‘स्माइल पिंकी’ और उससे जुड़े तमाम लोगों को सलाम। इस तथ्य के बाद भी कि ‘स्लमडाग’ को श्रेष्ठ फिल्म का ‘आस्कर’ पुरुस्कार मिल चुका है।
मैं उन ‘अल्पसंख्यकों’ में शामिल हूँ जिन्हें ‘आस्कर’ का नाम न तो आतंकित करता, न ही प्रभावित। आकर्षित तो बिलकुल ही नहीं करता। भारतीय फिल्मों और फिल्मकारों के अपने मानक और अपने लक्ष्य हैं और कहना न होगा कि कई भारतीय फिल्में उन पूरी तरह खरी उतरी हैं। किन्तु ‘घर का जोगी जोगड़ा’ वाली मानसिकता से कोई नहीं उबर सकता। यह मानव मनोविज्ञान की एक ग्रन्थि है। हर कोई ‘घर से बाहर’ अपनी पहचान बनाना चाहता है। सो, भारतीय फिल्मकारो के लिए ‘आस्कर’ यदि ‘जीवन की अन्तिम अभिप्सा’ हो तो यह सहज और स्वाभाविक ही है। यह ललक गए कुछ वर्षों से ‘सनक’ की सीमा को भी छू गई। इस बार यह अपने चरम पर रही।
इस ‘सनक’ का चरम पर जाना ही मुझे आस्कर समारोह के प्रति उत्सुक बना बैठा। सेवेर से ही ‘बुध्दू बक्सा’ खोल लिया था। नौ बजते-बजते, ‘स्लमडाग’ को दो श्रेणियों में ‘आस्कर’ मिल चुका था तभी बिजली चली गई। दस बजे लौटी तो ‘स्लमडाग’ को सात ‘आस्कर’ मिलने का उत्सव पर्दे पर छाया हुआ था।
किन्तु मेरी उत्सुकता ‘स्माइल पिंकी’ को लेकर थी। ‘स्लमडाग’ के कोलाहल में उद्घोषक ने (खानापूर्ति की शैली में) सूचित किया कि अपने वर्ग में ‘स्माइल पिंकी’ ने ‘आस्कर’ प्राप्त कर लिया है। ‘स्लमडाग’ के (इस टिप्पणी के लिखे जाते समय तक) आठ ‘आस्कर’ पर ‘स्माइल पिंकी’ का एक ‘आस्कर’ मुझे भारी ही नहीं, भारी-भरकम अनुभव हो रहा है। मैं, ‘नक्कारखाने में अनसुनी हो रही तूती’ की आवाज में अपनी आवाज, परम् प्रसन्नता से मिला रहा हूँ।
‘स्लमडाग’ और ‘स्माइल पिंकी’ में मूलभूत अन्तर है। ‘स्लमडाग’ पूरी तरह से विदेशी उपक्रम है जिसमें कुछ भारतीयों को भी काम दिया गया। इन सब भारतीयों ने साबित कर दिया कि अपने काम में वे सब के सब निष्णात् हैं। उनकी इस महारत को तो हम सब पहले से ही सलाम कर रहे हैं। हम चाह रहे थे कि उनकी इस महारत को शेष विश्व भी स्वीकार करते हुए सम्मानित करे। इस वर्ष के ‘आस्कर’ पुरुस्कारों में हम भारतीयों की यह साध पूरी हो गई।
किन्तु प्रसन्नता के इस आवेग में मैं यह भूल नहीं पा रहा हूँ कि ‘स्लमडाग’ भारतीय फिल्म नहीं है। यह पूरी तरह से ऐसी विदेशी फिल्म है जो भारतीय समाज की एक बड़ी समस्या पर केन्द्रित है। मैं यह भी नहीं भूल पा रहा हूँ कि यह पूर्णतः व्यावसायिक फिल्म है जिसमें फिल्म निर्माण से जुड़े प्रत्येक पक्ष के लिए साधनों-सुविधाओं का अम्बार सहजता से उपलब्ध था। इसके लिए आवश्य ‘श्रेष्ठ मस्तिष्क’ अपनी मुँह माँगी कीमत वसूल कर, अपनी सेवाएँ दे रहे थे। जिस समस्या को लेकर फिल्म बनाई गई, उस समस्या का समाधान नहीं अपितु उसकी ‘मार्केटिंग’ कर भरपूर लाभार्जन इसका लक्ष्य था। वहाँ भारत की गरीबी को ‘ग्लेमराइज’ कर वाहवाही और रोकड़ा लूटना मकसद रहा।
और ‘स्माइल पिंकी’? ग्लेमर की चकाचौंध में यह छोटी सी डाक्यूमेण्टरी, अत्यन्त सीमित साधानों-सुविधाओं में बनी, शत-प्रतिशत भारतीय प्रयास है। इसकी अवधारणा, निर्माता, फिल्म के समस्त पक्षों से जुड़े समस्त लोग भारतीय हैं। इसका सम्पूर्ण फिल्मांकन भी भारत में ही हुआ है। इसमें न तो ग्लेमर है न ही व्यवसाय। मार्केटिंग की कल्पना तो इसे कहीं छू भी नहीं पाई। इसकी कथा और लक्ष्य ‘वैश्विक मानवता’ है। इसकी केन्द्रीय पात्र अवश्य भारतीय है किन्तु ऐसे बच्चे दुनिया के किसी भी हिस्से में पाए जा सकते हैं। ‘स्माइल पिंकी’ वस्तुतः दुनिया के ऐसे सारे बच्चों की चिन्ता करती है।
‘स्लमडाग’ जहाँ ‘वाणिज्यिक सोच’ के अधीन बनी है वहीं ‘स्माइल पिंकी’ ‘सेवा भावना’ के अधीन।
एक बात और। व्यावसायिक फिल्मों के लिए एकाधिक श्रेणियाँ निर्धारित की जाती हैं जबकि जिस श्रेणी में ‘स्माइल पिंकी’ पुरुस्कृत हुई वह श्रेणी अपने आप में इकलौती है। इस पैमाने पर ‘स्माइल पिंकी’ ने ‘अपनी श्रेणी में शत प्रतिशत’ पुरुस्कार प्राप्त किए हैं जबकि ‘स्लमडाग’ ने ‘अधिकांश पुरुस्कार’ प्राप्त किए हैं।
सो, ‘स्लमडाग’ को मिली सफलता, मेरी दृष्टि में ‘विदेशी उपक्रम के माध्यम से कुछ भारतीयों की उपलब्धि’ है जबकि ‘स्माइल पिंकी’ को मिली सफलता ‘भारत और भारतीयता की उपलब्धि’ है। दोनों में बहुत ही बारीक अन्तर है किन्तु यही अन्तर ‘स्माइल पिंकी’ को ‘स्लमडाग’ के मुकाबले हिमालयी ऊँचाई दिला रहा है।
मैं निस्सन्देह ‘स्लमडाग’ के उत्सव में शामिल हूँ किन्तु मन में तो ‘स्माइल पिंकी’ ही बसी हुई है। मैं जानता हूँ कि ‘मार्केटिंग की मारी और टीआरपी के लिए जी रही’ चैनलों के लिए ‘स्माइल पिंकी’ की बात करना मूर्खतापूर्ण और घाटे का सौदा है। इसके नाम पर विज्ञापन नहीं मिल सकते। इसलिए ‘स्लमडाग’ के मुकाबले इसे उपेक्षित ही रहना है। यह भी ‘घर का जोगी जोगड़ा’ वाली उक्ति की श्रेष्ठ मिसाल बना दी जाएगी। किन्तु सच तो यही है कि यदि किसी भारतीय प्रयास ने आस्कर जीता है तो वह केवल और केवल ‘स्माइल पिंकी’ ही है।
बुध्दू बक्से पर कहा जा रहा है कि अभी दो श्रेणियों के ‘आस्कर‘ और घोषित होना शेष हैं। मुमकिन है कि वे दोनों ही ‘स्लमडाग’ को मिल जाएँ फिर भी वह ‘स्माइल पिंकी’ के सामने पानी भरती ही नजर आएगी।
‘स्माइल पिंकी’ को और उससे जुड़े तमाम लोगों को फिर से सलाम।
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धन्यवाद बैरागी जी
ReplyDeleteस्माइल पिंकी को आस्कर मिलने की प्रतीक्षा मुझे भी थी, आपसे यह खबर पा कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है
कुछ मुंह मीठा करते हैं:)
स्माइल पिंकी........... देखी तो नहीं है पर आपने जो जानकारी दी उसके आधार पर मैं भी आपसे पूरी तरह सहमत हूँ।
ReplyDeleteबैरागी जी स्माइल पिंकी के लिये मिला आस्कर मुझे भी खुशी दे रहा है परंतु सच मानो स्लमडाग को मिले किसी भी पुरस्कार के लिये मुझे कोई प्रसन्नता नहीं है। बारीक पड़ताल के लिये साधुवाद।
ReplyDeleteइस को देखने की उत्सुकता रहेगी ..पिंकी को वहां ऑस्कर समारोह में देख कर खुशी हो रही है
ReplyDeleteआपने विवेकवान भारतीयों के मनोभावों को मुखरित किया है । ना जाने क्या मजबूरी है ,जो हमें अपने पर गर्व करने से रोकती है । आज भी हम पश्चिम से मिले तमगे को ही सब कुछ मानते हैं और वे भारत की दीन दशा देखकर ही प्रसन्न होते हैं । ये हमारी जीत का जश्न नहीं हमारी लाचारगी का भद्दा मज़ाक है ,लेकिन क्या करें हमें तो कटोरा फ़ैलाने ,उसमें गिरे सिक्के की छनक पर हुलस कर जी भर कर ’असीसने”की आदत है । हम ऎसे ही रहेंगे सदियों तक ......
ReplyDeleteसुंदर विवेचना. smile पिंकी के लिए हम गौरवान्वित हुए. आभार.
ReplyDeleteमुख्य मुद्दा भारत और भारतियों का ऑस्कर मंच पर सम्मान है, जो कि विदेशी नहीं बल्कि निर्विवाद विश्व स्तरीय सम्मान है. बहुत अच्छा लगा देख कर एवं गर्व की अनुभूति हुई.भविष्य के लिए भी शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteमहा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
sateek charcha.
ReplyDeletebairagi ji namaskar , aap mere blog par aaye, comment kiya hardik dhanyawaad, aapko email nahin kar paya, punah aayen aapka swagat hai.
इस्माईल पिंकी " क्लेफ्ट लिप" जैसी बीमारी के लिए जागरूक करने वाली फ़िल्म है .ताकि आम लोगो को ये बताया जा सके की ये बीमारी ओपरेशन से ठीक हो सकती है...वैसे अगर आप ये फ़िल्म देखेगे तो इसमे भी निर्धनता ओर गरीबी ही देखेगे....भले ही दूसरे रूप में...यानी अगर सलाम डॉग को खारिज करते है तो वाही वजह इन पर भी लागू होती है....इससे बेहतरीन वर्त चित्र एच आई वी ओर टी बी पर बने है...पर बस बात ऑस्कर की है
ReplyDeletehttp://bhawna-media.blogspot.com/2009/02/blog-post_22.html#comment-form
ReplyDeleteइसने भी समझ के साथ बात की है।
दोनों फिल्मों के कलाकारों को बधाईयाँ! स्माईल पिंकी भी पूरी तरह से भारतीय फिल्म नहीं है, इसके निर्माता-निर्देशक भी विदेशी ही हैं, पूरी जानकारी यहाँ है।
ReplyDeletekai din ho gayen film dekhe huyen. aapki samiksha ne film dekhane ki utsukata ko badaya hai.
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