस दो तरफा कठिनाई को कम करने तथा अधिकाधिक लोगों को बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराने की सदाशयता से विभिन्न अन्तराल वाली भुगतान विधियों की सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं। किन्तु जैसा कि इस पोस्ट के प्रारम्भ में ही कहा गया है, किश्त की वसूली सदैव ही वार्षिक आधार पर ही की जाती है।
उदाहरणार्थ : किसी व्यक्ति ने जनवरी में बीमा पालिसी ली और किश्त भुगतान के लिए ‘तिमाही भुगतान विधि’ का विकल्प लिया। अर्थात् अब यह ग्राहक प्रति वर्ष जनवरी, अप्रेल, जुलाई और अक्टूबर में अपनी कि”त का भुगतान करेगा।
पालिसी अवधि के दौरान किसी वर्ष में, दुर्भाग्यवश ऐसे ग्राहक की मुत्यु अगस्त महीने में हो गई। तब तक वह जनवरी, अप्रेल और जुलाई की देय, तीन तिमाही किश्तों का भुगतान कर चुका था। जब उसकी पालिसी के मृत्यु दावे का भुगतान किया जाएगा तक अक्टूबर वाली तिमाही किश्त की रकम उसमें से काट ली जाएगी।
स्पष्ट है कि केवल भुगतान सुविधा के लिए विभिन्न अन्तरालों की विधियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं, किश्त की वसूली वार्षिक आधार पर ही की जाती है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि वाहन बीमा किश्त सदैव वार्षिक ली जाती है।
मेरा सुझाव - वार्षिक भुगतान विधि सदैव ही सबके लिए लाभकारी और हितकारी होती है। यदि यह सम्भव न हो तो अर्ध्द वार्षिक भुगतान विधि के विकल्प में भी कोई हर्ज नहीं है। किन्तु तिमाही भुगतान विधि का विकल्प लेने से बचा जाना चाहिए। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि लेप्स होने वाली पालिसियों में तिमाही भुगतान वाली पालिसियों का प्रतिशत 90 तक है। मासिक भुगतान विधि वाला विकल्प तो नहीं ही लें।
ऐसी ही कुछ और बातें फिर कभी।
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विष्णु जी,बहुत ही उपयोगी जानकारी प्रदान की है।आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही विस्तॄत और बढ़िया जानकारी दी साहब आपने। धन्यवाद।
ReplyDeleteजानकारी तो काफी अच्छी दी . आगे भी ऐसी जानकारियों का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteलैप्स हुई पॉलिसी के लिए क्या किया जा सकता है? शायद अलग अलग तरह की पॉलिसी के लिए अलग अलग नियम हैं। आजकल बहुत से एजेन्ट पहले की तरह किश्त के भुगतान आदि का समय पहले की तरह याद नहीं दिलाते। इसका एक कारण शायद यह भी है कि वे बहुत से कामों में हाथ डाले होते हैं और समय नहीं दे पाते। क्या पॉलिसी रिन्यू करवाते समय फिर से डॉक्टरी जाँच आदि होती है ? यदि इस दौरान कोई बड़ा रोग हुआ हो तो क्या वह रिन्यू नहीं होती ?
एक पाठिका
नमस्कार विष्णुजी ,
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण जानकारी
दी आपने .धन्यवाद.
विष्णु जी, बहुत ही उपयोगी जानकारी प्रदान की आपने.
ReplyDeleteइसी विषय में मैं आपसे अपनी कुछ शंकाओं के समाधान की अपेक्षा रखता हूं. आशा है कि आप उचित मार्गदर्शन करेंगे.
लगभग चार पहले अपने एजेंट के कहे अनुसार मैने न्यू जनरक्षा नाम की एक 2 लाख रूपए की पालिसी ली थी.हमारी अज्ञानता का लाभ उठाकर वो हमे एक पालिसी के बजाय 25-25 हजार की आठ पालिसियां थमा गया.वो तो अब जाकर मालूम हुआ कि वो अपने लाभ के लिए हमारा नुक्सान कर गया.
एक बात ओर कि मेरी कुछ पालिसियों की किस्त भुगतान त्रैमासिक है तथा कुछ की अर्धवार्षिक.मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि क्या अब इनका भुगतान वार्षिक हो सकता है.
कृ्प्या उचित मार्गदर्शन करें
धन्यवाद्
आपने जो लेख के माध्यम से भुगतान में मूल प्रीमियम दर पर 1.5% की छूट के बारे में बताया है. किन्तु हमें तो कभी इस प्रकार की कोई छूट प्राप्त नहीं हुई.
प्रिय विष्णु जी,
ReplyDeleteइस उपयोगी जानकारी के लिये आभार! जब एक जानकार व्यक्ति कोई बात समझाता है तो बात जल्दी समझ में आ जाती है एवं उसमें आधिकारिकता होती है.
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
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