इस विषय पर चर्चा करने से पहले कुछ शब्दों के, देवनागरी में अंग्रेजी पर्याय जान लें -
नामन - नामिनेशन , नामित - नामिनी, नामांकित - नामिनेट
‘नामन’ (नामिनेशन) का अर्थ है - पालिसी की पूर्णावधि से पहले ही, पालिसीधारक की मृत्यु हो जाने की दशा में, मृत्यु दावे की रकम प्राप्त करने के लिए वैध विमुक्ति-पत्र (डिस्चार्ज फार्म) प्रस्तुत कर, मृत्यु दावे की रकम प्राप्त करने हेतु किसी व्यक्ति का ‘नामांकन’ कर उसे ‘नामित’ व्यक्ति के रूप में उल्लेखित करना।
स्पष्ट है कि ‘नामित’ का अर्थ ‘उत्तराधिकारी’ नहीं होता। -उत्तराधिकारी तो मृतक की सम्पत्तियों और उत्तरदायित्वों का स्वामी होता है जबकि ‘नामित’ इन दोनों बातों से बिलकुल ही सम्बन्धित नहीं होता।
इसे और अधिक स्पष्ट करें तो - ‘नामित’ व्यक्ति उत्तराधिकारी नहीं होता किन्तु उत्तराधिकारी ‘नामित’ व्यक्ति हो सकता है।
जीवन बीमा पालिसियों में उत्तराधिकारी का नहीं, केवल ‘नामन’ का प्रावधान है और प्रस्ताव पत्र प्राप्त करते समय एजेण्ट भी, प्रस्तावक से ‘नामित’ का ही नाम पूछता है। चूँकि अधिकांश मामलों में ‘नामित’ और ‘उत्तराधिकारी’ एक ही व्यक्ति होता है, सो लोक प्रचलन में (जीवन बीमा के सन्दर्भ में) ‘नामित’ को ही ‘उत्तराधिकारी’ भी मान लिया जाता है।
‘नामन’ की आवश्यकता - किसी पालिसीधारक की (पाॅलिसी की पूर्णावधि से पहले) मृत्यु हो जाने की दशा में, पालिसी पर किए जाने वाले दावे की रकम का भुगतान प्राप्त करने के लिए, ‘नामन’ की आवश्यकता होती है। इस हेतु ‘नामांकित’ व्यक्ति ‘नामित’ होता है।
पालिसी की पूर्णावधि से पहले पालिसीधारक की मृत्यु हो जाने की दशा में, दावा प्रस्तुत करना, दावे की रकम प्राप्त करने के लिए वैध विमुक्ति पत्र (डिस्चार्ज फार्म) प्रस्तुत कर, दावे की रकम प्राप्त करना, ‘नामित’ का अधिकार होता है।
‘नामित’ केवल रकम प्राप्त करने का अधिकारी होता है। वह दावे से मिली रकम का स्वामी नहीं होता।उसकी भूमिका ‘न्यासी’ की होती है। दावे की रकम प्राप्त कर, उस रकम को, रकम के ‘वास्तविक अधिकारी व्यक्ति/व्यक्तियों’ तक पहुँचाना, ‘नामित’ का उत्तरदायित्व होता है।
‘नामन’ न होने के नुकसान - जिस पालिसी में ‘नामन’ नहीं हो और ऐसी पालिसी के धारक की मृत्यु, पालिसी पूर्णावधि से पहले हो जाए तो उसका भुगतान तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि मृतक के उत्तराधिकारी का, विधिक निर्णय नहीं हो जाता। अर्थात् बिना ‘नामन’ वाली पालिसी के धारक की मृत्यु से उपजे दावे की रकम प्राप्त करने के लिए उत्तराधिकार-प्रमाण-पत्र (सक्सेशन सर्टिफिकेट) प्राप्त करना पड़ेगा।
इसलिए, बीमा पालिसी लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पालिसी पर ‘नामन’ की सुनिश्चितता कर लेनी चाहिए।
कौन हो सकता है ‘नामित’ - ‘नामन’ पालिसीधारक का विधिक अधिकार है। वह जिसे चाहे, उसे अपना ‘नामित’(नामिनी) बना सकता है।
चूँकि यह ऐसा आर्थिक मामला है जो पालिसीधारक की असमय मृत्यु के बाद, उसके आश्रितों को जीवनाधार दे सकता है। इसलिए ‘नामन’ (नामिनेशन) में भावुकता की अपेक्षा वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर व्यवहारिकता बरतनी चाहिए।
इसलिए निम्नांकितों में से किसी एक को ही ‘नामित’ बनाया जाना अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक होगा -
(1) विवाहित व्यक्ति अपने जीवन साथी को ही नामित बनाए। ‘जीवन साथी’ ही व्यक्ति का ‘प्राकृतिक और प्रथम विधिक उत्तराधिकारी’ भी होता है।
(2) अविवाहित व्यक्ति को अपनी माता को ‘नामित’ बनाना चाहिए क्योंकि ऐसे प्रकरणों में सामान्यतः माँ ही व्यक्ति की प्राकृतिक तथा प्रथम विधिक उत्तराधिकारी होती है।
(3) यदि प्रस्तावक अविवाहित है और उसकी माता का भी स्वर्गवास हो चुका है तो ऐसे प्रकरण में पिता को ‘नामित’ बनाना अधिक उचित होगा।
(4) यथा सम्भव, किसी अवयस्क को नामित बनाने से बचने का प्रयास किया जाना चाहिए।किन्तु यदि किसी अवयस्क को नामित बनाया जा रहा है तो इस स्थिति में एक ‘नियुक्त व्यक्ति’ (अपाइण्टी) आवश्यक है। ऐसे ‘नियुक्त व्यक्ति’ (अपाइण्टी) के, सहमति सूचक हस्ताक्षर भी प्रस्ताव पत्र पर प्राप्त करना अनिवार्य होते हैं।
ऐसे प्रकरणों में ‘अवयस्क नामित’ और ‘नियुक्त व्यक्ति’ यदि पालिसीधारक के ही कोई रक्त सम्बन्धी हो तो अधिक अच्छा होगा।
नामन में परिवर्तन - जिस प्रकार नामन करना पालिसीधारक का अधिकार है उसी प्रकार नामन में परिवर्तन करना भी पालिसीधारक का अधिकार है।
निम्नांकित स्थितियों में नामन में परिवर्तन कराया जाना पालिसीधारक के हित में होगा -
(1) वर्तमान नामित की मृत्यु गई हो।
(2) अवयस्क बीमाधारक जैसे ही वयस्कता की आयु प्राप्त करता है तो उसे नामन का अधिकार स्वतः ही मिल जाता है। ऐसे प्रकरणों मे पालिसीधारक के वयस्क होते ही अविलम्ब नामन करा लेना चाहिए।
अवयस्कों के जीवनद पर जारी की गई पालिसियों में नामन अंकित ही नहीं किया जाता है। ऐसे प्रकरणों में, अवयस्क पालिसीधारक की मृत्यु यदि वयस्कता आयु प्राप्त करने से पहले हो जाती है तो प्रस्तावक ही स्वतः नामित होता है और उसे ही ऐसी पालिसी के दावे की रकम का भुगतान किया जाता है।
(3) यदि पालिसी को, किसी ऋण अथवा मूल्यवान प्रतिफल के लिए किसी व्यक्ति अथवा संस्था को समनुदेशित (असाइन)(‘असाइन’ को बोलचाल की भाषा में ‘गिरवी’ कहा जा सकता है) किया गया हो और ऐसे ऋण अथवा मूल्यवान प्रतिफल का चुकारा कर दिया गया हो, और जिसके पक्ष में पालिसी समनुदेशित की गई थी (या कि जिसके पास गिरवी रखी गई थी) वह ऐसे समनुदेशन को निरस्त करने के निर्देश बीमा कम्पनी को दे दे। तो ऐसे प्रकरण में, पालिसीधारक के पक्ष में पुनर्समनुदेशन होते ही, अविलम्ब ही, नामन करा लेना चाहिए।
इसे यूँ समझना अधिक सहज होगा। आपने बैंक से लोन लिया। बैंक ने, जमानत के रूप में आपकी पालिसी अपने (बैंक के) पक्ष में समनुदेशित (असाइन) करवा ली (अर्थात् आपकी पालिस पर बैंक के पक्ष में गिरवीनामा अंकित करा लिया)। कालान्तर में आपने लोन चुका दिया। बैंक ने इस आशय का पत्र बीमा कम्पनी को लिख कर कह दिया कि आपकी पालिसी आपके पक्ष में समनुदेशित (असाइन) कर दे (अर्थात् पालिसी का स्वामित्व आपके नाम कर दे)। ऐसे में पालिसी तो आपके नाम हो गई किन्तु उस पर नामन किसी का भी नहीं रहा है क्योंकि पालिसी समनुदेशित (असाइन) करते ही (अर्थात् गिरवी रखते ही) उस पर किया गया नामन स्वतः निरस्त हो जाता है।
ऐसे प्रकरणों में पालिसी पर एक बार फिर नामन करना होता है और यह काम अविलम्ब करा लिया जाना चाहिए।
नामन का स्वतः निरस्त अथवा निष्प्रभावी होना -
(1) जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, पालिसी का किसी के पक्ष में समनुदेशन होते ही, पालिसी पर किया गया नामन स्वतः ही, तत्काल प्रभाव से निरस्त अथवा निष्प्रभावी हो जाता है।
(2) पालिसी की पूर्णावधि के बाद, किन्तु पूर्णावधि दावे के भुगतान से पहले, यदि पालिसीधारक की मृत्यु हो जाए तो भी नामन स्वतः निरस्त अथवा निष्प्रभावी हो जाता है।अर्थात्, पालिसीधारक के जीते जी, नामित व्यक्ति को पालिसी से मिलने वाली रकम प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता।
चूँकि पालिसी की पूर्णावधि तक पालिसीधारक जीवित था, इसलिए पूर्णावधि दावे की रकम पालिसीधारक को ही भुगतान की जानी थी। किन्तु यह भुगतान पा्रप्त करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। ऐसी दशा में नामित के अधिकार स्वतः ही समाप्त हो चुके थे। इसीलिए, पूर्णावधि दावे की रकम प्राप्त करने का अधिकार नामित को नहीं रहा। ऐसी स्थिति में यह पालिसी ‘बिना नामन वाली’ श्रेणी में आ जाएगी और इसका भुगतान, उस व्यक्ति को किया जाएगा जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेगा।
अर्थात्, नामित के अधिकार, पालिसी की पूर्णावधि दिनांक से पहले तक ही सीमित हैं।
एक विशेष स्थिति -संयोग से ऐसा हो जाए कि नामित की मृत्यु हो गई किन्तु नामन में परिवर्तन नहीं कराया गया और इसी बीच पालिसीधारक की मृत्यु हो जाए तो इस स्थिति में भी यह पालिसी ‘बिना नामन वाली पालिसी’ मानी जाएगी और इसका भुगतान भी उसी व्यक्ति को किया जाएगा जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्रस्तुत करेगा।
यह उल्लेख इसलिए महत्वपूर्ण तथा आवश्यक है क्यों कि ऐसे प्रकरणों में कभी-कभी, मृत नामित के उत्तराधिकारी, अपने आप को इस पालिसी की रकम के दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।
इसलिए, यदि आपकी पालिसी पर नामन अंकित नहीं हुआ है तो कृपया आपके शाखा कार्यालय से अथवा अपने एजेण्ट से सम्पर्क कर, इस काम को सर्वोच्च प्राथमिकता पर पूरा करें।
इस विवरण में मैंने एकाधिक बार ‘समनुदेशन’ (असाइन) शब्द प्रयुक्त किया है।
अगली बार इसी ‘समनुदेशन’ पर जानकारी प्रस्तुत होगी।
कृपया ध्यान दीजिएगा - ये जानकारियाँ मेरे श्रेष्ठ ज्ञान और जानकारियों पर आधारित हैं। इन्हें भारतीय जीवन बीमा निगम की अधिकृत जानकारियाँ बिलकुल न समझें।
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बहुत काम की जानकारी दी है आपने. अति आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी दी गई है। अभी तक लोग समझते हैं कि नामन एक तरीके से पॉलिसी की वसीयत है। यह धारणा गलत है। नामित वास्तव में एक एडमिनिस्ट्रेटर होता है जो उत्तराधिकार के हिसाब से बीमा पॉलिसी के बदले मिले धन का वितरण करता है।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी, आभार.
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